ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 49/ मन्त्र 6
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - इन्द्राबृहस्पती
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
सोम॑मिन्द्राबृहस्पती॒ पिब॑तं दा॒शुषो॑ गृ॒हे। मा॒दये॑थां॒ तदो॑कसा ॥६॥
स्वर सहित पद पाठसोम॑म् । इ॒न्द्रा॒बृ॒ह॒स्प॒ती॒ इति॑ । पिब॑तम् । दा॒शुषः॑ । गृ॒हे । मा॒दये॑थाम् । तत्ऽओ॑कसा ॥
स्वर रहित मन्त्र
सोममिन्द्राबृहस्पती पिबतं दाशुषो गृहे। मादयेथां तदोकसा ॥६॥
स्वर रहित पद पाठसोमम्। इन्द्राबृहस्पती इति। पिबतम्। दाशुषः। गृहे। मादयेथाम्। तत्ऽओकसा ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 49; मन्त्र » 6
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 6
Acknowledgment
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 6
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे तदोकसेन्द्राबृहस्पती ! युवां दाशुषो गृहे सोमं पिबतमस्मान् सततम्मादयेथाम् ॥६॥
पदार्थः
(सोमम्) अत्युत्तमं रसम् (इन्द्राबृहस्पती) राजामात्यौ (पिबतम्) (दाशुषः) दातुः (गृहे) (मादयेथाम्) हर्षयेतम् (तदोकसा) तदोकः स्थानं ययोस्तौ ॥६॥
भावार्थः
राजादयो जना यथा स्वयं विद्यावन्तो धार्मिका न्यायशीला आनन्दिनः स्युस्तथा प्रजाजनानपि कुर्य्युः ॥६॥ अत्र राजप्रजादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥६॥ इत्येकोनपञ्चाशत्तमं सूक्तं पञ्चविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (तदोकसा) उस स्थानवाले (इन्द्राबृहस्पती) राजा और मन्त्री जनो ! आप दोनों (दाशुषः) दाता जन के (गृहे) स्थान में (सोमम्) अति उत्तम रस का (पिबतम्) पान करो और हम लोगों को निरन्तर (मादयेथाम्) आनन्द देओ ॥६॥
भावार्थ
राजा आदि जन जैसे स्वयं विद्यायुक्त, धार्मिक, न्यायकारी और आनन्दित होवें, वैसे प्रजाजनों को भी करें ॥६॥ इस सूक्त में राजा और प्रजादि के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥६॥ यह उनचासवाँ सूक्त और पच्चीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
आनन्दमय जीवन
पदार्थ
[१] हे (इन्द्राबृहस्पती) = शक्ति व ज्ञान के अधिष्ठातृदेवो! आप (दाशुषः) = आपके प्रति अपने को दे डालनेवाले के (गृहे) = शरीरगृह में (सोमं पिबतम्) = सोम का पान करो। जो व्यक्ति शक्ति व ज्ञान की प्राप्ति में जुट जाता है, वह सोम का रक्षण कर पाता है। [२] हे इन्द्राबृहस्पती! (तदोकसा) = सोमरक्षणवाले शरीररूप गृह के स्वामी होते हुए आप (मादयेथाम्) = हमें आनन्दयुक्त जीवनवाला करिए । वस्तुतः शक्ति सम्पन्न ज्ञानयुक्त जीवन आनन्दवाला होता ही है। सोमरक्षण इस जीवन का साधन बनता है।
भावार्थ
भावार्थ- हम शक्ति व ज्ञान का सम्पादन करके आनन्दयुक्त जीवनवाले हों। अगले सूक्त में भी 'बृहस्पति' का मुख्यतया उल्लेख है। समाप्ति पर उसके साथ इन्द्र का भी उल्लेख होगा -
विषय
उनका सोमपान ।
भावार्थ
हे (इन्द्रा-बृहस्पती) ऐश्वर्यवन् ! हे वेदज्ञ विद्वान् ! वा बृहत् = महान् राष्ट्र के पालक बलाध्यक्ष ! आप दोनों (दाशुषः) आत्म समर्पक शिष्य वा प्रजाजन के (गृहे) गृह में (सोमं) उत्तम अन्नादि ऐश्वर्य का उपभोग और गृह में उत्पन्न पुत्र या शिष्य का (पिबतं) पालन करो। और (तदोकसा) उसके आश्रय स्थान में रहकर ही (मादयेथाम्) दोनों हर्षित होवो, अन्यों को हर्षित करो। इति पञ्चविंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः॥ इन्द्राबृहस्पती देवते। छन्द:– निचृद्गायत्री। २, ३, ४,५, ६ गायत्री॥ षड्जः स्वरः॥
मराठी (1)
भावार्थ
राजा इत्यादी लोक जसे स्वतः धार्मिक, न्यायकारी व आनंदित असतात तसे प्रजाजनांनाही करावे. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra and Brhaspati of the house of honour and power, drink the soma in the home of the generous yajamana as your own and give us the honour and pleasure of your company.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of state official's duties is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king and minister ! dwelling in good places, drink the Soma juice at the home of a liberal donor and delight us.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As the king and his ministers should themselves be highly learned, just and joyous, they should make their subjects also similar.
Foot Notes
(इन्द्राबृहस्पती ) राजामात्यौ । राज्ञः प्रधानामात्येन बृहत्या वेदवाचः पतिना पालकेन महाविदुषा भवितव्यम् = The king and prime minister. (तदोकसा) तदोकः स्थानं ययोस्तौ । ओक इति निवासनामोच्यते ( NKT 3, 1, 3) = Having good home.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal