ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 61/ मन्त्र 6
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - उषाः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
ऋ॒ताव॑री दि॒वो अ॒र्कैर॑बो॒ध्या रे॒वती॒ रोद॑सी चि॒त्रम॑स्थात्। आ॒य॒तीम॑ग्न उ॒षसं॑ विभा॒तीं वा॒ममे॑षि॒ द्रवि॑णं॒ भिक्ष॑माणः॥
स्वर सहित पद पाठऋ॒तऽव॑री । दि॒वः । अ॒र्कैः । अ॒बो॒धि॒ । आ । रे॒वती॑ । रोद॑सी॒ इति॑ । चि॒त्रम् । आ॒स्था॒त् । आ॒य॒तीम् । अ॒ग्ने॒ । उ॒षस॑म् । वि॒ऽभा॒तीम् । वा॒मम् । ए॒षि॒ । द्रवि॑णम् । भिक्ष॑माणः ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋतावरी दिवो अर्कैरबोध्या रेवती रोदसी चित्रमस्थात्। आयतीमग्न उषसं विभातीं वाममेषि द्रविणं भिक्षमाणः॥
स्वर रहित पद पाठऋतऽवरी। दिवः। अर्कैः। अबोधि। आ। रेवती। रोदसी इति। चित्रम्। आस्थात्। आयतीम्। अग्ने। उषसम्। विऽभातीम्। वामम्। एषि। द्रविणम्। भिक्षमाणः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 61; मन्त्र » 6
अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 8; मन्त्र » 6
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अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 8; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ प्रातर्वेलाया एव गुणानाह।
अन्वयः
हे अग्ने विद्वन् ! या रेवती ऋतावरी दिवो जातोषा अर्कैरबोधि रोदसी आस्थात् तामायतीं विभातीमुषसं प्राप्य समाधिना जगदीश्वरं भिक्षमाणस्त्वं चित्रं वामं द्रविणमेषि ॥६॥
पदार्थः
(ऋतावरी) ऋतं सत्यं विद्यते यस्यां सा (दिवः) प्रकाशात् (अर्कैः) सूर्यैः (अबोधि) बुध्यते (आ) (रेवती) प्रशस्तधनकारिणी (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (चित्रम्) अद्भुतम् (अस्थात्) तिष्ठति (आयतीम्) आगच्छन्तीम् (अग्ने) विद्वन् (उषसम्) (विभातीम्) प्रकाशयन्तीम् (वामम्) प्रशस्तम् (एषि) प्राप्नोषि (द्रविणम्) धनम् (भिक्षमाणः) याचमानः ॥६॥
भावार्थः
ये जना रात्रेश्चतुर्थे यामे प्रबुध्येश्वरस्य स्तुतिप्रार्थनोपासनाः कृत्वा शुभान्गुणानैश्वर्य्यं च याचन्ते ते पुरुषार्थेनाऽवश्यमेतत्प्राप्नुवन्ति ॥६॥
हिन्दी (4)
विषय
अब प्रातर्वेला ही के गुणों को कहते हैं।
पदार्थ
हे (अग्ने) विद्वान् जन ! जो (रेवती) उत्तम धन करनेवाली (ऋतावरी) जिसमें सत्य विद्यमान ऐसी (दिवः) प्रकाश से उत्पन्न हुई वेला (अर्कैः) सूर्य्यों से (अबोधि) जानी जाती है (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी को (आ, अस्थात्) अच्छे प्रकार स्थित करती है उस (आयतीम्) आती और (विभातीम्) प्रकाशित करती हुई (उषसम्) प्रभातवेला को प्राप्त होकर समाधि से जगदीश्वर की (भिक्षमाणः) याचना करते हुए आप (चित्रम्) अद्भुत (वामम्) उत्तम प्रशंसा योग्य (द्रविणम्) धन को (एषि) प्राप्त होते हो ॥६॥
भावार्थ
जो लोग रात्रि के चौथे पहर में जाग के ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करके उत्तमगुणों और ऐश्वर्य्य को माँगते हैं, वे पुरुषार्थ से अवश्य इसको प्राप्त होते हैं ॥६॥
विषय
'वाम द्रविण-प्रदा' उषा
पदार्थ
[१] (ऋतावरी) = ॠत का रक्षण करनेवाली यह उषा (दिवः अर्कैः) = प्रकाश की किरणों से (अबोधि) = जानी जाती है इसका प्रकाश सर्वत्र फैलता है। यह रेवती प्रकाशरूप धनवाली उषा (रोदसी) = द्यावापृथिवी में (चित्रं आ अस्थात्) = अद्भुत प्रकाशमयरूप से स्थित होती है, अर्थात् यह सम्पूर्ण द्यावापृथिवी को प्रकाशित करती है । [२] हे (अग्ने) = प्रगतिशील जीव! तू (आयतीम्) = प्रतिदिन आती हुई (विभातीम्) = प्रकाशमयी (उषसम्) = उषा से (भिक्षमाणः) = याचना करता हुआ (वामं द्रविणं एषि) = सुन्दर धनों को प्राप्त करता है। उषाकाल से जिसने याचना करनी है, वह अवश्य उषा से पूर्व ही उद्बुद्ध हो चुका होगा। यह उषाजागरण ही 'स्वास्थ्य मनःप्रसाद व तीव्रबुद्धि' रूप द्रविणों को प्राप्त कराता है।
भावार्थ
भावार्थ– उषा से हम उत्तम द्रविणों की याचना करें।
विषय
उषावत् स्त्री के उत्तम गुण और कर्त्तव्य।
भावार्थ
