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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 29 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 29/ मन्त्र 6
    ऋषिः - कूर्मो गार्त्समदो गृत्समदो वा देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒र्वाञ्चो॑ अ॒द्या भ॑वता यजत्रा॒ आ वो॒ हार्दि॒ भय॑मानो व्ययेयम्। त्राध्वं॑ नो देवा नि॒जुरो॒ वृक॑स्य॒ त्राध्वं॑ क॒र्ताद॑व॒पदो॑ यजत्राः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒र्वाञ्चः॑ । अ॒द्य । भ॒व॒ता॒ । य॒ज॒त्राः॒ । आ । वः॒ । हार्दि॑ । भय॑मानः । व्य॒ये॒य॒म् । त्राध्व॑म् । नः॒ । दे॒वाः॒ । नि॒ऽजुरः॑ । वृक॑स्य । त्राध्व॑म् । क॒र्तात् । अ॒व॒ऽपदः॑ । य॒ज॒त्राः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अर्वाञ्चो अद्या भवता यजत्रा आ वो हार्दि भयमानो व्ययेयम्। त्राध्वं नो देवा निजुरो वृकस्य त्राध्वं कर्तादवपदो यजत्राः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अर्वाञ्चः। अद्य। भवता। यजत्राः। आ। वः। हार्दि। भयमानः। व्ययेयम्। त्राध्वम्। नः। देवाः। निऽजुरः। वृकस्य। त्राध्वम्। कर्तात्। अवऽपदः। यजत्राः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 29; मन्त्र » 6
    अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 11; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे अर्वाञ्चो यजत्रा देवा यूयमद्य नस्त्राध्वम्। यद्वो हार्दि तद्वयमा गृह्णीम। अस्मभ्यं विद्याप्रदातारो भवत निजुरः कर्त्तादवपदस्त्राध्वम्। हे यजत्रा वृकस्येव वर्त्तमानस्य सकाशाद्रक्षत यतो भयमानोऽहं व्यर्थमायुर्न व्ययेयम् ॥६॥

    पदार्थः

    (अर्वाञ्चः) येऽर्वागञ्चन्ति विद्यां प्राप्नुवन्ति ते (अद्य) अस्मिन् दिने। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (भवत) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (यजत्राः) सुसङ्गतेः कर्त्तारः (आ) (वः) युष्माकम् (हार्दि) हार्दमस्मिन्नस्ति तत् (भयमानः) भयं प्राप्तः (व्ययेयम्) व्ययं कुर्य्याम (त्रायध्वं) रक्षत (नः) अस्मान् (देवाः) विद्यासुशिक्षादानरक्षकाः (निजुरः) नितरां हिंसकात् (वृकस्य) वृक इव वर्त्तमानस्य चोरस्य। वृक इति स्तेनना० निघं० ३। २। (त्रायध्वम्) पालयत (कर्त्तात्) छेदकात् (अवपदः) आपत्कालात् (यजत्राः) विद्वत्पूजकाः ॥६॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। विदुषामिदमेव कृत्यमस्ति यदज्ञानाविद्यादिदोषेभ्यः पृथग्रक्ष्य सर्वस्माद्दुःखात्पृथक्कृत्य दीर्घायुषो धर्मात्मनो जनान् कुर्युरिति ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषयको अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (अर्वाञ्चः) आत्मज्ञानसम्बन्धी आदि विद्या को प्राप्त होनेवाले (यजत्राः) अच्छी संगति करनेहारे (देवाः) विद्या और अच्छी शिक्षा के रक्षक विद्वान् लोगो! तुम (अद्य) आज दिन (नः) हमलोगों की (त्राध्वम्) रक्षा करो, जो (वः) तुम्हारा (हार्दि) जिस कार्य्य में मन लगता उसको हम लोग (आ) अच्छे प्रकार ग्रहण करें हमारे लिये आप विद्या देनेवाले (भवत) होओ (निजुरः) निरन्तर हिंसक (कर्त्तात्) छेदक (अवपदः) आपत्काल से (त्राध्वम्) रक्षा करो, हे (यजत्राः) विद्वानों के पूजक लोगो (वृकस्य) भेड़िया के तुल्य वर्त्तमान चोर के संसर्ग से रक्षा करो जिससे (भयमानः) भयको प्राप्त मैं व्यर्थ आयु को न (व्ययेयम्) नष्ट करूँ ॥६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। विद्वानों का यही कर्त्तव्य है कि जो अज्ञान अविद्यादि दोषों से पृथक् रखके सब दुःख से पृथक् कर मनुष्यों को बड़ी अवस्थावाले धर्मात्मा करें ॥६॥

