ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 24/ मन्त्र 4
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
शची॑वतस्ते पुरुशाक॒ शाका॒ गवा॑मिव स्रु॒तयः॑ सं॒चर॑णीः। व॒त्सानां॒ न त॒न्तय॑स्त इन्द्र॒ दाम॑न्वन्तो अदा॒मानः॑ सुदामन् ॥४॥
स्वर सहित पद पाठशची॑ऽवतः । ते॒ । पु॒रु॒ऽशा॒क॒ । शाकाः॑ । गवा॑म्ऽइव । स्रु॒तयः॑ । स॒म्ऽचर॑णीः । व॒त्साना॑म् । न । त॒न्तयः॑ । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । दाम॑न्ऽवन्तः । अ॒दा॒मानः॑ । सु॒ऽदा॒म॒न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
शचीवतस्ते पुरुशाक शाका गवामिव स्रुतयः संचरणीः। वत्सानां न तन्तयस्त इन्द्र दामन्वन्तो अदामानः सुदामन् ॥४॥
स्वर रहित पद पाठशचीऽवतः। ते। पुरुऽशाक। शाकाः। गवाम्ऽइव। स्रुतयः। सम्ऽचरणीः। वत्सानाम्। न। तन्तयः। ते। इन्द्र। दामन्ऽवन्तः। अदामानः। सुऽदामन् ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 24; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राज्ञा प्रजाभिश्च कथं वर्तितव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे पुरुशाकेन्द्र ! शचीवतस्ते गवामिव स्रुतयः सञ्चरणीः शाका वत्सानां तन्तयो न ते प्रजाः सन्ति। हे सुदामन् ! ये दामन्वन्तः स्युस्तेऽदामानस्त्वया कार्याः ॥४॥
पदार्थः
(शचीवतः) प्रज्ञाप्रजायुक्तस्य (ते) तव (पुरुशाक) बहुशक्त (शाकाः) शक्तिमत्यः (गवामिव) (स्रुतयः) स्रुवन्त्यः (सञ्चरणीः) याः सम्यक् चरन्ति ता भूमयः (वत्सानाम्) (न) इव (तन्तयः) विस्तीर्णाः (ते) तव (इन्द्र) दुःखविदारक (दामन्वन्तः) बहुबन्धनाः (अदामानः) निर्बन्धनाः (सुदामन्) सुनियमबद्ध ॥४॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। त एव राजानः प्रशंसितप्रभावा भवन्ति येऽन्यायपीडादिबन्धनात् प्रजा विमोच्य धर्मपथे प्रचालयन्ति यथा वत्सानां वर्धिका गावो भवन्ति तथैव प्रजानां वर्धका राजपुरुषाः स्युः ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजा और प्रजा को कैसा वर्त्ताव करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (पुरुशाक) बहुत सामर्थ्यवान् (इन्द्र) दुःख के नाश करनेवाले ! (शचीवतः) बुद्धि और प्रजा से युक्त (ते) आपकी (गवामिव, स्रुतयः) गौओं की गतियों के सदृश (सञ्चरणीः) अच्छे प्रकार चलनेवाली भूमियाँ (शाकाः) और सामर्थ्य वाली (वत्सानाम्) बछड़ों की (तन्तयः) विस्तृत पङ्क्तियों के (न) सदृश (ते) आपकी प्रजा हैं। हे (सुदामन्) अच्छे नियमों में बँधे हुए ! जो (दामन्वन्तः) बहुत बन्धनोंवाले होवें वे आप से (अदामानः) बन्धनरहित करने योग्य हैं ॥४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। वे ही राजाजन प्रशंसित प्रतापवाले होते हैं, जो अन्याय और पीड़ा आदि के बन्धन से प्रजाओं को छुड़ा कर धर्ममार्ग में चलाते हैं और जैसे बछड़ों की बढ़ानेवाली गौ होती हैं, वैसे ही प्रजा के बढ़ानेवाले राजपुरुष हों ॥४॥
विषय
गौओं और बछड़ों के तुल्य और प्रभु राजा की शक्तियों, सेनाओं और प्रजाओं की स्थिति ।
भावार्थ
