ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 48/ मन्त्र 4
ऋषिः - प्रतिभानुरात्रेयः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृज्जगती
स्वरः - निषादः
ताम॑स्य री॒तिं प॑र॒शोरि॑व॒ प्रत्यनी॑कमख्यं भु॒जे अ॑स्य॒ वर्प॑सः। सचा॒ यदि॑ पितु॒मन्त॑मिव॒ क्षयं॒ रत्नं॒ दधा॑ति॒ भर॑हूतये वि॒शे ॥४॥
स्वर सहित पद पाठताम् । अ॒स्य॒ । री॒तिम् । प॒र॒शोःऽइ॑व । प्रति॑ । अनी॑कम् । अ॒ख्य॒म् । भु॒जे । अ॒स्य॒ । वर्प॑सः । सचा॑ । यदि॑ । पि॒तु॒मन्त॑म्ऽइव । क्षय॑म् । रत्न॑म् । दधा॑ति । भर॑ऽहूतये । वि॒शे ॥
स्वर रहित मन्त्र
तामस्य रीतिं परशोरिव प्रत्यनीकमख्यं भुजे अस्य वर्पसः। सचा यदि पितुमन्तमिव क्षयं रत्नं दधाति भरहूतये विशे ॥४॥
स्वर रहित पद पाठताम्। अस्य। रीतिम्। परशोःऽइव। प्रति। अनीकम्। अख्यम्। भुजे। अस्य। वर्पसः। सचा। यदि। पितुमन्तम्ऽइव। क्षयम्। रत्नम्। दधाति। भरहूतये। विशे ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 48; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 2; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 2; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
राजा कथं राज्यं कुर्य्यादित्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! योऽस्य भुजेऽख्यमनीकं प्रति परशोरिव तां रीतिं दधात्यस्य वर्पसः सचा पितुमन्तमिव यदि भरहूतये विशे रत्नं क्षयं दधाति तर्हि स एव राज्यं कर्त्तुमर्हति ॥४॥
पदार्थः
(ताम्) (अस्य) (रीतिम्) (परशोरिव) (प्रति) (अनीकम्) सैन्यम् (अख्यम्) कथनीयम् (भुजे) पालनाय (अस्य) (वर्पसः) रूपस्य (सचा) सम्बन्धि (यदि) (पितुमन्तमिव) (क्षयम्) निवासस्थानम् (रत्नम्) रमणीयम् (दधाति) (भरहूतये) भरा पालिका धारिका हूतयो यस्यास्तस्यै (विशे) प्रजायै ॥४॥
भावार्थः
प्रजापालनाय गूढनीत्या राजा व्यवहारान् व्यवहरेत् सर्वस्य च रक्षणं यथार्थतया कुर्य्यात् ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
राजा कैसे राज्य को करे, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (अस्य) इसके (भुजे) पालन के लिये (अख्यम्) कहने योग्य (अनीकम्) सेनादल के (प्रति) प्रति (परशोरिव) परशु के सम्बन्ध को जैसे वैसे (ताम्) उस (रीतिम्) रीति को (दधाति) धारण करता है (अस्य) इस (वर्पसः) रूप के (सचा) सम्बन्धि (पितुमन्तमिव) अन्नवान् के सदृश (यदि) (भरहूतये) पालन-धारण करनेवाली वाणी आह्वान के लिये जिसकी उस (विशे) प्रजा के लिये (रत्नम्) रमणीय (क्षयम्) निवासस्थान को धारण करता है तो वही राज्य करने के योग्य होता है ॥४॥
भावार्थ
प्रजा की पालना के लिये गूढनीति से राजा व्यवहारों का अनुष्ठान करे और सब की पालना यथार्थभाव से करे ॥४॥
विषय
परशु और राष्ट्र के आभूषणवत् सैन्य, शस्त्रबल की स्थिति ।
भावार्थ
भा०- ( अस्य वर्षसः ) इस, नाना रूप के प्राणियों से युक्त, सुन्दर राष्ट्र के (भुजे ) भोग करने और पालन करने के लिये मैं (अस्य) इस राजा के ( अनीकं ) सैन्य बल को, ( परशोः रीतिम् इव प्रति अख्यम् ) परशु अर्थात् कुल्हाड़े के धार के समान ही देखता हूं । ( यदि ) क्योंकि वह (विशे) प्रजा के पालन करने के लिये उस सैन्य को ( सचा) सदा अपने साथ ( पितुमन्तं रत्नं क्षयम् इव ) अन्न से समृद्ध सुन्दर गृह अन्नादि समृद्धि सम्पन्न रत्न सम्पदा के समान ( दधाति ) धारण करता है, और (भर-हूतये) संग्राम में शत्रु को