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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 36 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 36/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इन्द्रा॑य॒ सोमाः॑ प्र॒दिवो॒ विदा॑ना ऋ॒भुर्येभि॒र्वृष॑पर्वा॒ विहा॑याः। प्र॒य॒म्यमा॑ना॒न्प्रति॒ षू गृ॑भा॒येन्द्र॒ पिब॒ वृष॑धूतस्य॒ वृष्णः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑य । सोमाः॑ । प्र॒ऽदिवः॑ । विदा॑नाः । ऋ॒भुः । येभिः॑ । वृष॑ऽपर्वा । विऽहा॑याः । प्र॒ऽय॒म्यमा॑नान् । प्रति॑ । सु । गृ॒भा॒य॒ । इन्द्र॑ । पिब॑ । वृष॑ऽधूतस्य । वृष्णः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्राय सोमाः प्रदिवो विदाना ऋभुर्येभिर्वृषपर्वा विहायाः। प्रयम्यमानान्प्रति षू गृभायेन्द्र पिब वृषधूतस्य वृष्णः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्राय। सोमाः। प्रऽदिवः। विदानाः। ऋभुः। येभिः। वृषऽपर्वा। विऽहायाः। प्रऽयम्यमानान्। प्रति। सु। गृभाय। इन्द्र। पिब। वृषऽधूतस्य। वृष्णः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 36; मन्त्र » 2
    अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 19; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यथा वृषपर्वा विहाया ऋभुर्येभिः प्रयम्यमानान् जानाति तथेन्द्राय सोमाः प्रदिवो विदानाः सन्त्यैतान् यूयं विजानीत। हे इन्द्र त्वमेतान् प्रति सुगृभाय वृषधूतस्य वृष्णो रसं पिब ॥२॥

    पदार्थः

    (इन्द्राय) परमैश्वर्याय (सोमाः) ये सुन्वन्ति सूयन्ते वा ते पदार्थाः (प्रदिवः) प्रकृष्टा द्यौः प्रकाशमाना विद्या येषान्ते (विदानाः) लभमानाः (ऋभुः) मेधावी। ऋभुरिति मेधाविना०। निघं० ३। १५। (येभिः) यैः (वृषपर्वा) वृषाणि समर्थानि पर्वाणि पालनानि यस्य सः (विहायाः) योऽनर्थान् विजहाति सः (प्रयम्यमानान्) प्रकर्षेण प्रापितनियमान् (प्रति) (सु) (गृभाय) गृहाण (इन्द्र) ऐश्वर्य्ययुक्त (पिब) (वृषधूतस्य) वृषैः सेचनैर्यो धूतो विलोडितस्तस्य (वृष्णः) वर्धकस्य ॥२॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या इह संसारे यथाऽऽप्ता दुष्टं व्यवहारं त्यक्त्वा श्रेष्ठमाचर्य्य युक्ताहारविहारेणारोगा दीर्घायुषो भवन्ति तथैव यूयमपि भवत ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे (वृषपर्वा) समर्थ पालनोंवाला (विहायाः) अनर्थों का नाशकारी (ऋभुः) बुद्धिमान् जन (येभिः) जिन लोगों से (प्रयम्यमानान्) अत्यन्त नियमयुक्तों को जानता है वैसे (इन्द्राय) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के लिये (सोमाः) उत्पन्न करनेवाले वा उत्पन्न किये गये पदार्थ (प्रदिवः) प्रकाशित विद्यायुक्त (विदानाः) प्राप्त हुए हों इनको आप लोग जानिये हे (इन्द्र) ऐश्वर्य्य से युक्त पुरुष ! आप इन लोगों को (प्रति, सु, गृभाय) अच्छे प्रकार ग्रहण कीजिये और (वृषधूतस्य) सेचनों से मथे हुए (वृष्णः) बढ़ानेवाले रस का (पिब) पान कीजिये ॥२॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! इस संसार में जैसे श्रेष्ठ यथार्थवक्ता पुरुष दुष्ट व्यवहार का त्याग और श्रेष्ठ आचरण का ग्रहण करके नियमित आहार विहार से रोगरहित और अधिक अवस्थावाले होते हैं, वैसे ही आप लोग भी हूजिये ॥२॥

