ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 39/ मन्त्र 3
ऋषिः - गृत्समदः शौनकः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
शृङ्गे॑व नः प्रथ॒मा ग॑न्तम॒र्वाक्छ॒फावि॑व॒ जर्भु॑राणा॒ तरो॑भिः। च॒क्र॒वा॒केव॒ प्रति॒ वस्तो॑रुस्रा॒ऽर्वाञ्चा॑ यातं र॒थ्ये॑व शक्रा॥
स्वर सहित पद पाठशृण्गा॑ऽइव । नः॒ । प्र॒थ॒मा । ग॒न्त॒म् । अ॒र्वाक् । श॒फौऽइ॑व । जर्भु॑राणा । तरः॑ऽभिः । च॒क्र॒वा॒काऽइ॑व । प्रति॑ । वस्तोः॑ । उ॒स्रा॒ । अ॒र्वाञ्चा॑ । या॒त॒म् । र॒थ्या॑ऽइव । श॒क्रा॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शृङ्गेव नः प्रथमा गन्तमर्वाक्छफाविव जर्भुराणा तरोभिः। चक्रवाकेव प्रति वस्तोरुस्राऽर्वाञ्चा यातं रथ्येव शक्रा॥
स्वर रहित पद पाठशृङ्गाऽइव। नः। प्रथमा। गन्तम्। अर्वाक्। शफौऽइव। जर्भुराणा। तरःऽभिः। चक्रवाकाऽइव। प्रति। वस्तोः। उस्रा। अर्वाञ्चा। यातम्। रथ्याऽइव। शक्रा॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 39; मन्त्र » 3
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
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अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे उस्रा रथ्येव शक्रा युवां नोऽर्वाग्गन्तं शृङ्गेव शफाविव जर्भुराणा प्रथमा तरोभिश्चक्रवाकेव प्रति वस्तोरर्वाञ्चा यातम् ॥३॥
पदार्थः
(शृङ्गेव) शृङ्गवत्सम्बन्धिनौ हिंसकौ (नः) अस्मान् (प्रथमा) आदिमौ (गन्तम्) प्राप्नुतम् (अर्वाक्) पश्चात् (शफाविव) यथा खुरौ परस्परेण सम्बन्धौ (जर्भुराणा) भृशं धर्त्तारौ (तरोभिः) तरन्ति यैस्तानि तरांसि नौकादीनि तैः (चक्रवाकेव) यथा चक्रवाकौ पक्षिणौ (प्रति) (वस्तोः) दिनम् (उस्रा) किरणवद्वर्त्तमानौ (अर्वाञ्चा) अर्वाग्गामिनौ (यातम्) प्राप्नुतम् (रथ्येव) यथा रथाय हितानि (शक्रा) शक्तिमन्तौ ॥३॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। यद्यग्निवायू शिल्पकार्येषु सम्प्रयुज्येतां तर्हि बहूनि कार्याणि साधयेताम् ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (उस्रा) किरणों के समान वर्त्तमान (रथ्येव) रथ के लिये हितकारी वस्तु के तुल्य (शक्रा) शक्तिमान् तुम लोग (नः) हम लोगों के (अर्वाक्) पीछे (गन्तम्) प्राप्त हुए को (शृङ्गेव) शृङ्गों के समान सम्बन्ध करने तथा हिंसा करनेवाले (शफाविव) जैसे खुर परस्पर सम्बन्ध करे हुये हैं वैसे (जर्भुराणा) निरन्तर धारण करनेवाले (प्रथमा) पहिले सनातन वा (तरोभिः) जिनसे तैरते हैं उन नौकाओं से जैसे (चक्रवाकेव) चकवी-चकवा (प्रति) प्रति (वस्तोः) दिन (अर्वाञ्चा) पीछे जानेवाले होकर (यातम्) प्राप्त हूजिये ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। यदि अग्नि-वायु शिल्प कार्यों में संयुक्त किये जावें तो बहुत कार्य्यों को सिद्ध करें ॥३॥
विषय
शृंगा-शफौ-चक्रवाका रथ्या
पदार्थ
१. हे प्राणापानो! आप (शृंगा इव) = गवादि पशुओं के सींगों के समान हो। जैसे श्रृंग उनको शत्रुओं से बचाने में साधन बनते हैं, उसी प्रकार प्राणापान हमें सब रोगादि शत्रुओं से बचानेवाले हैं। आप (नः) = हमें (प्रथमाम्) = सर्वप्रथम (अर्वाक् गन्तम्) = हमारे अभिमुख प्राप्त होओ। आपको प्राप्त करके हम शत्रुओं से अपना रक्षण कर पाएँ । २. (शफौ इव) = आप घोड़ों के दो खुरों के समान हो। जैसे घोड़ा इन खुरों से तीव्र गतिवाला होता है, उसीप्रकार हे प्राणापानो! आप भी (तरोभिः) = बड़े वेगों से (जर्भुराणा) = खूब ही गतिवाले हो । प्राणापान के कारण ही शरीर की सब गतियाँ हो रही हैं । चक्रवाका इव - आप चकवा चकवी के समान हो । (प्रतिवस्तोः) = प्रतिदिन उस्त्रा प्रकाश की किरणोंवाले हो । चकवा-चकवी प्रकाश की किरणों के साथ प्रेमवाले हैं-प्रकाश में ही आनन्द का अनुभव करते हैं। प्राणापान भी बुद्धि तीव्र करके अज्ञानान्धकार को दूर करनेवाले हैं। इन्हें अन्धकार से प्रेम नहीं । ४. (रथ्या इव) = ये रथ में जुतनेवाले दो घोड़ों के समान हैं। (शक्रा) = प्राणापान इस शरीर-रथ के वहन में शक्तिवाले हैं। ऐसे हे प्राणापानो ! (अर्वाञ्चा यातम्) = हमारे अभिमुख आनेवाले होओ। हमें ये प्राणापान प्राप्त हों ।