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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 19/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वव्रिरात्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    जु॒हु॒रे वि चि॒तय॒न्तोऽनि॑मिषं नृ॒म्णं पा॑न्ति। आ दृ॒ळ्हां पुरं॑ विविशुः ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    जु॒हु॒रे । वि । चि॒तय॑न्तः । अनि॑ऽमिषम् । नृ॒म्णम् । पा॒न्ति॒ । आ । दृ॒ळ्हाम् । पुर॑म् । वि॒वि॒शुः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जुहुरे वि चितयन्तोऽनिमिषं नृम्णं पान्ति। आ दृळ्हां पुरं विविशुः ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जुहुरे। वि। चितयन्तः। अनिऽमिषम्। नृम्णम्। पान्ति। आ। दृळ्हाम्। पुरम्। विविशुः ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 19; मन्त्र » 2
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    येऽनिमिषं चितयन्तो वि जुहुरे नृम्णं पान्ति ते दृळ्हां पुरमा विविशुः ॥२॥

    पदार्थः

    (जुहुरे) कुटिलयन्ति (वि) विरुद्धे (चितयन्तः) ज्ञापयन्तः (अनिमिषम्) अहर्निशम् (नृम्णम्) धनम् (पान्ति) रक्षन्ति (आ) (दृळ्हाम्) (पुरम्) नगरम् (विविशुः) आविशन्ति ॥२॥

    भावार्थः

    ये सरलस्वभावाः सत्यविज्ञापकाः प्रतिक्षणं पुरुषार्थयन्ते ते राज्यैश्वर्य्यं लभन्ते ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    जो (अनिमिषम्) दिन-रात्रि (चितयन्तः) बोध कराते हुए (वि) विरुद्ध (जुहुरे) कुटिलता करते और (नृम्णम्) धन की (पान्ति) रक्षा करते हैं, वे (दृळ्हाम्) दृढ़ (पुरम्) नगर को (आ, विविशुः) सब प्रकार प्राप्त होते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    जो सरल स्वभाववाले और सत्य के बोधक प्रतिक्षण पुरुषार्थ करते हैं, वे राज्य और ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं ॥२॥

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    विषय

    जीवों का पुरियों में प्रवेश ।

    भावार्थ

    भा०—जो ( चितयन्तः) उत्तम ज्ञान सम्पादन करते हुए लोग ( विजुहुरे ) विविध प्रकार से परस्पर लेते और देते रहते हैं और ( अनिमिषं ) रात दिन वा विना आंखें झपके, सावधान वा निश्छल रह कर (नृम्णं पान्ति) धनैश्वर्य और ज्ञान की रक्षा करते हैं वे ही (दृढां पुरं ) दृढ़ नगरी में (आ विविशुः ) प्रवेश करते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वव्रिरात्रेय ऋषिः । अग्निर्देवता ॥ छन्दः -१ गायत्री । २ निचृद्-गायत्री । ३ अनुष्टुप् । ४ भुरिगुष्णिक् । ५ निचृत्पंक्तिः ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    सद्गृहस्थ

    पदार्थ

    [१] गृहस्थ में आने पर गतमन्त्र के वव्रि (विचितयन्तः) = प्रभु के चिन्तन से व वेदमाता की उपासना से [स्वाध्याय से] विशिष्ट चेतनावाले होते हुए ये (जुहुरे) = सदा अग्निहोत्र करनेवाले होते हैं 'जरामर्यं वा सत्रं यदग्निहोत्रम्'। इस प्रकार ध्यान व यज्ञों में प्रवृत्त ये पुरुष (अनिमिषम्) = बिना किसी प्रमाद के निरन्तर (नृम्णम्) = बल का पान्ति रक्षण करते हैं । [२] इस प्रकार बल का रक्षण करते हुए ये (दृढां पुरम्) = बड़े दृढ़ इस शरीर में (आविविशुः) = प्रविष्ट होते हैं। अपने शरीर को बड़ा दृढ़ बनाये रखते हैं। 'अश्मा भवतु नस्तनूः'। इनका शरीर रोगों के लिये एक (दुर्भेद्य) = दुर्ग के समान होता है, रोग उसमें प्रविष्ट नहीं हो पाते।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम ध्यान करें, यज्ञशील हों। अपने बल का रक्षण करें, शरीर को रोगों के लिये दुर्भेद्य दुर्ग बनयें ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे सरळ स्वभावाचे, सत्यबोधक असून प्रतिक्षणी पुरुषार्थ करतात त्यांना राज्य व ऐश्वर्य लाभते. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Those who challenge adverse circumstances and sit by Agni, light of Divinity, day and night without a wink of sleep, they enter the adamantine city celestial.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    More stated about the teachings from the enlightened persons.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The persons who enlighten others day and night behave not crookedly but uprightly. They protect wealth (internal as well as external) enter into a strong city.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The persons of upright nature are enlighteners of truth and are engaged in doing good work every moment. They bring prosperity to the State.

    Foot Notes

    (चितयन्त:) ज्ञापयन्तः । चिती संज्ञाने (भ्वा ) । = Enlightening, teaching. (नृम्णम्) धनम् । नृम्णम् इति धननाम (NG 2,10) = Wealth. (जुहुरे) कुटिलयन्ति । (जुहुरे ) हु- कौटिल्ये (म्वा ) । अत्र-विजुहरे - सरलभावेन वर्तन्त इत्यर्थ:। = Behave crookedly.

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