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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 5/ मन्त्र 4
    ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    मि॒त्रो अ॒ग्निर्भ॑वति॒ यत्समि॑द्धो मि॒त्रो होता॒ वरु॑णो जा॒तवे॑दाः। मि॒त्रो अ॑ध्व॒र्युरि॑षि॒रो दमू॑ना मि॒त्रः सिन्धू॑नामु॒त पर्व॑तानाम्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मि॒त्रः । अ॒ग्निः । भ॒व॒ति॒ । यत् । सम्ऽइ॑द्धः । मि॒त्रः । होता॑ । वरु॑णः । ज॒तऽवे॑दाः । मि॒त्रः । अ॒ध्व॒र्युः । इ॒षि॒रः । दमू॑नाः । मि॒त्रः । सिन्धू॑नाम् । उ॒त । पर्व॑तानाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मित्रो अग्निर्भवति यत्समिद्धो मित्रो होता वरुणो जातवेदाः। मित्रो अध्वर्युरिषिरो दमूना मित्रः सिन्धूनामुत पर्वतानाम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मित्रः। अग्निः। भवति। यत्। सम्ऽइद्धः। मित्रः। होता। वरुणः। जातऽवेदाः। मित्रः। अध्वर्युः। इषिरः। दमूनाः। मित्रः। सिन्धूनाम्। उत। पर्वतानाम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 5; मन्त्र » 4
    अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यद्यस्सिन्धूनामुत पर्वतानां समिद्धोऽग्निरिव मित्रो होतेव मित्रो जातवेदा इव वरुणोऽध्वर्य्युरिव मित्र इषिरो दमूना इव मित्रो भवति तं सत्कुरुत ॥४॥

    पदार्थः

    (मित्रः) सुहृत् (अग्निः) पावकइव (भवति) (यत्) यः (समिद्धः) प्रदीप्तः (मित्रः) (होता) आदातेव (वरुणः) वरः (जातवेदाः) यथा जातानां सर्वेषां पदार्थानां वेत्ता जगदीश्वरः (मित्रः) (अध्वर्युः) आत्मनोऽध्वरमहिंसाधर्ममिच्छुः (इषिरः) इच्छुः (दमूनाः) दमनशीलः (मित्रः) (सिन्धूनाम्) नदीनाम् (उत) अपि (पर्वतानाम्) शैलानाम् ॥४॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यो नदीशैलौषध्यादीनां किरणद्वारा पोषकः शोषको वा भवति तथा सखायो धर्मे पोषका अधर्मे शोषका अर्थात् धर्मे प्रवर्त्तका अधर्मान् निवर्त्तका भवन्ति ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (यत्) जो (सिन्धूनाम्) नदियों (उत) और (पर्वतानाम्) बड़ी शिलाओं के बीच (समिद्धः) प्रदीप्त (अग्निः) अग्नि के समान (मित्रः) मित्र वा (होता) ग्रहण करनेहारे के तुल्य (मित्रः) मित्र वा (जातवेदाः) उत्पन्न हुए पदार्थों के जाननेवाले जगदीश्वर के समान (वरुणः) श्रेष्ठ वा (अध्वर्य्युः) अपने को अहिंसा धर्म की इच्छा करनेवाले के समान (मित्रः) मित्र वा (इषिरः) इच्छा करनेवाले (दमूनाः) दमनशील के समान (मित्रः) मित्र (भवति) होता है उसका सत्कार करिये ॥४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य नदी, शैल और ओषधि आदिकों को किरणों के द्वारा पुष्ट करने वा उनको सुखानेवाला होता है, वैसे मित्र जन धर्म में पुष्टिकारक और अधर्म से निवर्तक होते हैं ॥४॥

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    विषय

    सिन्धुओं व पर्वतों का मित्र

    पदार्थ

    [१] (अग्निः) = वे अग्रणी प्रभु (यत् समिद्धः) = जब दीप्त होते हैं, अर्थात् स्वाध्याय व स्तवन द्वारा जब हृदयों में प्रभु का प्रकाश होता है तो वे (मित्रः) = [प्रमीते: त्रायते] हमें पाप व रोगों से बचानेवाले भवति होते हैं (मित्रः) = रोगों व पापों से बचानेवाले प्रभु (होता) = सब कुछ देनेवाले हैं, (वरुणः) = हमें पापों से बचानेवाले हैं तथा (जातवेदा:) = ज्ञान का प्रकाश करनेवाले हैं। वस्तुत: आबश्यक चीजें देकर, पाप रोककर तथा ज्ञान प्राप्त कराके ही प्रभु हमारे मित्र होते हैं । [२] वे (मिंत्र:) = मित्र प्रभु (अध्वर्युः) = हमारे जीवनयज्ञ को चलानेवाले हैं, (इषिर:) = प्रेरणा को देनेवाले हैं तथा (दमूना:) = सदा हमारे लिये दान के मनवाले हैं, अथवा हमें दान्त मनवाला बनाते हैं। वे प्रभु (मित्रः) = मित्र उन्हीं के हैं जो कि (सिन्धूनाम्) = [स्यन्दन्ते] नदियों के प्रवाह की तरह कर्म के प्रवाहवाले हैं- क्रियाशील स्वभाववाले हैं। (उत) = और (पर्वतानाम्) = [पर्व पूरणे] जो आत्मालोचन द्वारा अपनी कमियों को देखकर उन कमियों को दूर करनेवाले हैं। कमियों को दूर करके अपना पूरण करनेवाले हैं। इन सिन्धुओं व पर्वतों के ही प्रभु मित्र हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम क्रियाशील व न्यूनताओं को दूर करने की वृत्तिवाले बनें। ऐसा होने पर हम प्रभु की मित्रता पा सकेंगे ।