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    विषय

    देवरक्षण द्वारा पापों से बचाव

    पदार्थ

    १. हे (यजत्राः) = पूज्य देवो! (अद्य) = आज (अर्वाञ्चः भवत) = हमारे अभिमुख होइए-हमें आपकी अनुकूलता प्राप्त हो । (भयमानः) = इन पापों से डरता हुआ मैं (वः) = आपके (हार्दि) = हृदय में अवस्थित रक्षण को (आव्ययेयम्) = सर्वथा प्राप्त होऊँ। मैं हृदय में दिव्यभावों का उद्बोधन करता हुआ पाप से बचा रहूँ । २. हे (देवाः) = देवो! आप (वः) = हमें (वृकस्य) = इस लोभरूप वृक के [वृक आदाने] (निजुरः) = निहनन से (त्राध्वम्) = रक्षित करो। तथा [यजत्राः] = हे पूज्य देवो! (अवपदः) = अवनति के [अव= नीचे, पद गतौ] (कर्तात्) = करनेवाले इस काम-क्रोध से (त्राध्वम्) = हमारा रक्षण करिए ।

    भावार्थ

    भावार्थ - देवों के रक्षण से हम लोभादि से आहत न हों।

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    विषय

    व्रतधारी विद्वानों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( अद्य ) आज, आप लोग ( अर्वाञ्चः ) हमारे प्रति आदरणीय और ( यजत्राः ) अभय आदि देने और सत्संग करने वाले (भवत) होवो । ( वः ) आप लोगों के ( हार्दि ) हृदय के प्रेम या अभिप्राय को ( आ ) मैं प्राप्त करूं, जानूं क्योंकि सम्भव है कि ( भयमानः ) भयभीत होकर ( वि अयेयम् ) नष्ट हो जाऊं । हे ( देवाः ) विद्वान्, विजयेच्छुक पुरुषो ! ( निजुरः ) अतिहिंसक, छुप कर हिंसा करने वाले ( वृकस्य ) भेडिये के स्वभाव वाले, चोर डाकू पुरुष के किये ( कर्त्तात् ) छेदन हिंसन आदि कार्य से ( नः ) हमें ( त्राध्वं ) बचाओ और हे ( यजत्राः ) दानशीलो ! आप लोग ( नः ) हमें ( अवपदः ) आपत्ति काल से भी ( त्राध्वं ) रक्षा करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कूर्मो गार्त्समदो गृत्समदो वा ऋषिः ॥ विश्वदेवा देवता ॥ छन्दः- १, ४, ५ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ६, ७ त्रिष्टुप् । ३ विराट् त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. अज्ञान, अविद्या दोषांपासून पृथक ठेवून सर्व दुःखांपासून पृथक करून माणसांना दीर्घायुषी बनवून धर्मात्मा करावे. हेच विद्वानांचे कर्तव्य आहे. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Devas, noble and generous powers of the world, yajnic teachers and enlightened seniors, advance in knowledge and generosity, come, be kind and gracious right front. Obedient with awe and reverence, let me do what is dear to you at heart. Protect us against the violent wolf and the greedy robber. Worshipful and dedicated to yajna as you are, save us from evil time and violence.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    In the praise of the learned persons.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned persons! you possess the first spiritual knowledge and preserve good learning and education. You protect us presently. We accept the assignments of your liking. You give us education and constantly save us from the piercing miseries. You honor the scholars, and keep us away from the wolf-like robbers' company, so that apprehensive I do not waste my life.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    It is the paramount duty of the scholars to keep away people from the ignorance and other vices, and build up their life on sound pious lines.

    Foot Notes

    (अर्वाञ्चः) येऽवग्नूचन्ति विद्यां प्राप्नुवन्ति ते । = Equipped with spiritual knowledge. (यजना:) सुसङ्गतेः कर्त्तार:। = Associates in good cause. (हार्दि) हादंमस्मिन्नस्ति तत्। = The task of liking. (त्नाध्वम्) रक्षत = Protect or guard. (निजुर:) नितरां हिंसकात्।= Rank violent. (वृकस्य) वृक इव वर्तमानस्य चोरस्य। = of the wolf-like robbers. (कर्त्तात्) छेदकात् = From the piercing. (अवपदः) आपत्कालात् = From the miseries.

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