ललकारने के लिये उस सैन्य को ( पितुमन्तं ) पालक जनों से युक्त ( क्षयं ) शत्रु का नाश करने वाले सैन्य को ( रत्नं इव ) रत्नादि आभूषण वत् (सचा ) सदा अपने साथ समवाय बनाकर ( दधाति ) रखता और उसको पालता है। कुल्हाड़ी को भी मनुष्य अपने शत्रु के नाश, अपनी रक्षा और अन्न फलादि को प्राप्त करने का साधन बनाता है उसी प्रकार राजा की सेना है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रतिभानुरात्रेय ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:- १, ३ स्वराट् त्रिष्टुप २, ४, ५ निचृज्जगती ॥ पञ्चर्चं सूक्तम ॥
विषय
रमणीय वस्तुओं का धारण
पदार्थ
[१] (अस्य) = गतमन्त्र में वर्णित इस वज्र की (तां रीतिम्) = उस गति को (परशोः इव) = कुल्हाड़े की गति की तरह (प्रयत्यनीकम्) = वासनारूप शत्रुसैन्य के प्रति (अख्यम्) = देखता हूँ । जैसे कुल्हाड़ा झाड़ी झंकाड़ों का सफाया कर देता है, उसी प्रकार यह वज्र वासनाओं का विनाश करता है। इस प्रकार यह वज्र (अस्य वर्पसः) = इसके तेजस्वीरूप के (भुजे) = पालन के लिये होता है। [२] वासनाओं के विनष्ट होने पर यह तेजस्वी पुरुष प्रभु को प्राप्त करनेवाला होता है। और (यदि) = अगर (सचा) = यह उपासक प्रभु के साथ अपने को समवेत कर पाता है, जो प्रभु इस (भरहूतये) = संग्राम में वासनारूप शत्रुओं को ललकारनेवाले (विशे) = मनुष्य के लिये (पितुमन्तं क्षयं इव) = रक्षक अन्न से परिपूर्ण घर की तरह (रत्नं दधाति) = रमणीय वस्तुओं का धारण करता है।
भावार्थ
भावार्थ—हम क्रियाशीलतारूप वज्र के द्वारा वासनाओं का विनाश करें। प्रभु हमारे मित्र होंगे और हमारे लिये रमणीय वस्तुओं का धारण करेंगे।
मराठी (1)
भावार्थ
राजाने प्रजेचे पालन करण्यासाठी गूढ नीतीचा व्यवहार करावा व सर्वांचे यथार्थभावाने पालन करावे. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
That character and disposition, that form and policy of its dynamic flow, that admirable force of its arms like the razor’s edge, I know, is in keeping with its identity for the purpose of peace, protection and progress, and, like a comfortable home full of plenty, it holds the jewels of wealth and felicity for the people at the beck and call of the inmates.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The Statecraft is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
That man alone is able to rule over the State well, who maintains an admirable army for its protection the army which is mighty to cut into pieces the enemies. Such rulers with their beautiful body give jewels and good dwelling place to the subjects whose invocations are supporting.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
It is the duty of the king to deal with the subjects based on a good policy for their true protection and preservation.
Foot Notes
(अनोकम् ) सैन्यम् । = Army. (क्षयम्) । निवास- स्थानम् । क्षि -निवासगत्योः (तुदा० ) अत्र निवासार्थकः। = Dwelling place. (भरहूतये) भरे पालिकाः धरिका हूतयो यस्यास्त्स्यै प्रजायै।भृञ -धारणपोषणयो:। = For the subjects whose invocation are supporting.
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