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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 48 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 48/ मन्त्र 3
    ऋषिः - प्रतिभानुरात्रेयः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - स्वराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आ ग्राव॑भिरह॒न्ये॑भिर॒क्तुभि॒र्वरि॑ष्ठं॒ वज्र॒मा जि॑घर्ति मा॒यिनि॑। श॒तं वा॒ यस्य॑ प्र॒चर॒न्त्स्वे दमे॑ संव॒र्तय॑न्तो॒ वि च॑ वर्तय॒न्नहा॑ ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ग्राव॑ऽभिः । अ॒ह॒न्ये॑भिः । अ॒क्तुऽभिः॑ । वरि॑ष्ठम् । वज्र॑म् । आ । जि॒घ॒र्ति॒ । मा॒यिनि॑ । श॒तम् । वा॒ । यस्य॑ । प्र॒ऽचर॑न् । स्वे । दमे॑ । स॒म्ऽव॒र्तय॑न्तः । वि । च॒ । व॒र्त॒य॒न् । अहा॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ ग्रावभिरहन्येभिरक्तुभिर्वरिष्ठं वज्रमा जिघर्ति मायिनि। शतं वा यस्य प्रचरन्त्स्वे दमे संवर्तयन्तो वि च वर्तयन्नहा ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। ग्रावऽभिः। अहन्येभिः। अक्तुऽभिः। वरिष्ठम्। वज्रम्। आ। जिघर्ति। मायिनि। शतम्। वा। यस्य। प्रऽचरन्। स्वे। दमे। सम्ऽवर्तयन्तः। वि। च। वर्तयन्। अहा ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 48; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स्त्रीपुरुषौ कथं वर्त्तेयातामित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मायिनि ! यतो भवती ग्रावभिरहन्येभिरक्तुभिर्वरिष्ठं वज्रमा जिघर्ति शतं वा यस्य स्वे दमे प्रचरन्नहाऽऽवर्तयन् व्यवहारमाजिघर्त्ति यस्य च संवर्त्तयन्तः किरणा वि चरन्ति तं त्वं जानीहि ॥३॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (ग्रावभिः) मेघैः (अहन्येभिः) दिनैः (अक्तुभिः) रात्रिभिः (वरिष्ठम्) अतिश्रेष्ठम् (वज्रम्) शस्त्रविशेषम् (आ) (जिघर्त्ति) (मायिनि) माया प्रशंसिता प्रज्ञा विद्यते यस्य तत्सम्बुद्धौ (शतम्) (वा) (यस्य) (प्रचरन्) (स्वे) स्वकीये (दमे) गृहे (संवर्त्तयन्तः) सम्यग्वर्त्तमानाः (वि) (च) (वर्तयन्) (अहा) अहानि ॥३॥

    भावार्थः

    यदि स्त्रीपुरुषौ निर्भयौ भवेतां तर्हि सूर्य्यविद्युद्वदहर्निशं पुरुषार्थं कृत्वैश्वर्य्येण प्रकाशितौ भवेताम् ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर स्त्री-पुरुष कैसा वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मायिनि) प्रशंसित बुद्धि से युक्त ! जिससे आप (ग्रावभिः) मेघों (अहन्येभिः) दिनों और (अक्तुभिः) रात्रियों से (वरिष्ठम्) अति श्रेष्ठ (वज्रम्) शस्त्रविशेष को (आ, जिघर्त्ति) प्रदीप्त करती हो (शतम्, वा) अथवा सैकड़ों का दल (यस्य) जिसके (स्वे) अपने (दमे) गृह में (प्रचरन्) चलता और (अहा) दिनों को (आ, वर्तयन्) अच्छे प्रकार व्यतीत करता हुआ व्यवहार को प्रकाशित करता है (च) और जिसकी (संवर्त्तयन्तः) उत्तम प्रकार वर्त्तमान किरणें (वि) विशेष फैलती हैं, उसको तू विशेष करके जान ॥३॥

    भावार्थ

    जो स्त्री और पुरुष भयरहित हों तो सूर्य्य और बिजुली के सदृश दिन-रात्रि पुरुषार्थ को करके ऐश्वर्य्य से प्रकाशित हों ॥३॥

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    विषय

    सूर्य के किरणों के तुल्य अधीनों की नियुक्ति ।

    भावार्थ

    भा०-जिस प्रकार सूर्य की किरणें सैकड़ों, सहस्रों (अहा संवर्तयन्तः प्रचरन् विवर्तयन् ) होकर भी दिन को प्रकट करते और विविध रूपों को दर्शाते हैं उसी प्रकार (यस्य ) जिस राष्ट्रपति के ( स्वे दमे ) अपने गृह तुल्य शत्रुदमनकारी शासन में ( शतं वा प्र-चरन् ) सैकड़ों पुरुष अच्छी प्रकार गमनागमन करते हैं, और ( अहा ) उत्तम, स्थिर कार्यों को ( संवर्तयन्तः ) अच्छी प्रकार करते हुए (वि वर्तयन् च) विविध प्रकार से आजीविकादि व्यवहार करते हैं वह राजा नायक ( मायिनि ) कुटिल मायावी पुरुष के निमित्त ( अहन्येभिः अक्तुमिः ) दिन और रात, दोनों कालों में पृथक् २ रूप से नियुक्त (ग्रावभिः) दृढ़ शक्तियों से अपने (वरिष्ठं ) सर्वश्रेष्ठ, शत्रु के वारण करने में समर्थ (वज्रम् ) शस्त्र-बल को ( आ जिघर्ति ) प्रदीप्त रक्खे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रतिभानुरात्रेय ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:- १, ३ स्वराट् त्रिष्टुप २, ४, ५ निचृज्जगती ॥ पञ्चर्चं सूक्तम ॥

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    विषय

    वृत्र पर वज्र प्रहार

    पदार्थ

    [१] 'माया' का अर्थ है छल-कपट । 'मायी' वृत्र का नाम है, जो अद्भुत छली है। इस (मायिनि) = मायावाले वृत्र पर (ग्रावभिः) = स्तुतियों के द्वारा, (अहन्येभिः) = [ अ-हन्] एक-एक क्षण को न नष्ट करने के द्वारा, एतत उत्तम क्रियाओं के द्वारा तथा (अक्तुभिः) = प्रकाश की किरणों के द्वारा (वरिष्ठम्) = श्रेष्ठ वज्रम् वज्र को (आजिघर्ति) = दीप्त करता है [brandishes, waives his sword brilliantly] । वृत्र, अर्थात् वासना को नष्ट करने का उपाय यही है कि [क] प्रभु के स्तवन में प्रवृत्त होना, [ख] सतत यज्ञ आदि उत्तम कर्मों में लगे रहना, [ग] तथा स्वाध्याय द्वारा प्रकाश को प्राप्त करना । [२] उस (मायी) = वृत्र पर वज्र का प्रहार करना है, यस्य जिस वृत्र के, वासना के (शतम्) = सैकड़ों रूप स्वे दमे-इस अपने शरीररूप गृह में (संवर्तयन्तः) = प्रलय मचाते हुए [संवर्तः = प्रलयः] (च) = तथा (अहा) = दिनों को (विवर्तयन्) = विरुद्ध मार्गों पर ले जाते हुए (प्रचरन्) = गतिवाले होते हैं। वासना नानारूपों में प्रकट होती है और जीवन में प्रलय-सा मचा देती है तथा दिनों को उलट-पुलट बातों में ही बरबाद कर देती है। इस वासना को नष्ट करना आवश्यक ही है।

    भावार्थ

    भावार्थ- जीवन को विनष्ट करनेवाली वासना पर हम उस वज्र का प्रहार करें जो 'प्रभु स्तवन, उत्तम कर्म व स्वाध्याय' द्वारा बना हुआ है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जर स्त्री-पुरुष भयरहित असतील तर त्यांनी सूर्य व विद्युतप्रमाणे दिवस-रात्र पुरुषार्थ करून ऐश्वर्याने उन्नत व्हावे. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Ever and instantly, this nation shines and sharpens its best arms and armaments day and night with the stones (which sharpen the arms and press the soma too) or with the clouds of showers against the evil of want and suffering of ignorance, and otherwise too hundreds of its forces actively working together in their own fields spend their time moving forward in a state of readiness with a challenging spirit.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How should men and women behave is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O wise woman ! you sharpen the thunderbolt-like arms along with the clouds, days and nights. You should know about that man in whose house and plant/factory. hundreds of men work and spend their time usefully. You should also know the sun whose good rays spread everywhere and thus urge men to move and work.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    If men and women or husbands and wives, are fearless, they would shine with prosperity like the sun and electricity and become industrious day and night.

    Foot Notes

    (ग्रावभिः) मेधैः । ग्रावेति मेघनाम । (NG. 1, 10 ) = With clouds. (अक्तुभि:) रात्रिभिः । अक्तुरिति रानिनाम (N G 1, 7 ) = With nights.

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