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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 39 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 39/ मन्त्र 8
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - अश्विनौ छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ए॒तानि॑ वामश्विना॒ वर्ध॑नानि॒ ब्रह्म॒ स्तोमं॑ गृत्सम॒दासो॑ अक्रन्। तानि॑ नरा जुजुषा॒णोप॑ यातं बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒तानि॑ । वा॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ । वर्ध॑नानि । ब्रह्म॑ । स्तोम॑म् । गृ॒त्स॒ऽम॒दासः॑ । अ॒क्र॒न् । तानि॑ । न॒रा॒ । जु॒जु॒षा॒णा । उप॑ । या॒त॒म् । बृ॒हत् । व॒दे॒म॒ । वि॒दथे॑ । सु॒ऽवीराः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एतानि वामश्विना वर्धनानि ब्रह्म स्तोमं गृत्समदासो अक्रन्। तानि नरा जुजुषाणोप यातं बृहद्वदेम विदथे सुवीराः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एतानि। वाम्। अश्विना। वर्धनानि। ब्रह्म। स्तोमम्। गृत्सऽमदासः। अक्रन्। तानि। नरा। जुजुषाणा। उप। यातम्। बृहत्। वदेम। विदथे। सुऽवीराः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 39; मन्त्र » 8
    अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वद्विषयमाह।

    अन्वयः

    हे अश्विना नरेव वर्त्तमानावध्यापकपरीक्षकौ युवां वां यान्येतानि वर्द्धनानि ब्रह्म स्तोमं च गृत्समदासोऽक्रन् तानि जुजुषाणा सन्तावास्मानुपयातं यतस्सुवीराः सन्तो वयं विदथे बृहत्सततं वदेम ॥८॥

    पदार्थः

    (एतानि) (वाम्) युवयोः (अश्विना) सकलविद्याव्यापिनौ (वर्द्धनानि) (ब्रह्म) धनम् (स्तोमम्) प्रशंसाम् (गृत्समदासः) गृत्सा अभिकाङ्क्षिता मदा हर्षा यैस्ते (अक्रन्) कुर्य्युः (तानि) (नरा) नेतारौ (जुजुषाणा) सेवमानौ (उप) (यातम्) उपाप्नुतः (बृहत्) महद्विज्ञानम् (वदेम) अध्यापयेम उपदिशेम वा (विदथे) विज्ञानमये यज्ञे (सुवीराः) शोभनाश्च ते वीरा व्याप्तविद्यास्ते ॥८॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या विद्वदनुकरणं कुर्य्युस्तर्हि ते महान्तो भवेयुरिति ॥८॥ । अत्र वाय्वग्न्यादिविदुषाञ्च गुणवर्णनादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिर्वेद्या॥ इत्येकोनचत्वारिंशत्तमं सूक्तं पञ्चमो वर्गश्च समाप्तः॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (अश्विना) सकल विद्या में व्याप्त होनेवाले (नरा) मनुष्यों में अग्रगन्ताओं के समान वर्त्तमान अध्यापक और परीक्षको ! तुम (वाम्) तुम दोनों के जिन (एतानि) इन (वर्द्धनानि) वृद्धियों (ब्रह्म) धन और (स्तोमम्) प्रशंसा को (गृत्समदासः) जिन्होंने आनन्द चाहे हुए हैं, वे जन (अक्रन्) करें (तानि) उनको (जुजुषाणा) सेवते हुए हम लोगों के (उप,यातम्) समीप प्राप्त होते जिससे (सुवीराः) उत्तम वीरोंवाले हम सब लोग (विदथे) संग्राम में (बृहत्) बहुत विज्ञान को निरन्तर (वदेम) पढ़ावें वा उपदेश करें ॥८॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य विद्वानों का अनुकरण करें तो वे महात्मा होवें ॥८॥ इस सूक्त में वायु और अग्नि आदि पदार्थ वा विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्तार्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह उनतालीसवाँ सूक्त और पाचवाँ वर्ग पूरा हुआ ॥