जिस प्रकार (ऋतावरी) सत्य प्रकाश से युक्त उषा (दिवः अर्कैः अबोधि) सूर्य के तेजों से जगती है वह (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी में (आ अस्थात्) सर्वत्र व्याप जाती है (आयतीम् विभातीं उषसं प्राप्य भिक्षमाणः अग्निः द्रविणं एति) उस व्यापक प्रकाश वाली उषा काल को प्राप्त होकर याचन करता हुआ विनयशील भक्त द्रुत, रसमय ज्ञान को प्राप्त होता है उसी प्रकार (ऋतवरी) सत्य ज्ञान, उत्तम ऐश्वर्यवती स्त्री (दिवः) कामनावान् पति के (अर्कैः) उत्तम अर्चना योग्य गुणों और प्रशंसा वचनों से ही (अबोधि) जानी जाती है वह (रेवती) उत्तम गुणों और लक्षणों से सम्पन्न, सौभाग्यवती कन्या वा स्त्री (रोदसी) आकाश और पृथिवी के समान अपने माता पिता वा पितृकुल और मातृकुल दोनों में (आ अस्थात्) आदर से प्राप्त हो। हे (अग्ने) ज्ञानवन् विद्वन् ! हे अग्रणी नायक ! तू (वामं) प्राप्त करने योग्य, उत्तम, (द्रविणं) ऐश्वर्य के समान (आयती) आती हुई, (विभाती) विशेष गुणों से चमकती हुई (उषसम्) कमनीय, कान्तिमती कन्या की (भिक्षमाणः) उसके पिता से प्रार्थना करता हुआ (एषि) उसे प्राप्त हो। ययाति आदि उत्तम विद्वान् राजकुमारों ने भी गुणवती कन्या प्राप्त करके भी उनके पिताओं से ही याचना करके प्राप्त किया। वे इतिहास इस मन्त्र की व्याख्या हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ उषा देवता॥ छन्द:- १, ५, ७ त्रिष्टुप्। २ विराट् त्रिष्टुप। ६ निचृत्त्रिष्टुप्। ३, ४ भुरिक् पङ्क्तिः॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(दिवः-अर्कैः-अबोधि) द्युलोक से द्युलोक में वर्तमान सूर्य से “व्यत्ययेन बहुवचनम्" जानी जाती है-प्रकाश में आती वह उषा या मन में वर्तमान अर्चनभाव से बोधित होती है (ऋतावरी) सत्य ज्ञानवाली है उसे देख ज्ञान मानव में उद्भव होता है या सदाचरणवाली वह ऐसी (रेवती) ऐश्वर्यवती (रोदसी चित्रम्-अस्थात्) आकाशभूमि में आश्चर्य बनकर रहती है (अग्ने) अणायक वैज्ञानिक या गृहस्थाश्रम के नायक जन ! (आयती विभातीम्-उषसम्) इस आती हुई भासमाना प्रातःकालीन ज्योति को या नवागत वधू को । (वामं द्रविणं भिक्षमाण:-एषि) वननीय श्रेष्ठ धन-ज्ञान या पुत्र की याचना करता हुआ प्राप्त हो ॥६॥
टिप्पणी
'मधुधा'-मधुराणि वाक्यानि सोमं वा दधाति यदूवाऽऽदित्यधात्री यद्वा अवग्रहाभावादखण्डं पदम्-उषो नाम (सायणः) 'रणवसन्दृक्' रवि गत्यर्थः, शृः सर्वधातुभ्योऽच् पुनस्तत्तुल्यः
विशेष
ऋषिः-विश्वामित्रः (सर्वमित्र-"विश्वामित्रः-सर्वमित्रः") (निरु० २।२५ विद्यासूर्यविद्वान्—नवस्नातक) देवता- उषाः (प्रातस्तनी प्रत्यग्रप्रकाशप्रभा एवं नवस्नातक की प्रत्यग्रज्ञान ज्योतिष्मती नववधू)
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक रात्रीच्या चौथ्या प्रहरी जागे होऊन ईश्वराची स्तुती, प्रार्थना, उपासना करून उत्तम गुण व ऐश्वर्य मागतात ते पुरुषार्थाने अवश्य ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Observing the Law of Divinity, descending from the heights of heaven, the dawn is revealed by the showers of light, rich in wealth and splendour, illuminating the earth and skies with wondrous beauty.$Agni, enlightened performer of yajna, watching the rising dawn shining in glory, and praying to the Almighty, you attain the wealth of your heart’s desire.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The benefits of the dawn are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned person ! the Ushas ( Dawn) possesses truth and wealth of wisdom born from light and illumined by the rays of the sun. She is the cause of the admirable wealth (of wisdom and material), and has taken a marvelous position in earth and heaven. Having availed that charming and marvelous time of the Dawn, pray to God for His communion in a trance and obtain wonderful wealth of all kinds.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The persons who get up early in the morning (in the last fourth lag of the night-at about 4 A.M.) glorify, pray to the and have communion with God and seek for the attainment of noble virtues and true wealth. They attain all this by toiling hard and consciously.
Translator's Notes
Ushas has been called ऋतावरी and a meaning the possessor of truth and wealth of wisdom etc. At the Dawn, the Yogis meditate Great God and get the knowledge of perfect, truth and attain true wisdom.
Foot Notes
(वाभम् ) प्रशस्तम् । = Admirable, noble. (दिवः) प्रकाशात् । = From light. (अर्कै: सूर्येः । = With the rays of the sun.
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