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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 9/ मन्त्र 7
    ऋषिः - त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिन्धुद्वीपो वाम्बरीषः देवता - आपः छन्दः - प्रतिष्ठागायत्री स्वरः - षड्जः

    आप॑: पृणी॒त भे॑ष॒जं वरू॑थं त॒न्वे॒३॒॑ मम॑ । ज्योक्च॒ सूर्यं॑ दृ॒शे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आपः॑ । पृ॒णी॒त । भे॒ष॒जम् । वरू॑थम् । त॒न्वे॑ । मम॑ । ज्योक् । च॒ । सूर्य॑म् । दृ॒शे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आप: पृणीत भेषजं वरूथं तन्वे३ मम । ज्योक्च सूर्यं दृशे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आपः । पृणीत । भेषजम् । वरूथम् । तन्वे । मम । ज्योक् । च । सूर्यम् । दृशे ॥ १०.९.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 9; मन्त्र » 7
    अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 7
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (आपः) हे जलो ! (मम तन्वे) मेरे शरीर के लिये (वरूथं भेषजम्) रोगनिवारक औषध को (पृणीत) दो-प्रदान करो, जिससे कि (ज्योक् च सूर्यं दृशे) सूर्य को देर तक जीवनपर्यन्त देखता रहूँ ॥७॥

    भावार्थ

    जल रोग को दूर करनेवाले औषध को देता है साथ ही सूर्य को देखने की शक्ति को लुप्त नहीं होने देता-दृष्टि को बढ़ाता है-आँखों में मार्जन आदि करने से। इसी प्रकार आप्त विद्वान् अपने सत्सङ्ग-उपदेश से दोषों को दूर करते हैं और अध्यात्मदृष्टि देते हैं ॥७॥

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    विषय

    दीर्घकाल तक सूर्य-दर्शन

    पदार्थ

    [१] हे (आपः) = जलो ! आप (मम तन्वे) = मेरे शरीर के लिये (वरूथम्) = रोगों का निवारण करनेवाले (भेषजम्) = औषध को (पृणीत) = [ पूरयत] पूरित करो। अर्थात् जलों के यथायोग से मेरे शरीर में रोगों का प्रवेश न हो सके। [२] (च) = और इस प्रकार हमारी नीरोगता का कारण बनकर ये जल (ज्योक्) = दीर्घकाल तक (सूर्यं दृशे) = हमारे सूर्य-दर्शन के लिये हों । अर्थात् हम दीर्घजीवी बनें।

    भावार्थ

    भावार्थ- जल रोगनिवारण के द्वारा दीर्घजीवन के लिये होते हैं।

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    विषय

    आपः। आप्त जनों के कर्त्तव्य। जलों से उनकी तुलना। जलों का रोगों को, और आप्तों का दुर्भावों और पापों को दूर करने का कर्तव्य।

    भावार्थ

    व्याख्या देखो मं० १। सू० २३। मन्त्र २१॥ इति पञ्चमो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिन्धुद्वीपो वाम्बरीष ऋषिः। आपो देवताः॥ छन्दः-१—४, ६ गायत्री। ५ वर्धमाना गायत्री। ७ प्रतिष्ठा गायत्री ८, ९ अनुष्टुप्॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (आपः) हे आपः ! (मम तन्वे) मम शरीराय (वरूथं भेषजम्) रोगनिवारकमौषधं (पृणीत) दत्त-प्रयच्छत “पृणातिर्दानकर्मा” [निघ० ३।२०] येन (ज्योक् च सूर्यं दृशे) चिरकालपर्यन्तं यावज्जीवं सूर्यं पश्येयम् ॥७॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O waters, give me peace, stability and sanative vitality for my body so that I may see the sun for a long long time in life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जल रोग दूर करणारे औषध देते, तसेच सूर्य पाहण्याची शक्ती लुप्त होऊ देत नाही. डोळ्यांचे मार्जन वगैरे करण्याने दृष्टी वाढवितो. याच प्रकारे आप्त विद्वान आपल्या सत्संग उपदेशाने दोष दूर कातात व अध्यात्म दृष्टी देतात. ॥७॥

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