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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 64 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 64/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अर्चनाना आत्रेयः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    यु॒वाभ्यां॑ मित्रावरुणोप॒मं धे॑यामृ॒चा। यद्ध॒ क्षये॑ म॒घोनां॑ स्तोतॄ॒णां च॑ स्पू॒र्धसे॑ ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒वाभ्या॑म् । मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒ । उ॒प॒ऽमम् । धे॒या॒म् । ऋ॒चा । यत् । ह॒ । क्षये॑ । म॒घोना॑म् । स्तो॒तॄ॒णाम् । च॒ । स्पू॒र्धसे॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युवाभ्यां मित्रावरुणोपमं धेयामृचा। यद्ध क्षये मघोनां स्तोतॄणां च स्पूर्धसे ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युवाभ्याम्। मित्रावरुणा। उपऽमम्। धेयाम्। ऋचा। यत्। ह। क्षये। मघोनाम्। स्तोतॄणाम्। च। स्पूर्धसे ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 64; मन्त्र » 4
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 2; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मित्रावरुणपदवाच्यविद्वद्गुणानाह ॥

    अन्वयः

    हे मित्रावरुणा ! युवाभ्यामृचा स्पूर्धसे यन्मघोनां स्तोतॄणाञ्च क्षय उपमं यथाहं धेयां तथा तां ह युवां धरतम् ॥४॥

    पदार्थः

    (युवाभ्याम्) (मित्रावरुणा) अध्यापकोपदेशकौ (उपमम्) उपमाम् (धेयाम्) दध्याम् (ऋचा) स्तुत्या (यत्) याम् (ह) किल (क्षये) गृहे (मघोनाम्) बहुधनवताम् (स्तोतॄणाम्) विदुषाम् (च) (स्पूर्धसे) स्पर्धायै ॥४॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । सर्वैर्मनुष्यैर्विदुषामुपमा ग्राह्या ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मित्रावरुणपदवाच्य विद्वानों के गुणों को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मित्रावरुणा) अध्यापक और उपदेशक जनो ! (युवाभ्याम्) आप दोनों से (ऋचा) स्तुति से (स्पूर्धसे) स्पर्धा के लिए (यत्) जिस (मघोनाम्) बहुत धनवालों के (स्तोतॄणाम्, च) और विद्वानों के (क्षये) गृह में (उपमम्) उपमा को जैसे मैं (धेयाम्) धारण करूँ, वैसे उसको (ह) निश्चय आप धारण करो ॥४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सब मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों की उपमा को ग्रहण करें ॥४॥

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    विषय

    ऐश्वर्यवानों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०-हे (मित्रा वरुणा ) मित्र वरुण ! हे सर्वस्नेही ! हे सर्व श्रेष्ठ जनो ! ( मघोनां) धन सम्पन्न, धनदानी और ( स्तोतॄणां च ) ज्ञान सम्पन्न उपदेष्टा लोगों के ( क्षये ) गृह में ( यत् ह स्पूर्धसे ) जो स्पर्धा करने योग्य उत्तम धन और ज्ञान ( उपमं) सर्वोपमायोग्य हो, उसे मैं ( युवाभ्याम् ) आप दोनों की सहायता से, ( धेयाम्) प्रदान और पुष्ट करूं और स्वयं भी धारण करूं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अर्चनाना ऋषिः ॥ मित्रावरुणौ देवते ॥ छन्दः - १, २ विराडनुष्टुप् ॥ ६ निचृदनुष्टुप्, । ३, ५ भुरिगुष्णिक् । ४ उष्णिक् । ७ निचृत् पंक्तिः ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    अनुपम धन लाभ

    पदार्थ

    [१] हे (मित्रावरुणा) = स्नेह व निर्देषता के भावो! (युवाभ्याम्) = आपके द्वारा (ऋचा) = स्तुति शब्दों का, मधुर सुखमयी वाणी का ही प्रयोग करने के द्वारा (उपमम्) = उपमा देने योग्य, अद्भुतधन को (धेयाम्) = धारण करूँ। उस धन को धारण करूँ जो उपमा देने योग्य हो, जिसके लिये लोग यह कहें कि 'धन हो तो, ऐसा हो' । [२] उस धन को मैं धारण करूँ (यत्) = जो (ह) = निश्चय से (मघोनाम्) = [मघ=मख] यज्ञशील पुरुषों के (च) = और (स्तोतृणाम्) = स्तोताओं के क्षये गृह में (स्पूर्धसे) = स्पर्धा के लिये होता है। इसी प्रकार स्नेह व निर्देषता के भावों को धारण करने पर हमारे घरों में निवास के लिये धनों में मानो स्पर्धा होगी। सब धन हमारे घरों में निवास करना चाहेंगे।

    भावार्थ

    भावार्थ- मित्र व वरुण की आराधना हमारे घरों को उत्तम धनों से भरपूर कर है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सर्व माणसांनी विद्वानांच्या उपमा स्वीकाराव्या. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May I, with prayer and adoration, receive from you, Mitra and Varuna, that excellent treasure of wealth and wisdom which abides in the home of the prosperous celebrants when they have reached their golden goal of joy and which I aspire to emulate.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of the enlightened persons denoted by the word Mitra varunau are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O teachers and preachers, as I may have by praise for comparison your simile (example) at the house of the devotees of God and wealthy persons. So you may also do.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    All men should take the ideal or example of the enlightened persons.

    Translator's Notes

    A teacher who is friendly to all and who saves others from sinful path is called Mitra. (मित्र:) त्रिमिदा स्नेहने । - प्रमीतेर्मरणात् त्रायते इति मित्रम् (NKT 10, 2,22)

    Foot Notes

    (मित्रावरुणा ) अध्यापकोपदेशको। = Teachers and preachers (स्पृधंसे) स्पर्धायै । = For comparison or competition.

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