ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 64/ मन्त्र 6
यु॒वं नो॒ येषु॑ वरुण क्ष॒त्रं बृ॒हच्च॑ बिभृ॒थः। उ॒रु णो॒ वाज॑सातये कृ॒तं रा॒ये स्व॒स्तये॑ ॥६॥
स्वर सहित पद पाठयु॒वम् । नः॒ । येषु॑ । व॒रु॒णा॒ । क्ष॒त्रम् । बृ॒हत् । च॒ । बि॒भृ॒थः । उ॒रु । नः॒ । वाज॑ऽसातये । कृ॒तम् । रा॒ये । स्व॒स्तये॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
युवं नो येषु वरुण क्षत्रं बृहच्च बिभृथः। उरु णो वाजसातये कृतं राये स्वस्तये ॥६॥
स्वर रहित पद पाठयुवम्। नः। येषु। वरुण। क्षत्रम्। बृहत्। च। बिभृथः। उरु। नः। वाजऽसातये। कृतम्। राये। स्वस्तये ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 64; मन्त्र » 6
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 2; मन्त्र » 6
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अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 2; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विरोधत्यागधनप्राप्तिविषयमाह ॥
अन्वयः
हे वरुण च ! युवं येषु नो बृहदुरु क्षत्रं बिभृथो नो वाजसातये राये स्वस्तये कृतं तेषु तथैव भवतम् ॥६॥
पदार्थः
(युवम्) युवाम् (नः) अस्मभ्यम् (येषु) (वरुण) उत्तम (क्षत्रम्) धनम् (बृहत्) महत् (च) मित्र (बिभृथः) (उरु) बहु (नः) अस्मान् (वाजसातये) सङ्ग्रामाय (कृतम्) (राये) धनाय (स्वस्तये) सुखाय ॥६॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । मनुष्यैर्विरोधं विहाय सम्प्रयोगेणोद्यमं कृत्वा विजयधनादिकं प्रापणीयम् ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विरोध के त्याग और धनप्राप्ति विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (वरुण) उत्तम (च) और हे मित्र ! (युवम्) आप दोनों (येषु) जिनमें (नः) हम लोगों के लिये (बृहत्) बड़े और (उरु) बहुत (क्षत्रम्) धन को (बिभृथः) धारण करते हैं और (नः) हम लोगों को (वाजसातये) सङ्ग्राम के लिये (राये) धन के और (स्वस्तये) सुख के लिये (कृतम्) किया उनमें वैसे ही हूजिये ॥६॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । मनुष्यों को चाहिये कि विरोध का त्याग कर और उत्तम प्रकार मिलने से उद्यम करके विजय और धन आदि को प्राप्त करें ॥६॥
विषय
ऐश्वर्यवानों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
भा०-हे (मित्र) स्नेहयुक्त ! हे (वरुण) दुःखों के वारण करने हारे ! ( युवं ) आप दोनों (नः) हमारे ( क्षत्रं ) बल और (बृहत् ) महान् राष्ट्र को ( बिभृथः ) धारण और परिपुष्ट करते हो ! और (राये ) ऐश्वर्य की वृद्धि ( स्वस्तये ) कल्याण के लिये और ( वाजसातये ) धनैश्वर्य, जल और संग्रामकारी बल को प्राप्त करने के लिये (उरु कृतम् ) बहुत प्रयत्न करो । अथवा - ( नः उरुकृतं बिभृथः ) हमारे बड़े भारी किये यत्न को भी धारण वा पुष्ट करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अर्चनाना ऋषिः ॥ मित्रावरुणौ देवते ॥ छन्दः - १, २ विराडनुष्टुप् ॥ ६ निचृदनुष्टुप्, । ३, ५ भुरिगुष्णिक् । ४ उष्णिक् । ७ निचृत् पंक्तिः ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
विषय
शक्ति-सम्पत्तिसुस्थिति
पदार्थ
[१] हे (वरुण) = मित्र और वरुण [वरुण से मित्र का भी अध्याहार करता है, तभी 'युवं ' यह द्विवचन ठीक होगा] (युवम्) = आप दोनों (नः) = हमारे (येषु) = जिन पुरुषों में (क्षत्रम्) = बल, (बृहत् च) = और ब्रह्म, अर्थात् ज्ञान को (बिभृथ:) = धारण करते हो । [२] इस बल व ज्ञान को (नः) = हमारे लिये (वाजसातये) = शक्ति की प्राप्ति के लिये (राये) = ऐश्वर्य लाभ के लिये और स्वस्तये उत्तम कल्याण के लिये (कृतम्) = करिये। मित्र व वरुण की आराधना से प्राप्त होनेवाला बल व ज्ञान [क्षत्र व ब्रह्म] हमें 'शक्ति ऐश्वर्य व कल्याण' प्राप्त कराता है ।
भावार्थ
भावार्थ- स्नेह व निर्देषता के होने पर क्षत्र व ब्रह्म की वृद्धि से 'शक्ति-सम्पत्ति व सुस्थिति' प्राप्त होती है।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी विरोध सोडावा व उत्तम प्रकारे उद्योग करून विजय व धन इत्यादी प्राप्त करावे. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O lord of love and friendship, Mitra, O Varuna, lord of justice and rectitude, those whom you vest with the great social order and high excellence and guide and conduct for our sake, advance and raise higher in honour and excellence for victory, wealth and well being for us.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Something about giving up all malice and acquisition of wealth is told further.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O noble and friendly person ! among those in whom you uphold much and great wealth, vouchsafe us room for wealth, happiness or welfare and victory in battles.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Men should give up all malice (or conflict) and should achieve victory and wealth by their united efforts.
Foot Notes
(क्षत्रम्) धनम् । क्षत्रम् इति धननाम (NG 2, 10) = Wealth. (वाजसातये) सङ्ग्रामाय । - वाजसातौ इति संग्रामनाम (NG 2, 17 ) = For battle.
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