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    विषय

    ऋभु, वृषपर्वा व विहायाः

    पदार्थ

    [१] (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिए (प्रदिवः) = प्रकृष्ट प्रकाशवाले (सोमाः) = सोमकण (विदाना:) = प्राप्त कराए जाते हैं [विद् लाभे]। वे सोमकण प्राप्त कराए जाते हैं, (येभिः) = जिनसे वह (ऋभुः) = दीप्त बनता है, (वृषपर्वा) = अंग-प्रत्यंग में-पर्व पर्व में शक्तिशाली बनता है कि और होना पाता है (विहाया:) = महान् होता है। मस्तिष्क में 'ऋभु', शरीर में 'वृषपर्वा' तथा हृदय में 'विहाया: ' बनानेवाले ये सोमकण ही होते हैं। [२] इसलिए (प्रयम्यमानान्) = शरीर में ही जिनका संयम किया जा रहा है, उन सोमकणों को (प्रति षू गृभाय) = प्रतिदिन सम्यक् ग्रहण करनेवाला तू हो। हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष! तू (वृष्णः) = इस शक्तिशाली (वृषधूतस्य) = शक्ति द्वारा रोगकृमिरूप शत्रुओं को कम्पित करनेवाले [वृषः च असौ धूतः] इस सोम का (पिब) = पान कर ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम के रक्षण से ही मनुष्य दीप्त मस्तिक, विशाल हृदय व सशक्त शरीरवाला दृढांग बनता है।

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    विषय

    पक्षान्तर में आत्मा परमात्मा का वर्णन।

    भावार्थ

    (प्रदिवः) उत्तम प्रकाश वाले, तेजस्वी, उत्तम कामना वाले (सोमाः) सौम्य स्वभाव के शिष्यगण (विदानाः) ज्ञान लाभ करते हुए (इन्द्राय) अज्ञाननाशक इन्द्र, आचार्य की ही वृद्धि के लिये होते हैं (येभिः) जिनसे वह (विहायाः) विशेष २, विविध विद्याओं का दान करने वाला (वृषपर्वा) वर्षणशील मेघ के समान शिष्यों को पूर्ण और पालन करने वाला गुरु ही (ऋभुः) सत्य ज्ञान से प्रकाशमान महान् हो जाता है। हे (इन्द्र) विद्वन् ! गुरो ! तू (प्रयम्यमानान्) उत्तम रीति से यम नियमों का पालन करने वाले विद्यार्थी जनों को (प्रति-गृभाय) अपने अधीन ले। और (वृषधूतस्य) ज्ञानरूप जलों के सेचन करने वाले विद्वानों द्वारा अज्ञानों से रहित हुए (वृष्णः) बली, वीर्यवान् शिष्य का (पिब) पालन कर। (२) उत्तम चमकीले ये ऐश्वर्य सब उसी शत्रुहन्ता के लिये हैं। जिन्हों से वही सर्वत्यागी, बलवान् पालक महान् हो जाता है। वह (प्रयम्यमानान्) अच्छी प्रकार संयम किये जाते हुए शत्रुओं को पकड़े, और बलवान् पुरुषों से आलोडित प्रबल राष्ट्र का भोग करे। (३) अध्यात्म में—विरक्त सर्वत्यागी ‘विहायाः’ है और आकाशवत् व्यापक विशुद्ध परमेश्वर भी ‘विहायाः’ है। ये सब ऐश्वर्य जीवगण वा आनन्दरस उसी के हैं। उत्तम नियम में स्थित लोकों और प्राणों को वही धारण करता है। वही उस परम बल और प्राण को धारण करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्रः। १० घोर आङ्गिरस ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:- १, ७, १०, ११ त्रिष्टुप्। २, ३, ६, ८ निचृत्त्रिष्टुप्। विराट् विष्टुप्। ४ भुरिक् पङ्क्तिः। ५ स्वराट् पङ्क्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! या जगात जसे श्रेष्ठ पुरुष दुष्ट व्यवहाराचा त्याग व श्रेष्ठ आचरणाचे ग्रहण करून नियमित आहार-विहाराने रोगरहित व दीर्घायू होतात तसेच तुम्ही लोकही व्हा. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, the somas, essences of energy and enlightenment, are distilled from the heavens by enlightened people for advancement of the honour and excellence of life, by which Rbhu, master of intelligence and expertise in social affairs, grows strong in every aspect of development and destroys the evil which must be destroyed.$Indra, lord ruler, drink of this powerful, inspiring, elevating vitality of strength and enlighten ment, and hold and govern the elements under control for the protection, promotion and advancement of honour and excellence.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The right type of conduct is described.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! a mighty person who is capable to protect others, and who has given up all evils, is really a genius. He knows those who observe proper mores of conduct. In the same manner, you should know good and invigorating foodstuffs and the persons who possess bright and shining knowledge and have acquired all mundane subjects. I possess abundant wealth. Be favorably disposed to such enlightened men and drink the invigorating well effused juice.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! absolutely truthful persons, become healthy and long lived by giving up all evil conduct, by observing all rules of righteous conduct and by observing all the rules of right conduct and by regulating their lives, you should also emulate.

    Foot Notes

    (प्रदिव:) प्रकृष्टा द्योः प्रकाशमाना विद्या येषान्ते । = Endowed with shining knowledge. (वृषाणि) वृषाणि समर्थानि पालनानि यस्य स:= Who is able to protect others. (विहायाः ) योऽनर्थान् विजहाति स:। = Who abandons all evils.

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