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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 48 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 48/ मन्त्र 1
    ऋषिः - प्रतिरथ आत्रेयः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    कदु॑ प्रि॒याय॒ धाम्ने॑ मनामहे॒ स्वक्ष॑त्राय॒ स्वय॑शसे म॒हे व॒यम्। आ॒मे॒न्यस्य॒ रज॑सो॒ यद॒भ्र आँ अ॒पो वृ॑णा॒ना वि॑त॒नोति॑ मा॒यिनी॑ ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कत् । ऊँ॒ इति॑ । प्रि॒याय॑ । धाम्ने॑ । म॒ना॒म॒हे॒ । स्वऽक्ष॑त्राय । स्वऽय॑शसे । म॒हे । व॒यम् । आ॒ऽमे॒न्यस्य॑ । रज॑सः । यत् । अ॒भ्रे । आ । अ॒पः । वृ॒णा॒ना । वि॒ऽत॒नोति॑ । मा॒यिनी॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कदु प्रियाय धाम्ने मनामहे स्वक्षत्राय स्वयशसे महे वयम्। आमेन्यस्य रजसो यदभ्र आँ अपो वृणाना वितनोति मायिनी ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कत्। ऊँ इति। प्रियाय। धाम्ने। मनामहे। स्वऽक्षत्राय। स्वऽयशसे। महे। वयम्। आऽमेन्यस्य। रजसः। यत्। अभ्रे। आ। अपः। वृणाना। विऽतनोति। मायिनी ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 48; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः किमेष्टव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    यद्या आमेन्यस्य रजसो मध्येऽभ्रेऽप आ वृणाना मायिनी सती वितनोति तामु वयं महे प्रियाय धाम्ने स्वक्षत्राय स्वयशसे कन्मनामहे ॥१॥

    पदार्थः

    (कत्) कदा (उ) (प्रियाय) कमनीयाय (धाम्ने) जन्मस्थाननामस्वरूपाय (मनामहे) जानीमहे (स्वक्षत्राय) स्वकीयराज्याय क्षत्रियकुलाय वा (स्वयशसे) स्वकीयं यशो यस्मात्तस्मै (महे) महते (वयम्) (आमेन्यस्य) समन्तान्मेयस्य (रजसः) लोकस्य (यत्) या (अभ्रे) घने [(आ)] (अपः) जलानि (वृणाना) स्वीकुर्वाणा (वितनोति) विस्तीर्णां करोति (मायिनी) माया प्रज्ञा विद्यते यस्यां सा ॥१॥

    भावार्थः

    मनुष्यैः सततमेवमाशंसितव्यं येन राज्यं यशो धर्मश्च वर्धेत तथैव स्वीकृत्याऽनुष्ठातव्यम् ॥१॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    अब पाँच ऋचावाले अड़तालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में फिर मनुष्यों को किसकी इच्छा करनी चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    (यत्) जो (आमेन्यस्य) चारों और से ज्ञान के विषय (रजसः) लोक के मध्य में और (अभ्रे) मेघ में (अपः) जलों का (आ, वृणाना) उत्तम प्रकार स्वीकार करती हुई और (मायिनी) बुद्धि जिसमें विद्यमान वह नीति (वितनोति) विस्तारयुक्त करती है उसको (उ) भी (वयम्) हम लोग (महे) बड़े (प्रियाय) सुन्दर (धाम्ने) जन्म, स्थान और नाम स्वरूप के लिये (स्वक्षत्राय) अपने राज्य वा क्षत्रिय कुल के लिये और (स्वयशसे) अपना यश जिससे उसके लिये (कत्) कब (मनामहे) जानें ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि निरन्तर इस प्रकार से इच्छा करें, जिससे राज्य, यश और धर्म्म बढ़े, वैसे ही स्वीकार करके अनुष्ठान करें ॥१॥

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    विषय

    राजसभा और सेना का योग्य नायक वरने का कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०- ( वयं ) हम लोग ( कत् उ ) कब ( प्रियाय ) प्रिय, (धाम्ने ) तेज को प्राप्त करने के लिये, (महे) बड़े (स्व-क्षत्राय ) अपने बल और ( स्व-यशसे ) अपने यश से युक्त राज्य वा राजा की वृद्धि के लिये ( मनामहे ) स्वीकार करें, ( यत् अभ्रे आ वृणाना मायिनी अपः आ वितनोति ) जिस प्रकार विद्युत् शक्तिशालिनी होकर मेघ में व्यापक होकर जलों को उत्पन्न करती है, उसी प्रकार ( मायिनी ) बुद्धि से युक्त वा शत्रुनाशक शक्ति से युक्त राजसभा वा सम्पन्न सेना, ( आ-मेन्यस्य ) चारों ओर से माप लेने योग्य (रजसः ) लोक समूह, या राष्ट्र के बीच में (अभ्रे) मेघ तुल्य उदार नायक के अधीन (आ वृणाना ) सर्वत्र शासकों का वरण करती हुई ( अपः ) राज्य कार्य को (वि तनोति ) विविध रूप से करे । अर्थात् बड़े राजा सम्राट का अभ्युदय तभी चाहे जब कोई राजसभा समस्त राष्ट्र में अधीन शासकों का चुनाव करके राज्य कार्य करने को उद्यत हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रतिभानुरात्रेय ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:- १, ३ स्वराट् त्रिष्टुप २, ४, ५ निचृज्जगती ॥ पञ्चर्चं सूक्तम ॥

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात विद्वान व राजाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

    भावार्थ

    माणसांनी निरंतर अशा प्रकारची इच्छा करावी की ज्यामुळे राज्य, यश, धर्म वाढावा त्यासाठी तसेच अनुष्ठान करावे. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    When shall we all sing and celebrate in honour of our own domain, our cherished independent identity and social order, our own honour and glory, which, commanding its own power and splendour, pursuing its own policy, extends its resounding actions and waters of peace and freedom among the people, across the lands and over the clouds of immeasurable skies and spaces? When shall we think and reflect upon this?

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