ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 25/ मन्त्र 1
इन्धा॑नो अ॒ग्निं व॑नवद्वनुष्य॒तः कृ॒तब्र॑ह्मा शूशुवद्रा॒तह॑व्य॒ इत्। जा॒तेन॑ जा॒तमति॒ स प्र स॑र्सृते॒ यंयं॒ युजं॑ कृणु॒ते ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑॥
स्वर सहित पद पाठइन्धा॑नः । अ॒ग्निम् । व॒न॒व॒त् । व॒नु॒ष्य॒तः । कृ॒तऽब्र॑ह्मा । शू॒शु॒व॒त् । रा॒तऽह॑व्यः । इत् । जा॒तेन॑ । जा॒तम् । अति॑ । सः । प्र । स॒र्सृ॒ते॒ । यम्ऽय॑म् । युज॑म् । कृ॒णु॒ते । ब्रह्म॑णः । पतिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्धानो अग्निं वनवद्वनुष्यतः कृतब्रह्मा शूशुवद्रातहव्य इत्। जातेन जातमति स प्र सर्सृते यंयं युजं कृणुते ब्रह्मणस्पतिः॥
स्वर रहित पद पाठइन्धानः। अग्निम्। वनवत्। वनुष्यतः। कृतऽब्रह्मा। शूशुवत्। रातऽहव्यः। इत्। जातेन। जातम्। अति। सः। प्र। सर्सृते। यम्ऽयम्। युजम्। कृणुते। ब्रह्मणः। पतिः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 25; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
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अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्युद्वर्णनमाह।
अन्वयः
यः कृतब्रह्मेन्धानो रातहव्यो ब्रह्मणस्पतिर्जातेन जातमति सर्सृते यं यं युजं प्रकृणुते स इद्वनवद्वनुष्यतोऽग्निं प्रशूशुवत् ॥१॥
पदार्थः
(इन्धानः) प्रदीप्तः (अग्निम्) विद्युतम् (वनवत्) वनेन तुल्यम् (वनुष्यतः) हिंसन्तम्। अत्र विभक्तिव्यत्ययः। वनुष्यतिर्हन्तिकर्मेति निरुक्ते (कृतब्रह्मा) कृतानि ब्रह्माणि धनानि येन सः (शूशुवत्) विजानाति। अत्राडभावो लडर्थे लुङ् च (रातहव्यः) रातानि दत्तानि हव्यानि येन सः (इत्) एव (जातेन) उत्पन्नेन जगता सह (जातम्) उत्पन्नं पदार्थम् (अति) (सः) (प्र) (सर्सृते) भृशं सरति गच्छति (यंयम्) (युजम्) युक्तम् (कृणुते) (ब्रह्मणः) धनस्य (पतिः) पालकः ॥१॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। यथा किरणा वायुना सह सर्प्पन्ति तथैव विद्युदग्निः सर्वैः पदार्थैः सह सर्प्पति ता यत्र-यत्र प्रयुञ्जीत तत्र-तत्र महत्कार्यं साध्नोति ॥१॥
हिन्दी (1)
विषय
अब पच्चीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके आदि में बिजली का वर्णन करते हैं।
पदार्थ
जो (कृतब्रह्मा) धनों को उत्पन्न करनेवाला (इन्धानः) तेजस्वी (रातहव्यः) होमके योग्य पदार्थों का दाता (ब्रह्मणः) धनका (पतिः) रक्षक स्वामी (जातेन) उत्पन्न हुए जगत् के साथ (जातम्) उत्पन्न पदार्थ को (अति,सर्सृते) अत्यन्त शीघ्र प्राप्त होता (यंयम्) जिस-जिसको (युजम्) कार्य्यों में युक्त (कृणुते) करता (सः,इत्) वही (वनवत्) वन को जैसे वैसे (वनुष्यतः) जलाते नष्ट करते हुए (अग्निम्) विद्युत् अग्नि को (प्र,शूशुवत्) अच्छे प्रकार जानता है ॥१॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे किरण वायु के साथ चलती है, वैसे ही विद्युत् अग्नि सब पदार्थों के साथ चलता है, उसको मनुष्य जहाँ-जहाँ प्रयुक्त करे, वहाँ-वहाँ बड़े काम को सिद्ध करता है ॥१॥
मराठी (1)
विषय
x
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी किरणे वायूबरोबर गतिमान होतात तसेच विद्युत अग्नी सर्व पदार्थांबरोबर गतिमान होतो. त्याला जो माणूस ज्या ज्या स्थानी प्रयुक्त करतो त्या त्या स्थानी तो महान कार्य सिद्ध करतो. ॥ १ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Brahmanaspati, lord ruler, protector, and promoter of wealth and nature, maker of forms of food, energy and power, giver of yajnic materials and fragrances for natural and human activities of creation and production, lighting the fire and burning the requisite materials like forest wood, creates new forms with what it has already created and thus moves on in cyclic motion at electric velocity whatever it takes on as its friendly associate for the progress of humanity.
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