ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 66/ मन्त्र 4
ऋषिः - रातहव्य आत्रेयः
देवता - मित्रावरुणौ
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अधा॒ हि काव्या॑ यु॒वं दक्ष॑स्य पू॒र्भिर॑द्भुता। नि के॒तुना॒ जना॑नां चि॒केथे॑ पूतदक्षसा ॥४॥
स्वर सहित पद पाठअध॑ । हि । काव्या॑ । यु॒वम् । दक्ष॑स्य । पूः॒ऽभिः । अ॒द्भु॒ता॒ । नि । के॒तुना॑ । जना॑नाम् । चि॒केथे॒ इति॑ । पू॒त॒ऽद॒क्ष॒सा॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अधा हि काव्या युवं दक्षस्य पूर्भिरद्भुता। नि केतुना जनानां चिकेथे पूतदक्षसा ॥४॥
स्वर रहित पद पाठअध। हि। काव्या। युवम्। दक्षस्य। पूःऽभिः। अद्भुता। नि। केतुना। जनानाम्। चिकेथे इति। पूतऽदक्षसा ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 66; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे अध्यापकोपदेशकौ ! पूतदक्षसा युवं केतुनाऽद्भुता काव्या चिकेथे अधा हि जनानां दक्षस्य पूर्भिर्नि चिकेथे तौ वयं सदा सत्कुर्याम ॥४॥
पदार्थः
(अधा) अथ। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (हि) यतः (काव्या) कवीनां कर्माणि (युवम्) युवाम् (दक्षस्य) बलस्य (पूर्भिः) नगरैः (अद्भुता) आश्चर्य्यरूपाणि (नि) (केतुना) प्रज्ञया (जनानाम्) मनुष्याणाम् (चिकेथे) जानीथः (पूतदक्षसा) पूतं पवित्रं दक्षो बलं ययोस्तौ ॥४॥
भावार्थः
विदुषामिदं योग्यमस्ति यत्स्वयं पूर्णा विद्वांसो भूत्वाऽज्ञजनानध्यापनोपदेशाभ्यामुपकृतान् कुर्य्युः ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे अध्यापक और उपदेशक जनो ! (पूतदक्षसा) पवित्र बल जिनका ऐसे (युवम्) आप दोनों (केतुना) बुद्धि से (अद्भुता) आश्चर्य्यरूप (काव्या) कवियों के कर्म्मों को (चिकेथे) जानते हैं (अधा) इसके अनन्तर (हि) जिससे (जनानाम्) मनुष्यों के (दक्षस्य) बलसम्बन्धी (पूर्भिः) नगरों से (नि) निरन्तर करके जानते हैं, उनका हम लोग सदा सत्कार करें ॥४॥
भावार्थ
विद्वानों को यह योग्य है कि स्वयं पूर्ण विद्वान् होके अज्ञजनों को अध्यापन और उपदेश से उपकृत करें ॥४॥
विषय
मार्ग पार करने के लिये रथ में अभि जलवत् राष्ट्र में न्याय और शासन विभागों का वर्णन ।
भावार्थ
भा०- ( अध हि ) और ( पूत-दक्षसा ) पवित्र बल को धारण करने वाले (युवं ) आप दोनों (दक्षस्य ) बल के ( पूर्भिः ) पूर्ण करने वाले शिष्यों सहित ( अद्भुता ) अद्भुत ( काव्या ) विद्वान् क्रान्तदर्शी पुरुषों के द्वारा ज्ञान करने योग्य ज्ञानों का ( जनानां ) मनुष्यों के हितार्थं ( केतुना ) ज्ञापक शास्त्र द्वारा ( नि चेकेथे ) निरन्तर ज्ञान करो, उसका बराबर अभ्यास किया करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
रातहव्य आत्रेय ऋषिः । मित्रावरुणौ देवते ॥ छन्द: – १,५,६ विराडनुष्टुप् । २ निचृदनुष्टुप् । ३, ४ स्वराडनुष्टुप् ॥ षडृर्चं सूक्तम् ॥
विषय
काव्या-पूतदक्षसा
पदार्थ
[१] (अधा) = अब (हि) = निश्चय से (युवम्) = आप दोनों मित्र और वरुण, स्नेह व निर्देषता के भावो ! (काव्या) = कविकर्मकुशल, अर्थात् खूब ज्ञानी हो । स्नेह व निर्देषता के भाव हमारे ज्ञान का वर्धन करते हैं। आप (दक्षस्य) = बल के (पूर्भि:) = पूरणों के द्वारा (अद्भुता) = अद्भुत हो । हे मित्र वरुणो ! आप हमारे जीवन में अद्भुत बल का संचार करते हो। [२] आप (जनानाम्) = लोगों के (केतुना) = प्रज्ञान से (निचिकेथे) = जाने जाते हो । अर्थात् जितना जितना कोई ज्ञानी होता है, उतना उतना ही वह आपकी आराधना से ही वैसा बना होता है। आप (पूतदक्षस:) = उसके बल को भी पवित्र करनेवाले हो।
भावार्थ
भावार्थ- स्नेह व निर्देषता के भाव ही हमें ज्ञान व शक्ति को प्राप्त कराते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
विद्वानांनी स्वतः पूर्ण विद्वान बनून अज्ञानी लोकांना शिक्षण व उपदेश यांनी उपकृत करावे. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Mitra and Varuna, leading lights of love and friendship, justice and rectitude, poetic visionaries commanding unprecedented and unsullied power, inspiring wonder and awe, you are widely known of the people by the brilliance of your knowledge, abundant praises of the versatile poet and the strongholds of strength and power over the earth.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of a man are mentioned.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O teachers and preachers! your might is pure known by your intellect, by the wonderful poetical works, and you also acquire knowledge by the cities built by men (town- planners. Ed.)with great power. Let us honour you for ever.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
It is the duty of the enlightened persons to become great scholars and to do good to the ignorant by teaching and preaching.
Foot Notes
(केतुना ) प्रज्ञया । केतुरिति प्रज्ञानाम (NG 3, 9) दक्ष इति बलनाम । (NG 2, 9) = Through intellect. (पूतदक्षसा) पूतं पवित्रं दक्षो बलं ययोस्तौ। =Men whose might is pure.
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