हे ( पुरुशाक ) नाना शक्तियों के स्वामिन् ! ( गवाम् इव स्रुतयः सञ्चरणीः ) जिस प्रकार गौओं के चलने के मार्ग अच्छी प्रकार चलने योग्य होते हैं और ( गवाम् इव स्रुतयः सञ्चरणी: ) जिस प्रकार गौओं के दूध की बहती धारें अच्छी प्रकार सुख से खाने योग्य होती हैं उसी प्रकार ( ते शचीवतः ) तुझ शक्तिशाली, वाणी प्रज्ञा तथा शक्ति वाली सेना के स्वामी के ( शाकाः ) शक्तिशाली पुरुष तथा शक्ति के कार्य भी ( संचरणीः ) उत्तम रीति से चलने वाले, सदाचारी, और सुखदायकः हों। हे (सुदामन् ) उत्तम नियमों में बांधने हारे ! ( वत्सानां तन्तयः न ) बछड़ों को बांधने की रस्सियां जिस प्रकार कुछ ढीली रहकर भी बछड़ों को कष्ट न पहुंचाती हुई उनके लाभ के लिये होती हैं उसी प्रकार ( वत्सानां ) राष्ट्र में बसी प्रजाओं के ( तन्तयः ) विस्तृत राजनियम तथा ( शाका: ) तेरे शक्ति के कार्य भी ( अदामानः ) स्वतः बन्धनरहित होकर भी ( दामन्वन्तः ) उत्तम बन्धनों से बद्ध प्रजा को उत्तम रीति से बांधने में समर्थ हों ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः - १, २ भुरिक् पंक्तिः । ३,५,९ पंक्ति: । ४, ७ निचृत्त्रिष्टुप् । ८ त्रिष्टुप् । १० विराट् त्रिष्टुप् । ६ ब्राह्मी बृहती ॥ दशर्चं सूकम् ॥
विषय
पुरुशाक-सुदामा
पदार्थ
[१] हे (पुरुशाक) = अनन्त शक्तिशाली कर्मोंवाले प्रभो ! (शचीवतः ते) = प्रज्ञावान् आपके (शाका:) = शक्तिशाली कर्म, (गवाम्) = गौवों के (स्स्रुतयः इव) = मार्गों की तरह (सञ्चरणी:) = सर्वत्र सञ्चारी हैं। गौवों के मार्ग जिधर देखो उधर ही दिख पड़ते हैं, इसी प्रकार प्रभु के शक्तिशाली कर्म भी चारों ओर दिखते हैं। [२] हे (इन्द्र) = सब शक्तिशाली कर्मों को करनेवाले (सुदामन्) = उत्तमता से बाँधनेवाले, सब लोकों को नियम में बद्ध करनेवाले प्रभो! आपकी (तन्तयः) = दीर्घ प्रसारित व्यवस्था रूप रज्जुएँ (दामन्वन्तः) = सब को नियमों में बाँधनेवाली हैं। उसी प्रकार (न) = जैसे कि (वत्सानाम्) = रज्जुएँ बछड़ों को बाँधनेवाली होती हैं। ये आपकी व्यवस्था रूप रज्जुएँ (अदामानः) = स्वयं किसी से बद्ध नहीं होती। प्रभु की व्यवस्थाओं का प्रतिबन्ध किसी और से नहीं किया जा सकता।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु के शक्तिशाली कर्म चारों ओर दृष्टिगोचर होते हैं। प्रभु की व्यवस्थाएँ, किसी से प्रतिबद्ध न होती हुई, सभी को नियमों में बाँधनेवाली हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे अन्याय व त्रासातून प्रजेची मुक्तता करतात व धर्म मार्गाने चालवितात त्याच राजांची प्रशंसा होते व जसे गाई वासरांना वाढवितात तसेच प्रजेला वाढविणारे राजपुरुष असावेत. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, refulgent lord ruler of the world, destroyer of suffering, manifold are your deeds, unbounded your intelligence, and countless your people. The abundant streams of your generous acts are expansive, associative and convergent like waves of light rays and paths of cows and orbits of stars, and, like tethers of the calves and axes of planets, they are controllers and yet givers of freedom, O generous lord of law and liberty.
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