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    विषय

    प्राणापान का आराधन

    पदार्थ

    १. हे (अश्विना) = प्राणापानो ! (एतानि) = ये हमारे सब कार्य (वाम्) = आपके (वर्धनानि) = बढ़ानेवाले हों। हम सब कार्यों को इस प्रकार व्यवस्थित करें कि प्राणसाधना किसी भी प्रकार उपेक्षित न हो। २. इसी उद्देश्य से (गृत्समदासः) = [गृणाति माद्यति] प्रभु का स्तवन करनेवाले और आनन्द में रहनेवाले लोग ब्रह्म ज्ञान को व (सोमम्) = स्तुति को (अक्रन्) = करते हैं। ज्ञानप्राप्ति व स्तुति की प्रवृत्तिवाला व्यक्ति प्राणसाधना में प्रवृत्त होता है। प्राणसाधना से बुद्धि की तीव्रता होकर ज्ञान की और वृद्धि होती है तथा मन की वृत्ति अन्तर्मुखी होकर यह साधक को प्रभुस्तवन की ओर लेचलती है। ३. हे (नरा) = हमें उन्नति पथ पर ले चलनेवाले प्राणापानो! आप (तानि) = उन ज्ञानों [ब्रह्म] [स्तोमं] स्तुतियों का (जुजुषाणा) = प्रीतिपूर्वक सेवन करते हुए (उपयातम्) = हमें प्राप्त होओ, अर्थात् तुम्हारे द्वारा हम ज्ञान व स्तवन की वृत्ति को प्राप्त करें। हम (सुवीराः) = उत्तम वीर बनते हुए (विदथे) = ज्ञानयज्ञों में (बृहद् वदेम) = खूब ही आपके महत्त्व का प्रतिपादन करें। प्राणापान के महत्त्व को अपने हृदयों पर अंकित करते हुए हम प्राणसाधना में प्रवृत्त हों और अपने जीवन को उत्कृष्ट बनाएं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणापान का हम स्तवन करें- इनके गुणों को समझकर प्राणसाधना करनेवाले बनें । इस प्राणसाधना से अपने ज्ञान व स्तवन की वृत्ति को बढ़ाएँ। सारा सूक्त प्राणापान के महत्त्व को बड़ी सुन्दरता से व्यक्त कर रहा है। इस साधना का सर्वमहान् लाभ यह होगा कि हमारे में सोम व पूषन् दोनों तत्त्वों का वर्धन होगा। 'सोम' चन्द्रमा है, यह रस का संचार करता है। 'पूषा' सूर्य है यह उस रस का परिपाक करता है। इसके संचार के अभाव में सब अन्न के दाने पत्थरों के कंकर प्रतीत होंगे तथा परिपाक के अभाव में कच्चा रस शरीर में रोगोत्पादन करेगा। मानव स्वभाव में भी सौम्यता व तेजस्विता का समन्वय ही अपेक्षित है। अकेली सौम्यता व अकेली तेजस्विता दोनों ही अभीष्ट नहीं। घर में माता पिता की सौम्यता ही सौम्यता सन्तानों को बिगाड़ देती है तथा तेजस्विता ही तेजस्विता उन्हें जला देती है - उनकी शक्तियाँ दबी रही जाती हैं- विकसित नहीं हो पातीं। प्राणसाधना से 'सोम व पूषा' दोनों का विकास होता है। अग्रिम सूक्त में इन्हीं का उल्लेख है ।

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    विषय

    विद्वानों वीरों और उत्तम स्त्री पुरुषों एवं वर वधू के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( अश्विना ) विद्वान् स्त्री पुरुपो ! एवं अश्वादि वेगवान् साधनों के स्वामियो ! ( गृत्समदासः ) उत्तम हर्षों और सुखों को चाहने चाले, या उत्तम प्रवचनों में हर्षित होने वाले विद्वान् पुरुष ( एतानि ) इन ( वाम् ) तुम दोनों के ( वर्धनानि ) शक्तियों और बलों को बढ़ाने वाले ( ब्रह्म ) वेदोपदेश, ऐश्वर्य ( स्तोमं ) स्तुति वचन और उपदेश ( अक्रन् ) करें ( तानि ) उनको हे ( नरा ) नायक, नायिके ! तुम दोनों ( जुजुषाणा ) प्रेमपूर्वक सेवन करते हुए ( उप यातम् ) परस्पर समीप रहकर आगे बढ़ो । हम लोग ( सुवीराः ) उत्तम वीरों और वीर्यवान् पुत्र सन्तानादि युक्त होकर ( वृहत् ) बहुत उत्तम ज्ञान विज्ञान का ( वदेम ) उपदेश, कथोपकथन और तुम्हारे गुण वर्णन करें । इति पञ्चमो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः- १ निचृत् त्रिष्टुप् । ३ विराट् त्रिष्टुप। ४, ७, ८ त्रिष्टुप। २ भुरिक् पङ्क्तिः। ५, ६ स्वराट् पङ्क्तिः॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे विद्वानांचे अनुकरण करतात ती महान बनतात. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    These words of homage, this holy song of celebration, the seekers of life’s joy and excitement offer to you. Ashvins, O leaders of humanity, accept these with love and grace, and come to bless us so that, blest with the brave, we speak and celebrate you highly and advance far ahead in our projects of life.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes and duties of the enlightened persons.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O teachers and evaluators ! the highly learned leaders, and persons who desire to attain true happiness have prepared for you these items of food which are nourishing for you. These praises and gifts of wealth and other kinds are for you. Accepting these with love and joy, come to us so that we being blessed with excellent descendants teach and preach great wisdom at the Yajnas in the form of imparting and receiving knowledge.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those persons become great who emulate or follow into the footsteps of great men.

    Foot Notes

    (अश्विनौ) सकल विद्याव्यापिनौ। =Pervading in or experts in various sciences. (ब्रह्म ) धनम् । ब्रह्मेति धननाम (NG /2/10 ) = Wealth (गृत्समदासः) गुत्सा अभिकांक्षिता मदा हर्षा यैस्ते = Desirous of the attainment of true happiness. (विदथे) विज्ञानमये यज्ञे। विदथ इति यज्ञानाम् (NG 3, 17) = In the Yajna form of propagation of knowledge. The interpretation of विदथे as विज्ञानमये यज्ञे has been given by Swami Dayananda. Sayanacharya, Wilson, Griffith and others have wrongly taken Gritsamadas as the name of a particular sage or his descendants. All Vedic words are derivatives and hence the meaning of गुत्समदास: is to be taken as गुत्सा: अभिकांछिता मदा हर्षा यैस्ते गुत्समदास:। According to the Vedic lexicon Nighantu (3.15), Gritsa means a genius or wiseman.

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