ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 59/ मन्त्र 4
को वो॑ म॒हान्ति॑ मह॒तामुद॑श्नव॒त्कस्काव्या॑ मरुतः॒ को ह॒ पौंस्या॑। यू॒यं ह॒ भूमिं॑ कि॒रणं॒ न रे॑जथ॒ प्र यद्भर॑ध्वे सुवि॒ताय॑ दा॒वने॑ ॥४॥
स्वर सहित पद पाठकः । वः॒ । म॒हान्ति॑ । म॒ह॒ताम् । उत् । अ॒श्न॒व॒त् । कः । काव्या॑ । म॒रु॒तः॒ । कः । ह॒ । पौंस्या॑ । यू॒यम् । ह॒ । भूमि॑म् । कि॒रण॑म् । न । रे॒ज॒थ॒ । प्र । यत् । भर॑ध्वे । सु॒वि॒ताय॑ । दा॒वने॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
को वो महान्ति महतामुदश्नवत्कस्काव्या मरुतः को ह पौंस्या। यूयं ह भूमिं किरणं न रेजथ प्र यद्भरध्वे सुविताय दावने ॥४॥
स्वर रहित पद पाठकः। वः। महान्ति। महताम्। उत्। अश्नवत्। कः। काव्या। मरुतः। कः। ह। पौंस्या। यूयम्। ह। भूमिम्। किरणम्। न। रेजथ। प्र। यत्। भरध्वे। सुविताय। दावने ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 59; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे मरुतो ! महतां वो महान्ति क उदश्नवत् कः काव्योदश्नवत्को ह पौंस्योदश्नवद्यतो यूयं भूमिं किरणं न रेजथ यद्ध सुविताय दावने प्र भरध्वे तदेव सर्वैः प्राप्तव्यम् ॥४॥
पदार्थः
(कः) (वः) युष्माकं युष्मान् वा (महान्ति) विज्ञानादीनि (महताम्) (उत्) (अश्नवत्) प्राप्नोति (कः) (काव्या) कवीनां मेधाविनां कर्म्माणि (मरुतः) मननशीलाः (कः) (ह) किल (पौंस्या) पुंसामिमानि बलानि (यूयम्) (ह) खलु (भूमिम्) (किरणम्) दीप्तिम् (न) इव (रेजथ) कम्पध्वम् (प्र) (यत्) यम् (भरध्वे) धरत (सुविताय) ऐश्वर्य्याय (दावने) दात्रे ॥४॥
भावार्थः
अत्र प्रश्नोत्तराणि सन्ति−क आप्तानां सकाशान्महान्ति विज्ञानानि प्राप्नोति, कश्चाप्तानां कर्म्माणि, को वीराणां बलानि चेत्यतेषामुत्तरं ये पवित्रान्तःकरणाः शुश्रूषवो धर्मिष्ठाः पुरुषार्थिनो ब्रह्मचारिणश्चेति ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (मरुतः) विचार करनेवाले जनो ! (महताम्) बड़े (वः) आप लोगों के वा आप लोगों को (महान्ति) बड़े विज्ञान आदिकों को (कः) कौन (उत्, अश्नवत्) उत्तमता से प्राप्त होता है (कः) कौन (काव्या) बुद्धिमानों के कामों को उत्तमता से प्राप्त होता है (कः) कौन (ह) निश्चय से (पौंस्या) पुरुषों के इन बलों को प्राप्त होता है जिससे (यूयम्) आप लोग (भूमिम्) पृथिवी को (किरणम्) दीप्ति के (न) समान (रेजथ) कँपावें और (यत्) जिसको (ह) निश्चय (सुविताय) ऐश्वर्य और (दावने) देनेवाले के लिये (प्र, भरध्वे) धारण कीजिये, उसी को सब लोग प्राप्त होवें ॥४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में प्रश्न और उत्तर हैं-कौन यथार्थवक्ता जनों के समीप से बड़े विज्ञानों को प्राप्त होता है और कौन आप्तजनों के कर्म्मों को और कौन वीरों के बलों को प्राप्त होता है, इन प्रश्नों का उत्तर यह है कि पवित्र अन्तःकरण युक्त और धर्म्म के सुनने की इच्छा करनेवाले धर्मिष्ठ पुरुषार्थी और ब्रह्मचारी हैं ॥४॥
विषय
सूर्यदत् नायक का वर्णन ।
भावार्थ
भा०-हे वीरो विद्वान् पुरुषो ! ( महतां वः ) आप बड़े सामर्थ्यवान् लोगों के ( महान्ति ) बड़े २ विज्ञान आदि सामर्थ्यो को ( कः ) कौन (उत् अभवत् ) पा सकता है। आप लोगों के ( काव्या ) विद्वानों द्वारा कहे कार्यों, विद्वान् बुद्धिमान् पुरुषों द्वारा बनाये शस्त्रों का भी पार (कः) कौन पा सकता है, (पौंस्या) और आप लोगों के पौरुष, पराक्रमों को भी ( कः ह ) कौन मुकाबला कर सकता है। ( यूयं ह ) आप लोग (भूमिं ) भूमि को ( किरणं न ) सूर्य के प्रकाशक किरण के समान ( प्र रेजथ ) उत्पन्न और विचलित कर सकते हो । ( यत् ) आप लोग (सुविताय ) ऐश्वर्यवान् दाता, स्वामी की वृद्धि के लिये ( प्र भरध्वे ) उत्तम रीति से प्रजा का भरण पोषण तथा शत्रु पर प्रहार करते हो। वे भरण पोषण द्वारा प्रजा को उन्नत और प्रहारों द्वारा शत्रु को विचलित करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १, ४ विराड् जगती । २, ३, ६ निचृज्जगती । ५ जगती । ७ स्वराट् त्रिष्टुप् । ८ निचृत् त्रिष्टुप् ॥
