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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 49 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 49/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्राबृहस्पती छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    इन्द्रा॒बृह॒स्पती॑ व॒यं सु॒ते गी॒र्भिर्ह॑वामहे। अ॒स्य सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॒बृह॒स्पती॒ इति॑ । व॒यम् । सु॒ते । गीः॒ऽभिः । ह॒वा॒म॒हे॒ । अ॒स्य । सोम॑स्य । पी॒तये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्राबृहस्पती वयं सुते गीर्भिर्हवामहे। अस्य सोमस्य पीतये ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्राबृहस्पती इति। वयम्। सुते। गीःऽभिः। हवामहे। अस्य। सोमस्य। पीतये ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 49; मन्त्र » 5
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    [हे] इन्द्राबृहस्पती ! यथा वयं गीर्भिरस्य सोमस्य पीतये युवां हवामहे तथा सुतेऽस्मानाह्वयत ॥५॥

    पदार्थः

    (इन्द्राबृहस्पती) अध्यापकोपदेशकौ (वयम्) (सुते) निष्पन्ने (गीर्भिः) (हवामहे) स्वीकुर्महे (अस्य) (सोमस्य) ओषधिजातस्य रसस्य (पीतये) पानाय ॥५॥

    भावार्थः

    राजप्रजाजनैः परस्परस्य सत्कारेण महदैश्वर्य्यं भोक्तव्यम् ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्राबृहस्पती) अध्यापक और उपदेशकजनो ! जैसे (वयम्) हम लोग (गीर्भिः) वाणियों से (अस्य) इस (सोमस्य) ओषधियों से उत्पन्न हुए रस के (पीतये) पान के लिये आप दोनों का (हवामहे) स्वीकार करते हैं, वैसे (सुते) रस के उत्पन्न होने पर हम लोगों का स्वीकार करो ॥५॥

    भावार्थ

    राजा और प्रजाजनों को चाहिये कि परस्पर के सत्कार से बड़े ऐश्वर्य्य का भोग करें ॥५॥

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    विषय

    सोम का सम्पादन व रक्षण

    पदार्थ

    [१] (वयम्) = हम (सुते) = सोम के उत्पादन के होने पर (गीर्भिः) = स्तुतिवाणियों द्वारा (इन्द्राबृहस्पती) = शक्ति व ज्ञान के अधिष्ठातृदेवों को (हवामहे) = पुकारते हैं। सोम ही शरीर में सुरक्षित होकर शक्ति का वर्धन करता है और यही ज्ञानाग्नि का भी ईंधन बनता है। [२] हम इन्द्र और बृहस्पति को ('अस्य सोमस्य पीतये') इस सोमपान के लिए पुकारते हैं। वस्तुतः इन दोनों देवों का आराधन ही हमें सोमपान के योग्य बनाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम के सम्पादन व रक्षण के लिए हम 'इन्द्र व बृहस्पति' के उपासक बनते हैं, शक्ति व ज्ञान प्राप्ति को अपना लक्ष्य बनाते हैं।

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    विषय

    उनका सोमपान ।

    भावार्थ

    हे (इन्द्रा बृहस्पती) ऐश्वर्यवन् ! हे वेदज्ञ विद्वन् ! (अस्य सोमस्य पीतये) इस ‘सोम’ के पान, उपभोग और राष्ट्र वा शिष्य आदि के पालन के लिये, (वयम्) हम (गीर्भिः) स्तुतियों और वाणियों द्वारा (सुते) अभिषिक्त हो जाने पर या उसके निमित्त आप दोनों को (हवामहे) आदरपूर्वक बुलावें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः॥ इन्द्राबृहस्पती देवते। छन्द:– निचृद्गायत्री। २, ३, ४,५, ६ गायत्री॥ षड्जः स्वरः॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजा व प्रजेने परस्पर सत्कार करून ऐश्वर्याचा भोग घ्यावा. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra and Brhaspati, the soma is extracted and distilled. We invoke and invite you for a drink of this soma.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of the State officials are described.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O teachers and preachers ! as we invite you with sweet words for drinking the juice of the nourishing herbs like soma, so you should also do when the Soma juice is effused.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The rulers and the people should enjoy prosperity by honoring one another.

    Foot Notes

    (इन्द्राबृहस्पती ) अध्यापकोदेशकौ । इन्द्रः इदि परमैश्वर्येविद्यैश्वर्य सम्पन्नोऽध्यापकः । वृहत्या वेदवाण्याः पतिः बृहस्पतिः उपदेशकः । = Teachers and preachers.

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