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    विषय

    पक्षान्तर में परमेश्वर का वर्णन अग्रणी नायक का वर्णन।

    भावार्थ

    (यत् समिद्धः अग्निः मित्रः) जिस प्रकार खूब प्रदीप्त, प्रज्वलित और प्रकाशित, दीप्तिमान् अग्नि (मित्रः) मनुष्य के मित्र के समान सहायकारी होता है उसी प्रकार (अग्निः) ज्ञानी विद्वान् पुरुष और अग्रणी नायक, (यत् समिद्धः) जो ज्ञानों और गुणों में अच्छी प्रकार प्रकाशित हो जाता है वह (मित्रः) स्नेही मित्र के समान सबका सुहृत् (भवति) हो । वह (मित्रः) सबका स्नेही, सबको मरने से बचाने चाला, (होता) ज्ञान और अन्न का देनेहारा, (वरुणः) सर्वश्रेष्ठ, और कष्टों का वारण करने वाला, (जातवेदाः) सब ऐश्वर्यों और ज्ञानों का स्वामी (भवति) हो । वही (मित्रः) सबका स्नेही सुहृद् होकर (अध्वर्यु:) सब किसी की भी हिंसा या पीड़ा की कामना न करता हुआ, अहिंसा-व्रती (इषिरः) स्वयं दृढ़ इच्छा शक्ति से सम्पन्न, और सबको प्रेरण करने में समर्थ (दमूनाः) स्वयं मन, इन्द्रियों को जीतने में समर्थ हो। वही (सिन्धूनां) नदियों के समान वेग से जाने वाले सेनाओं, या प्रजाओं (उत) और (पर्वतानाम्) पर्वतों के समान अभेद्य, दृढ़ एवं पालन शक्तियों से युक्त बड़े २ शासक जनों का भी (मित्रः भवति) मित्र, सहायक हो जाता है। (२) परमेश्वर पक्ष मेंहृदय में—अतिदीप्त प्रकाशवान् परमेश्वर ही परम मित्र है, वह सब कुछ देता, सर्वश्रेष्ठ, सवैश्वर्य का स्वामी, अहिंसक, पालक, प्रेरक, दमनकर्त्ता, प्राणों, जलों, प्रकृति के परमाणु और पर्वतों और पालक तत्वों का (मित्रः) मापक और पालक है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः– १, २, ११ भुरिक् पंक्तिः। ३ पंक्तिः। ६ स्वराट् पंक्तिः। ४ त्रिष्टुप् । ५, ७, १० निचृत् त्रिष्टुप्। ८,९ विराट् त्रिष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य, नदी, पर्वत व औषधी इत्यादींना किरणांद्वारे पुष्ट करणारा किंवा शुष्क करणारा असतो तसे मित्र धर्मात पुष्टिकारक व अधर्माचे निवर्त्तक असतात. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni rises as a friend when it is lighted and raised. As a yajaka conducting the yajna of evolution and development it is a friend. As the omniscient lord of existence and as presiding power of justice it is a friend. As the highpriest of the yajna of love and non violence it is a friend, and as the power of inspiration and self-control it is a friend. And it is a friend as it flows with the rivers and rolls with the oceans. And finally it is a friend as it sits on top of mountains and sustains their steadiness.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The enlightened persons' duties are narrated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    God is the friend of the seas and the mountains (or the people living on the shore of the seas and hills for meditation and communion ). He is the friend and benevolent like kindled fire. He is a friend like the performer of the Yajnas. He is Omniscient and is the Best. Moreover, devotee of God should also be respected who is a friend like a non-violent person, who is well wisher of all and is a friend like a man of self-control.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the sun (which is also addressed as Mitra in the Vedas) is nourisher of the rivers, mountains and plants by it's rays and is dispeller of darkness or impurity, in the same manner, friends are supporters of righteousness and eradicators of unrighteousness.

    Foot Notes

    (जातवेदाः) यथा जातानां सर्वेषां पदार्थानां वेत्ता जगदीश्वरः = God who is Omniscient. (अध्वर्यु:) आत्मनोऽध्वरमहंसाधर्ममिच्छुः । अध्वर इति यज्ञनाम ध्वरति हिंसाकर्मा तत्प्रतिषेधः (N.R.T. 1, 3, 8) ध्वरति वधकर्मा । (N.G. 3, 19) = Desiring the observance of non-violence.

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