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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 41 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 41/ मन्त्र 5
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    म॒तयः॑ सोम॒पामु॒रुं रि॒हन्ति॒ शव॑स॒स्पति॑म्। इन्द्रं॑ व॒त्सं न मा॒तरः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒तयः॑ । सो॒म॒ऽपाम् । उ॒रुम् । रि॒हन्ति॑ । शव॑सः । पति॑म् । इन्द्र॑म् । व॒त्सम् । न । मा॒तरः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मतयः सोमपामुरुं रिहन्ति शवसस्पतिम्। इन्द्रं वत्सं न मातरः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मतयः। सोमऽपाम्। उरुम्। रिहन्ति। शवसः। पतिम्। इन्द्रम्। वत्सम्। न। मातरः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 41; मन्त्र » 5
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    ये मतयः शवसस्पतिमुरुं सोमपामिन्द्रं मातरो वत्सं न रिहन्ति ते सुखं लभन्ते ॥५॥

    पदार्थः

    (मतयः) प्रज्ञायुक्ता मनुष्याः (सोमपाम्) ऐश्वर्य्यरक्षकम् (उरुम्) बह्वैश्वर्य्यम् (रिहन्ति) लिहन्ति (शवसः) बलस्य (पतिम्) पालकम् (इन्द्रम्) ऐश्वर्य्ययुक्तम् (वत्सम्) (न) इव (मातरः) गावः ॥५॥

    भावार्थः

    यथा गावो वात्सल्यभावमाश्रित्य वत्सेषूत्तमं प्रेम दधाति तथैव राजादयोऽध्यक्षाः सेनाः वात्सल्यभावेन रक्षन्तु ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    जो (मतयः) उत्तम बुद्धि से युक्त मनुष्य लोग (शवसः) बल के (पतिम्) पालन करनेवाले (उरुम्) बहुत ऐश्वर्य्य से पूर्ण (सोमपाम्) ऐश्वर्य्य के रक्षक (इन्द्रम्) ऐश्वर्य्य से युक्त पुरुष (मातरः) गौवें (वत्सम्) बछड़े को (न) जैसे (रिहन्ति) चाटती वैसे मिलते हैं, वे सुख को प्राप्त होते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    जैसे गौवें प्रेमभाव का आश्रयण करके बछड़ों में प्रेम धारण करती हैं, वैसे ही राजा आदि अध्यक्ष पुरुष सेनाओं की प्रजाओं के प्रेमभाव से रक्षा करें ॥५॥

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    विषय

    सोमपा उरु-शवसस्पति

    पदार्थ

    [१] (मतयः) = ज्ञानपूर्वक (मननपूर्वक) स्तवन करनेवाले ज्ञानी उपासक इन्द्रम् उस सब शत्रुओं के विद्रावक प्रभु को रिहन्ति आस्वादित करते हैं। इस प्रकार आस्वादित करते हैं, न जैसे कि मातरः = मातृभूत धेनुएँ वत्सम् बछड़े को स्वाद से चाटती हैं। एक ज्ञानी भक्त प्रभुभक्ति में ही आनन्द का अनुभव करता है। (२) उस प्रभु की भक्ति में आनन्द का अनुभव करता है, जो प्रभु सोमपाम् सोम का रक्षण करते हैं। प्रभुभक्ति से वासना विनष्ट होती है और सोम का रक्षण होता है। उरुम्-जो प्रभु विशाल हैं। प्रभु-भक्त सदा विशाल हृदयवाला होता है। शवसः पतिम् = जो प्रभु बल के स्वामी हैं। प्रभु-भक्त प्रभु की शक्ति से शक्ति सम्पन्न होता है। भावार्थ- ज्ञानी भक्त (क) सोम का रक्षण कर पाता है, [ख] विशाल हृदयवाला होता है,[ग] शक्ति का स्वामी होता है।

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    विषय

    विवेक से राष्ट्र का पालन और उपभोग करे।

    भावार्थ

    (मतयः) मननशील लोग (सोमपाम्) ऐश्वर्यों के रक्षक, (उरुं) महान्, (शवसस्पतिम्) बलों के पालक (इन्द्रं) ऐश्वर्यवान् शत्रुहन्ता पुरुष को (वत्सं मातरः न) बच्चे को माता गौएं जैसे (रिहन्ति) प्रेम से चूमती चाटती हैं उसी प्रकार (रिहन्ति) प्रेम करके सुखी होती हैं। इति तृतीयो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१ यवमध्या गायत्री। २, ३, ५,९ गायत्री । ४, ७, ८ निचृद्गायत्री। ६ विराड्गायत्री। षड्जः स्वरः॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसे गायींना वासराबद्दल वात्सल्य व प्रेमभाव असतो तसेच राजा इत्यादी अध्यक्ष पुरुषांनी सेना व प्रजा यांचे प्रेमभावाने रक्षण करावे. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Intelligent people love Indra, great and broad minded, lover of soma and protector of honour and prosperity, and commander of strength and power, just the same way as cows love their calf.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The subject of Agni is further explained.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The wisemen intensely love (lit. lick) the opulent king who is protector of wealth and strength. It is like the cows who love their calves.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the cows intensely love their calves, so the king and chiefs of various government branches should protect and look after their subordinates and armies with love.

    Foot Notes

    (मतयः) प्रज्ञायुक्ता मनुष्याः । मतय इति मेधादि नाम (NG 3 15,) Wise men. (सोमपाम) ऐश्वर्य्यरक्षकम् =Protector or guardian )= of prosperity. (शववस:) बलस्य । शव इति बल नाम (N.G. 2, 9) Of strength.

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