ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 49/ मन्त्र 2
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - इन्द्राबृहस्पती
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒यं वां॒ परि॑ षिच्यते॒ सोम॑ इन्द्राबृहस्पती। चारु॒र्मदा॑य पी॒तये॑ ॥२॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । वा॒म् । परि॑ । सि॒च्य॒ते॒ । सोमः॑ । इ॒न्द्रा॒बृ॒ह॒स्प॒ती॒ इति॑ । चारुः॒ । मदा॑य । पी॒तये॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं वां परि षिच्यते सोम इन्द्राबृहस्पती। चारुर्मदाय पीतये ॥२॥
स्वर रहित पद पाठअयम्। वाम्। परि। सिच्यते। सोमः। इन्द्राबृहस्पती इति। चारुः। मदाय पीतये ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 49; मन्त्र » 2
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
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अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे इन्द्राबृहस्पती ! वामास्ये मदाय पीतये चारुः सोमोऽयं परिषिच्यतेऽनेन भवान्त्समर्थो भवेत् ॥२॥
पदार्थः
(अयम्) (वाम्) युवयोः (परि) सर्वतः (सिञ्चते) (सोमः) महौषधिरसः (इन्द्राबृहस्पती) राजोपदेशकविद्वांसौ (चारुः) अत्युत्तमः (मदाय) आनन्दाय (पीतये) पानाय ॥२॥
भावार्थः
यथोत्तमाऽन्नं सेव्यते तथैव श्रेष्ठो रसोऽपि सेव्येत ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्राबृहस्पती) राजा और उपदेशक विद्वान् जनो ! (वाम्) आप दोनों के मुख में (मदाय) आनन्द के लिये (पीतये) पान करने को (चारुः) अति उत्तम (सोमः) बड़ी ओषधि का रस (अयम्) यह (परि) सब प्रकार से (सिच्यते) सींचा जाता है, इससे आप समर्थ होवें ॥२॥
भावार्थ
जैसे उत्तमान्न सेवन किया जाता, वैसे ही उत्तम रस भी सेवन किया जावे ॥२॥
विषय
चारुर्मदाय पीतये
पदार्थ
[१] हे (इन्द्राबृहस्पती) = शक्ति व ज्ञान के ऐश्वर्यवाले व्यक्तियो! (अयं सोमः) = यह सोम [वीर्य] (वाम्) = आपके शरीरों में (परिषिच्यते) = अंग-प्रत्यंग में सिक्त होता है। इसका शरीर में ही व्यापन होता है। [२] (चारु:) = यह शरीर में सिक्त हुआ हुआ सोम सुन्दर होता है- यह जीवन को सुन्दर बनाता है। (मदाय) = यह जीवन में उल्लास का कारण बनता है। (पीतये) = यह रक्षण के लिए होता है। शरीर में रक्षित हुआ हुआ यह शरीर के रक्षण का हेतु होता है।
भावार्थ
भावार्थ- शरीर में सुरक्षित सोम हमारे जीवन को सुन्दर उल्लासमय व रोगों से अनाक्रान्त बनाता है।
विषय
उनके कर्त्तव्य । उसी
भावार्थ
हे (इन्द्रा-बृहस्पती) ऐश्वर्यवन्! हे महान् राष्ट्र वा बड़े भारी बल के पालक, बड़ी वाणी वेद के पालक राजन्, विद्वन् ! (अयं सोमः) यह राष्ट्रमय ऐश्वर्य और सोम्यस्वभाव युक्त शिष्य (वाम्) आप दोनों के अधीन रहने हारा होकर (परि षिच्यते) पात्र में जल के तुल्य परिषेक या अभिषेक, स्नान द्वारा आदर किया जाता है, राजा का अभिषेक और विद्याव्रती को स्नातक बनाया जाता है, वह (मदाय) आनन्द लाभ और इन्द्रिय-दमन अर्थात् ब्रह्मचर्य के निमित्त और (पीतये) राष्ट्र के उपभोग के लिये और व्रत के पालन के लिये (चारुः) उत्तम व्रताचरण करने में कुशल हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः॥ इन्द्राबृहस्पती देवते। छन्द:– निचृद्गायत्री। २, ३, ४,५, ६ गायत्री॥ षड्जः स्वरः॥
मराठी (1)
भावार्थ
जसे उत्तम अन्न सेवन केले जाते तसेच उत्तम रसही सेवन केला पाहिजे. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra and Brhaspati, ruler and scholar of eminence, this soma for you is offered as a drink of pleasure and ecstasy of the highest order.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of the State officials are stated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king and preacher of the royal family! this delicious Soma is effused and offered for your drinking and delight. May you become mighty by taking this Soma juice ?
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Like good food, good juice should also be taken along with it.
Foot Notes
(इन्द्राबृहस्पति ) राजोपदेशक विद्वांसौ । वाग्वै बृहती तस्या एष पतिस्तस्माद् बृहस्पतिः (Stph 14, 4, 1, 21 ) यदस्यै वाद्यः वृहत्ये पतिस्तस्माद् बृहस्पतिः ।। (जैमिनीयोपनिषद् ब्राह्मणे 2, 2, 5) बृहस्पतिः महाविद्वान् राजोपदेशकः । = King and preacher of the royal family. (सोम:) महौषधिरसः । The juice of Soma and other great nourishing herbs.
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