विषय
'यश, ज्ञान, शक्ति, सदाचार व त्याग'
पदार्थ
[१] हे (मरुतः) = प्राणो! (कः) = कोई विरला पुरुष ही (महतां वः) = अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आपके (महान्ति) = महनीय यशों को (उदश्नवत्) = अपने में व्याप्त करता है। अर्थात् प्राणसाधना करता हुआ कोई विरला पुरुष ही यशस्वी जीवनवाला बनता है। (कः) = कोई ही (काव्या) = वेद ज्ञानों को व्याप्त करता है (कः ह) = और कोई (ही) = निश्चय से (पौंस्या) = शक्तियों को व्यापता है। प्राणसाधना से 'यश, ज्ञान व शक्ति' सभी का वर्धन होता है। [२] हे प्राणो! (यूयम्) = आप ही (ह) = निश्चय से (भूमिम्) = इस शरीररूप पृथिवी को, (किरणं न) = ज्ञान की किरणों के समान (रेजथ) = दीप्त करते हो । प्राणसाधना से शरीर तेजस्विता से दीप्त होता है और मस्तिष्क ज्ञानदीप्त बनता है। हे प्राणो! (यद्) = जब आप (प्रभरध्वे) = प्रकर्षेण भरण करते हो तो (सुविताय) = सुवित के लिये होते हो और (दावने) = त्याग के लिये होते हो । प्राणसाधना से हमारे दुरित दूर होते हैं और हमारी वृत्ति त्याग की बनती है।
भावार्थ
भावार्थ– प्राणसाधना हमारे जीवन में 'यश, ज्ञान, शक्ति, सदाचार व त्याग' को प्राप्त कराती है।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात प्रश्नोत्तरे आहेत. कोण विद्वानांकडून विज्ञान प्राप्त करतो? कोण बुद्धिमान लोकांच्या कर्मानुसार वागतो? व कोण वीरांचे बल प्राप्त करतो? या प्रश्नांचे उत्तर असे की पवित्र अंतःकरण असणारे, धर्माचे श्रवण करण्याची इच्छा असणारे, धार्मिक पुरुषार्थी व ब्रह्मचारी हे प्राप्त करतात. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Maruts, leading lights of the world, you are great. Who can reach your grandeur and achievements? Who can realise your divine vision and imaginative creations? O virile heroes, who can approach your power and potential? You illuminate the earth as sun beams and even shake it like particles of dust, while you rain down showers of generosity as gifts for the charity and welfare of the people.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of wind are stated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O thoughtful men ! who can reach the great knowledge, and who can create the great poetic works and manly deeds of your great one? You shake the earth like the rays of the sun, when you are carried forth for granting prosperity to the liberal donor.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
There are questions and answers. Who attains the great knowledge from the absolutely truthful enlightened person? Who can perform the works of these highly learned men, and who contain the strength of the heroes? The answers the these questions are-those who are men of pure mind, seekers after knowledge and truth, righteous, industrious and Brahmacharis can attain all this.
Foot Notes
(महान्ति) विज्ञानादीनि। — Great knowledge etc. (पोस्या) पुंसामिमानि बलानि । पौंस्यानीति बलनाम (NG 2, 9) = Manly powers. (सुविताय ) ऐश्वर्याय | For prosperity.
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