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणापान सब रोगादि शत्रुओं को दूर करनेवाले हैं। तीव्रगति उत्पन्न करते प्रकाश उत्पन्न करनेवाले हैं। शक्ति प्राप्त कराते हैं ।
विषय
विद्वानों वीरों और उत्तम स्त्री पुरुषों एवं वर वधू के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( शृङ्गा इव प्रथमा ) दो सींग जिस प्रकार सबसे आगे बढ़ कर विरोधी को मारते या आगे बढ़े रहते हैं उसी प्रकार हे स्त्री पुरुषो ! वर वधुओ ! तुम दोनों भी ( शृङ्गा इव ) गिरि शिखरों के समान ( नः ) हमारे बीच में ( प्रथमा ) प्रथम, उत्तम, अग्रगण्य होकर ( यातम् ) जीवन व्यतीत करो । ( शफा इव अर्वाक् ) दो खुर या दो पैर जिस प्रकार शरीर के नीचे रहकर ( तरोभिः जर्भुराणा ) वेगों से जाने वाले होते है उसी प्रकार आप दोनों भी ( शफौ ) परस्पर मिलकर ( अर्वाक् ) नीचे, आश्रय होकर ( तरोभिः ) दुःखों के पार जाने के साधनों से ( जर्भुराणा ) जाते हुए और सबका पालन पोषण करते हुए ( यातम् ) आगे बढ़ो । और ( प्रतिवस्तोः ) प्रति दिन ( चक्रवाका इव ) चकवा चकवी के समान ही ( चक्रवाका ) उत्तम सुन्दर वचन बोलने हारे होकर रहो । और ( रथ्या इव उस्रौ ) रथ में जुड़ने वाले उत्तम बैलों के ( शक्रा ) शक्तिमान् बलवान् होकर ( अर्वाञ्चा ) आगे की तरफ बढ़ते ( यातम् ) जाओ ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः- १ निचृत् त्रिष्टुप् । ३ विराट् त्रिष्टुप। ४, ७, ८ त्रिष्टुप। २ भुरिक् पङ्क्तिः। ५, ६ स्वराट् पङ्क्तिः॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जर अग्नी, वायू, शिल्पकार्यात संयुक्त केले तर पुष्कळ कार्य सिद्ध होते. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
You come first and foremost for us like horns of defence, like bright war horses panting for action, with strength and patience for victory, like the chakravaka bird couple which are harbingers of light and love every morning. Thus mighty and powerful, you move and lead us forward like the pioneers of battle.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
In the praise of Ashvinau—the pair.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O two Ashvinau ! you are like the rays of the sun (destroyers of miseries). Come first to us unitedly like a pair of horns. Come O upholders! like a pair of hoofs with boats etc. Come early in the morning like the Chakravaka birds (a pair of birds loving fast each other ). Come, you mighty ! like two chariot wheels at dawn.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
If fire and air are methodically used for technological or industrial purposes they can accomplish many aims.
Foot Notes
(जभुंराणा ) भृशं धर्त्तारौ। = Upholders. (तरोभिः ) तरन्ति यैस्तानि तरांसि नौकादीनि तैः । = By boats. ( उस्त्रा) किरणवद् वर्तमानौ। = Like the rays of the sun.
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