ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 31/ मन्त्र 14
अ॒स्माकं॑ धृष्णु॒या रथो॑ द्यु॒माँ इ॒न्द्रान॑पच्युतः। ग॒व्युर॑श्व॒युरी॑यते ॥१४॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्माक॑म् । धृ॒ष्णु॒ऽया । रथः॑ । द्यु॒ऽमान् । इ॒न्द्र॒ । अन॑पऽच्युतः । ग॒व्युः । अ॒श्व॒युः । ई॒य॒ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्माकं धृष्णुया रथो द्युमाँ इन्द्रानपच्युतः। गव्युरश्वयुरीयते ॥१४॥
स्वर रहित पद पाठअस्माकम्। धृष्णुऽया। रथः। द्युऽमान्। इन्द्र। अनपऽच्युतः। गव्युः। अश्वऽयुः। ईयते ॥१४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 31; मन्त्र » 14
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजप्रजाधर्मविषयमाह ॥
अन्वयः
हे इन्द्र ! योऽस्माकं धृष्णुया द्युमाननपच्युतो गव्युरश्वयू रथ ईयते तेन सह शत्रून् विजयस्व ॥१४॥
पदार्थः
(अस्माकम्) (धृष्णुया) दृढत्वेन युक्तः (रथः) सद्यो गमयिता विमानादियानविशेषः (द्युमान्) बहुकलायन्त्रादिप्रकाशित (इन्द्र) राजन् ! (अनपच्युतः) अपचयरहितः (गव्युः) बहवो गावो विद्यन्ते यस्मिन् सः (अश्वयुः) बह्वश्वबलयुक्तः (ईयते) गच्छति ॥१४॥
भावार्थः
राजा प्रजाजनाश्चैवं मन्येरन् ये राज्ञः पदार्थास्तेऽस्माकं येऽस्माकं ते च राज्ञस्सन्तीति ॥१४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजाप्रजा धर्मविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्र) राजन् ! जो (अस्माकम्) हम लोगों को (धृष्णुया) दृढ़ता से युक्त (द्युमान्) बहुत कलायन्त्र आदि से प्रकाशित (अनपच्युतः) घटने से रहित (गव्युः) बहुत गौओं और (अश्वयुः) बहुत घोड़ों के बल से युक्त (रथः) शीघ्र पहुँचानेवाला विमान आदि विशेष वाहन (ईयते) जाता है, उसके साथ शत्रुओं को जीतिये ॥१४॥
भावार्थ
राजा और प्रजाजन ऐसा मानें कि जो राजा के पदार्थ वे हम लोगों के और जो हम लोगों के वे राजा के हैं ॥१४॥
विषय
उत्तम शरीर-रथ
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो! आप ऐसी कृपा करिए कि (अस्माकम्) = हमारा (रथः) = यह शरीररूप रथ (धृष्णुया) = शत्रुधर्षण शक्ति द्वारा (मान्) = ज्योतिर्मय हो तथा (अनपच्युतः) = शत्रुओं द्वारा मार्गभ्रष्ट न किया जा सके, अर्थात् अत्यन्त सुदृढ़ शक्तिशाली हो । मस्तिष्क में ज्योति हो, मन व शरीर में शक्ति । [२] हे प्रभो ! बस, ऐसी कृपा करिए कि यह (गव्युः) = प्रशस्त ज्ञानेन्द्रियोंवाला तथा (अश्वयुः) = प्रशस्त कर्मेन्द्रियोंवाला (ईयते) = सदा गतिमय हो । ज्ञानेन्द्रियों से ज्ञान को बढ़ाते हुए और कर्मेन्द्रियों से यज्ञादि कर्मों को करते हुए हम आगे बढ़ते चलें ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभुकृपा से हमारा शरीर - रथ बुद्धि में 'द्युमान्', मन में 'अनपच्युत' तथा प्रशस्त ज्ञानेन्द्रियोंवाला 'गव्यु' तथा प्रशस्त कर्मेन्द्रियोंवाला 'अश्वयु' हो ।
विषय
परमेश्वर और राजा से प्रार्थना । और राजा के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे राजन् ! विद्वन् ! (अस्माकं) हमारा (धृष्णुया) शत्रुओं को पराजय करने वाला, दृढ़, (द्युमान्) दीप्ति युक्त (अनपच्युतः) नाश से रहित (गव्युः) उत्तम गमन साधनों और (अश्वयुः) उत्तम शीघ्रगामी, अश्वादि, यन्त्रकलादि से युक्त (रथः) रथ और काम क्रोध को जीतने वाला, तेजोयुक्त अविनाशी, धर्म मार्ग में दृढ़, ज्ञानेन्द्रिय, कर्मेन्द्रियों का स्वामी (रथः) रसस्वरूप, वा देह से देहान्तर जाने वाला आत्मा (ईयते) अच्छी प्रकार से गमन करे, जाना जावे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः। इन्द्रो देवता॥ छन्दः- १, ७, ८, ९, १०, १४ गायत्री। २, ६, १२, १३, १५ निचृद्गायत्री । ३ त्रिपाद्गायत्री । ४, ५ विराड्गायत्री । ११ पिपीलिकामध्या गायत्री ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
राजा व प्रजेने असे मानावे की, जे राजाचे पदार्थ आहेत ते आमचे आहेत व जे आमचे आहेत ते राजाचे आहेत. ॥ १४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, unchallengeable ruler of the world, our chariot of progress goes on advancing, bold and unobstructed, blazing bright, irresistible and imperishable, winning the wealth of the holy earth with unbounded speed and energy.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The ideal relations and duties between a ruler and his subjects are specified.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O ruler! you are really great and mighty. Let you give us ownership of vast formations of transports and aircrafts. Our cow sheds and horse steads should have high pedigree animals to meet our defense supplies and movements. With your powerful techniques and crafts, we are never diminished. With its mobilization we call upon or exhort you to win the enemies forcefully.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The ruler and his subjects should treat each other inseparable and should look after the needs of each other.
Foot Notes
(धृष्णुया) दृढत्वेन युक्तः । = Powerful. (रथः) सद्यो गमयिता विमानादियानविशेषः। = Fast transport-aids of ships and aircrafts. (दयुमान्) बहुकलायन्त्रादिप्रकाशितः । = Equipped with techniques and crafts. (अनपच्युतः ) अपचयरहितः | = Never declining. (गव्युः) बहवो गावो विद्यन्ते यस्मिन् सः । = Cow farms or sheds. (अश्वयुः) बह्वश्वबलयुक्तः । = Horse steads.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal