ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 53/ मन्त्र 5
त्रिर॒न्तरि॑क्षं सवि॒ता म॑हित्व॒ना त्री रजां॑सि परि॒भूस्त्रीणि॑ रोच॒ना। ति॒स्रो दिवः॑ पृथि॒वीस्ति॒स्र इ॑न्वति त्रि॒भिर्व्र॒तैर॒भि नो॑ रक्षति॒ त्मना॑ ॥५॥
स्वर सहित पद पाठत्रिः । अ॒न्तरि॑क्षम् । स॒वि॒ता । म॒हि॒ऽत्व॒ना । त्री । रजां॑सि । प॒रि॒ऽभूः । त्रीणि॑ । रो॒च॒ना । ति॒स्रः । दिवः॑ । पृ॒थि॒वीः । ति॒स्रः । इ॒न्व॒ति॒ । त्रि॒ऽभिः । व्र॒तैः । अ॒भि । नः॒ । र॒क्ष॒ति॒ । त्मना॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्रिरन्तरिक्षं सविता महित्वना त्री रजांसि परिभूस्त्रीणि रोचना। तिस्रो दिवः पृथिवीस्तिस्र इन्वति त्रिभिर्व्रतैरभि नो रक्षति त्मना ॥५॥
स्वर रहित पद पाठत्रिः। अन्तरिक्षम्। सविता। महिऽत्वना। त्री। रजांसि। परिऽभूः। त्रीणि। रोचना। तिस्रः। दिवः। पृथिवीः। तिस्रः। इन्वति। त्रिऽभिः। व्रतैः। अभि। नः। रक्षति। त्मना ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 53; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यः परिभूः सविता परमेश्वरो महित्वना त्मनाऽन्तरिक्षं त्रिरिन्वति त्री रजांसीन्वति त्रीणि रोचनेन्वति तिस्रो दिवस्तिस्रः पृथिवीरिन्वति त्रिभिर्व्रतैर्नोऽभि रक्षति स एव सर्वदा भजनीयः ॥५॥
पदार्थः
(त्रिः) त्रिवारम् (अन्तरिक्षम्) अन्तरक्षयमाकशम् (सविता) सकलैश्वर्य्योत्पादकः (महित्वना) महत्त्वेन (त्री) त्रीणि त्रिप्रकारका (रजांसि) उत्तममध्यमनिकृष्टानि (परिभूः) यः सर्वतो भवति सर्वेषामुपरि विराजमानः (त्रीणि) त्रिप्रकाराणि (रोचना) विद्युद्भौतिकसूर्यरूपाणि ज्योतींषि (तिस्रः) त्रिविधाः (दिवः) प्रकाशान् (पृथिवीः) भूमीः (तिस्रः) (इन्वति) व्याप्नोति (त्रिभिः) (व्रतैः) नियमैः (अभि) (नः) अस्मान् (रक्षति) (त्मना) आत्मना ॥५॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! यः परमेश्वरस्त्रिविधं सर्वं त्रिगुणमयं जगन्निर्माय सुनियमैः पालयति तमेवोपाध्वम् ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (परिभूः) सब स्थानों में वर्त्तमान और सब के ऊपर विराजमान (सविता) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्यों का उत्पन्न करनेवाला परमेश्वर (महित्वना) महिमा और (त्मना) आत्मा से (अन्तरिक्षम्) भीतर नहीं नाश होनेवाले आकाश को (त्रिः) तीन वार (इन्वति) व्याप्त होता (त्री) तीन प्रकार के (रजांसि) उत्तम मध्यम निकृष्ट लोकों को व्याप्त होता (त्रीणि) तीन प्रकार के (रोचना) बिजुली, भौतिक और सूर्यरूप ज्योतियों को व्याप्त होता (तिस्रः) तीन प्रकार के (दिवः) प्रकाशों और (तिस्रः) तीन प्रकार की (पृथिवीः) भूमियों को व्याप्त होता और (त्रिभिः) तीन (व्रतैः) नियमों से (नः) हम लोगों की (अभि) सब ओर से (रक्षति) रक्षा करता है, वही सर्वदा सेवा करने योग्य है ॥५॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जो परमेश्वर तीन प्रकार के सम्पूर्ण त्रिगुण अर्थात् सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण स्वरूप जगत् को रच के उत्तम नियमों से पालन करता है, उसी की उपासना करो ॥५॥
विषय
'सर्वव्यापक-सर्वरक्षक' प्रभु
पदार्थ
[१] (सविता) = वह सर्वोत्पादक प्रभु (महित्वना) = अपनी महिमा से (त्रिः अन्तरिक्षम्) = 'वायु विद्युत् वरुण' नामवाले त्रिभेद अन्तरिक्ष को (परिभू:) = व्याप्त करता है। अन्तरिक्ष का निचला प्रदेश वह है, जहाँ वायु बहती है, मध्य प्रदेश में विद्युत् चमकती है, उपरला प्रदेश जलवाष्पों का स्थान है। ये सविता (त्री रजांसि) = पृथिवी, अन्तरिक्ष व द्युलोक रूप तीनों लोकों को व्याप्त कर रहे हैं। इन लोकों की (त्रीणि रोचना) = तीनों दीप्तियों को, 'अग्नि, विद्युत् व सूर्य को' भी वे प्रभु ही व्याप्त करनेवाले हैं। [२] ये प्रभु (तिस्रः दिवः) = द्युलोक के तीनों विभागों को इन्द्र, प्रजापति, सत्य नामक तीनों द्युलोक के प्रदेशों को (इन्वति) = व्याप्त करते हैं। [३] (तिस्रः पृथिवीः) = पृथिवी के तीन प्रदेशों को भी वे प्रभु व्याप्त किये हुए हैं। पृथिवी के उपरले प्रदेश में प्राणी विचरते हैं, ३४ फीट नीचे जलवाला प्रदेश मध्यम है, उसके नीचे स्वर्ण आदि धातुओं का प्रदेश आता है, यही पृथिवीं का केन्द्र प्रदेश है। इन सब को प्रभु व्याप्त किये हुए हैं। [४] ये प्रभु (त्मना) = स्वयं (त्रिभिः व्रतैः) = निर्माण धारण व प्रलय रूप मुख्य कर्मों से अथवा 'सर्दी, गर्मी व वर्षा' रूप ऋतुओं को यथा समय प्राप्त कराने से (नः अभिरक्षति) = हमारा सम्यक् रक्षण करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु सर्वत्र व्याप्त हैं। प्रभु ही अपने व्रतों द्वारा सब का रक्षण कर रहे हैं।
विषय
पक्षान्तर में राजा सेनापति के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(सविता) सूर्य के समान तेजस्वी और सब का उत्पादक परमेश्वर (परिभूः) सर्वव्यापक है । वह (अन्तरिक्षं) भीतर बाहर व्याप्त आकाश को भी (त्रिः) तीनों प्रकारों से (इन्वति) व्यापता है वह अपने (महित्वना) महान् सामर्थ्य से, (रजांसि) समस्त लोकों को (त्रिः) तीन बार वा तीनों प्रकार के लोकों को (त्रीणि रोचना) तीन प्रकार के तेजस्वी, दीप्तिमान् पदार्थों और (तिस्रः) तीनों प्रकार के (दिवः) तेजों को और (तिस्रः पृथिवीः) तीनों प्रकार की भूमियों को (इन्वति) व्यापता है। वह (त्रिभिः) तीन प्रकारों के (व्रतैः) कर्मों वा नियमों से (त्मना) स्वयं (नः) हमें (अभि रक्षति) सब प्रकार से रक्षा करता है। तीन प्रकार के अन्तरिक्ष—महान् आकाश, मध्याकाश और दृदयाकाश। तीन प्रकार के रजस् या लोक—ऊर्ध्व लोक, मध्य लोक भूलोक वा सात्विक, राजस वा तामस जन । तीन प्रकार के रोचन पदार्थ, सूर्य, चन्द्र अग्नि वा सूर्य, अग्नि, विद्युत् तीन । (दिवः) प्रकाश अर्थात् रक्त नील, पीत। तीन प्रकार के व्रत सृष्टि, स्थिति, संहार । तीन भूमियें सूर्य, वायु वा अन्तरिक्ष और यह भूमि । (२) इसी प्रकार राजा आकाश, गृह और भूगर्भ में प्रवेश कर सके, उत्तम मध्यम निकृष्ट श्रेणियों के लोकों को वश करे, धन, ज्ञान और प्रजाजन तीनों को प्राप्त करे, तीनों तेज प्रभुसत्ता, जनसत्ता और मन्त्रसत्ता तीनों शक्तियों को प्राप्त करे और तीन पृथिवी सम, वन, पर्वत तीनों पर राज्य करे। तीन व्रत, अत्मसंयम, जनसंयम, और अरिसंयम तीनों प्रकार की व्यवस्थाओं से राष्ट्र की रक्षा करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ सविता देवता ॥ छन्द:– १, ३, ६, ७ निचृज्जगती ॥ २ विराड् जगती । ४ स्वराड् जगती । ५ जगती ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो! जो परमेश्वर तीन प्रकारच्या संपूर्ण त्रिगुण (अर्थात् सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण) जगाची निर्मिती करून उत्तम नियमाने पालन करतो त्याचीच उपासना करा. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Lord Savita with his power and presence pervades and inspires threefold middle regions, threefold regions of firmament and spatial oceans, threefold lights of fire, lightning and the sun, three orders of heaven and threefold regions of earth, and with his love and power he guides, protects and fulfils us by the threefold laws of creation, sustenance and dissolution of the world.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of God moves.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! that only One God should be adored by all, Who is Omnipresent, Lord of all by His greatness, and pervades the heaven, firmament and all worlds (high, middle and low). The resplendent, He pervades all objects in the form of electricity (lightning,) fire and sun, and three kinds of light and earth. He protects from all sides by three kinds of vows by dint of His own infinite power.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men ! you should have communion only with that One God Who sustains this world/universe made of Satva, Raja and Tamas by good eternal laws, having created it, out of the Primordial matter.
Foot Notes
(तीरजांसि ) उत्तम मध्यमनिकृष्टानि । = Three worlds, high, middle and low. (त्रीणि ज्योतींषि ) विद्युद्भौतिकसूर्यरूपाणि ज्योतींषि । = Three resplendent objects i.e. lightning or electricity, fire and sun. (इन्वति) व्याप्नोति। = Pervades.
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