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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 7/ मन्त्र 5
    ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    जा॒नन्ति॒ वृष्णो॑ अरु॒षस्य॒ शेव॑मु॒त ब्र॒ध्नस्य॒ शास॑ने रणन्ति। दि॒वो॒रुचः॑ सु॒रुचो॒ रोच॑माना॒ इळा॒ येषां॒ गण्या॒ माहि॑ना॒ गीः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    जा॒नन्ति॑ । वृष्णः॑ । अ॒रु॒षस्य॑ । शेव॑म् । उ॒त । ब्र॒ध्नस्य॑ । शास॑ने । र॒ण॒न्ति॒ । दि॒वः॒ऽरुचः॑ । सु॒ऽरुचः॑ । रोच॑मानाः । इळा॑ । येषा॑म् । गण्या॑ । माहि॑ना । गीः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जानन्ति वृष्णो अरुषस्य शेवमुत ब्रध्नस्य शासने रणन्ति। दिवोरुचः सुरुचो रोचमाना इळा येषां गण्या माहिना गीः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जानन्ति। वृष्णः। अरुषस्य। शेवम्। उत। ब्रध्नस्य। शासने। रणन्ति। दिवःऽरुचः। सुऽरुचः। रोचमानाः। इळा। येषाम्। गण्या। माहिना। गीः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 7; मन्त्र » 5
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ के महात्मानो भवन्तीत्याह।

    अन्वयः

    येषां गण्येळा माहिना गीर्वर्त्तते ते रोचमाना दिवोरुचः सुरुचो रणन्ति वृष्णोऽरुषस्य ब्रध्नस्य शासने शेवमुत विज्ञानं जानन्ति ॥५॥

    पदार्थः

    (जानन्ति) (वृष्णः) बलिष्ठस्य (अरुषस्य) अश्वस्येव (शेवम्) सुखम्। शेवमिति सुखना०। निघं०२। ३। (उत) अपि (ब्रध्नस्य) महतः (शासने) शिक्षायामाज्ञायां वा (रणन्ति) शब्दायन्ते (दिवोरुचः) विज्ञानप्रकाशे रुचिकरः (सुरुचः) सुप्रीतिसंपादकाः (रोचमानाः) रुचिमन्तः (इळा) स्तोतव्या वाक् (येषाम्) (गण्या) सङ्ख्यातुं योग्या (माहिना) सत्कर्त्तव्या (गीः) वाणी ॥५॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या विदुषां शिक्षायां स्थिरा भवन्ति ते प्रशंसिता विद्वांसो भूत्वा महान्तो जायन्ते ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब कौन महात्मा होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    (येषाम्) जिनकी (गण्या) गणना करने योग्य (इडा) स्तुति और (माहिना) सत्कार करने योग्य (गीः) वाणी है वे (रोचमानाः) रुचिवाले हुए (दिवोरुचः) विज्ञानरूप प्रकाश में रुचि करनेवाले (सुरुचः) सुन्दर प्रीति के उत्पादक विद्वान् लोग (रणन्ति) शब्द करते हैं तथा (वृष्णः) बलिष्ठ (अरुषस्य) घोड़े के तुल्य वेगयुक्त (ब्रध्नस्य) महान् राजपुरुष की (शासने) शिक्षा में (शेवम्) सुख (उत) और विज्ञान को (जानन्ति) जानते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य विद्वानों की शिक्षा में स्थिर होते हैं, वे प्रशंसित विद्वान् होकर महात्मा होते हैं ॥५॥

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    विषय

    वृषा+अरुष्य [दिवोरुचः, सुरुचः व रोचमाना:]

    पदार्थ

    [१] गतमन्त्र के साधक लोग (वृष्णः) = शक्तिशाली (अरुषस्य) = आरोचमान अथवा [अ+रुष] क्रोधरहित पुरुष के (शेवम्) = सुख को (जानन्ति) = जानते हैं। जब ये शक्ति व ज्ञान का विकास करते हैं तो इन्हें वह सुख प्राप्त होता है जो कि शरीर में शक्ति सम्पन्न व मस्तिष्क में ज्ञान से आरोचमान पुरुष को प्राप्त होता है । [२] (उत) = और ये लोग (ब्रघ्नस्य) = उस महान् प्रभु के शासने शासन में (रणन्ति) = [रमन्ते] आनन्द अनुभव करते हैं। प्रभु की आज्ञा में चलते हुए आनन्दमय जीवनवाले होते हैं। [३] ये लोग (दिवः रुच:) = ज्ञान की रुचिवाले होते हैं, (सुरुचः) = मन में उत्तम रुचियोंवाले व शुभ इच्छाओंवाले होते हैं, (रोचमाना:) = अपनी तेजस्विता के कारण चमकते हैं। कौन ? (येषाम्) = जिनकी (इडा) = वाणी (गण्या) = गणनीय-संख्यावाली-ज्ञानवाली होती है। जिनकी (गी:) = वाणी (माहिना) = पूजावाली होती है, अर्थात् जो ज्ञान की वाणियों का अध्ययन करते हैं तथा स्तुतिवाणियों का उच्चारण करते हैं, वे ही 'दिवोरुच्, सुरुच् व रोचमान' होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- स्वाध्याय व ध्यान की रुचिवाले लोग ज्ञानी, शुभ इच्छाओंवाले व तेजस्वी बनते हैं।

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    विषय

    राजा प्रजावत् गुरु शिष्य।

    भावार्थ

    (येषां) जिनकी (इळा) इच्छा और स्तुति योग्य वाणी और भूमि (गण्या) गणना करने योग्य, पूज्य एवं गण अर्थात् सैन्य दलों और जनों की हितकारिणी और (गाः) उत्तम वाणी, उपदेश (माहिना) बड़ी महत्त्वपूर्ण सत्कार करने योग्य होती है वे (दिवः रुचः) प्रकाश से कान्तिमान् सूर्यों के समान तेजस्वी, विद्या प्रकाश में रुचि रखने वाले (सुरुचः) उत्तम कान्तियुक्त, सुखप्रद, उत्तम रुचियों वाले (रोचमानाः) स्वयं चमकते हुए, सबको अच्छे लगते हुए, सर्वप्रिय होते हैं। वे (अरुषस्य) अहिंसक, रोषरहित, तेजस्वी (वृष्णः) बलवान् आचार्य, राजा या सेनापति के (शासने) शासन या उपदेश में (शेवं जानन्ति) सुख अनुभव करते हैं। (उत्) और वे ही (ब्रध्नस्य) सबको नियम व्यवस्था में बांधने वाले, सर्वाश्रय, सूर्यवत् तेजस्वी आचार्य राजा के (शासने) शासन में (रणन्ति) उत्तम ज्ञान का अभ्यास करते और अति प्रसन्न होते हैं। इति प्रथमो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः- १, ६, ९, १० त्रिष्टुप्। २, ३, ४, ५, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। ८ स्वराट् पङ्क्तिः। ११ भुरिक् पङ्क्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे विद्वानांच्या शिक्षणात स्थिर होतात ती प्रशंसित विद्वान बनून महान बनतात. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    They know the peace, comfort and joy of living under the rule and order of the generous, radiant and mighty ruler of the world, and they rejoice and sing in ecstasy, whose songs of Divinity are great and worshipful, radiant and illuminative as the light of heaven, and sublime and deep as eternity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The qualities of the Mahatmas or great souls is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    Those are great souls whose speech is respectable and dependable. They being interested in the spread of knowledge and creating love among all are glorious, because of utter useful and beneficial words. Remaining under the command or guidance of great and mighty scholar like a powerful horse, they know the means of attaining happiness and acquiring true knowledge.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those persons who are firm in acting upon the teachings of the great enlightened persons, become admirable scholars and great.

    Foot Notes

    (ब्रध्नस्य ) महतः । ब्रध्न इति मरुन्नाम (N. G. 3,3 ) = Of the great.:- ( दिवोरुच:) विज्ञानप्रकाशे रुचिकरः। = Interested in the light of knowledge. (सुरुच:) सुप्रीतिसंपादका:। = Creators of love. (इला) स्तोतव्या वाक् | इलेति वाङ्नाम (N.G. 1, 11) = Admirable speech.

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