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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 24/ मन्त्र 9
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    ग॒म्भी॒रेण॑ न उ॒रुणा॑मत्रि॒न्प्रेषो य॑न्धि सुतपाव॒न्वाजा॑न्। स्था ऊ॒ षु ऊ॒र्ध्व ऊ॒ती अरि॑षण्यन्न॒क्तोर्व्यु॑ष्टौ॒ परि॑तक्म्यायाम् ॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ग॒म्भी॒रेण॑ । नः॒ । उ॒रुणा॑ । अ॒म॒त्रि॒न् । प्र । इ॒षः । य॒न्धि॒ । सु॒त॒ऽपा॒व॒न् । वाजा॑न् । स्थाः । ऊँ॒ इति॑ । सु । ऊ॒र्ध्वः । ऊ॒ती । अरि॑षण्यन् । अ॒क्तोः । विऽउ॑ष्टौ । परि॑ऽतक्म्यायाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गम्भीरेण न उरुणामत्रिन्प्रेषो यन्धि सुतपावन्वाजान्। स्था ऊ षु ऊर्ध्व ऊती अरिषण्यन्नक्तोर्व्युष्टौ परितक्म्यायाम् ॥९॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गम्भीरेण। नः। उरुणा। अमत्रिन्। प्र। इषः। यन्धि। सुतऽपावन्। वाजान्। स्थाः। ऊँ इति। सु। ऊर्ध्वः। ऊती। अरिषण्यन्। अक्तोः। विऽउष्टौ। परिऽतक्म्यायाम् ॥९॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 24; मन्त्र » 9
    अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे अमत्रिन्त्सुतपावंस्त्वं गम्भीरेणोरुणा न इषो यन्धि। उ ऊती उर्ध्वोऽरिषण्यन्नक्तोर्व्युष्टौ परितक्म्यायां वाजान् सुप्र स्थाः ॥९॥

    पदार्थः

    (गम्भीरेण) अगाधेन (नः) अस्मभ्यम् (उरुणा) बहुना (अमत्रिन्) बहुबलयुक्त (प्र) (इषः) अन्नादीन् (यन्धि) नियच्छ (सुतपावन्) यः सुतान्निष्पन्नान् पदार्थान् पुनाति (वाजान्) विज्ञानादीनि (स्थाः) तिष्ठेः (उ) (सु) (ऊर्ध्वः) (ऊती) रक्षणाद्यायाः (अरिषण्यन्) अहिंसयन् (अक्तोः) रात्रेः (व्युष्टौ) प्रभाते (परितक्म्यायाम्) निशि ॥९॥

    भावार्थः

    ये यमनियमान्विताः कार्यसिद्धयेऽहर्निशं प्रयत्नमातिष्ठेयुस्त उत्कृष्टा जायन्ते ॥९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उस ही विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (अमत्रिन्) बहुत बल से युक्त और (सुतपावन्) उत्पन्न पदार्थों के पवित्र करनेवाले आप (गम्भीरेण) गम्भीर और (उरुणा) बहुत से (नः) हम लोगों को (इषः) अन्न आदिक (यन्धि) दीजिये (उ) और (ऊती) रक्षण आदि क्रिया से (ऊर्ध्वः) ऊपर वर्तमान (अरिषण्यन्) नहीं हिंसा करते हुए (अक्तोः) रात्रि से (व्युष्टौ) प्रभातकाल में और (परितक्म्यायाम्) रात्रि में (वाजान्) विज्ञान आदिकों को (सु, प्र) अति उत्तम प्रकार (स्थाः) स्थित हूजिये ॥९॥

    भावार्थ

    जो यम और नियमों से युक्त हुए कार्य की सिद्धि के लिये दिन-रात्रि प्रयत्न करें, वे उत्तम होते हैं ॥९॥

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    विषय

    पितावत् राजा के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे ( अमत्रिन् ) बलशालिन् ! हे (सुतपावन ) प्रजा जन को पुत्र के समान पालन करने वाले ! वा ऐश्वर्य के रक्षक राजन् ! हे ( सुतपावन् ) उत्पन्न जगत् के रक्षक और पालन करने हारे प्रभो ! तू ( गम्भीरेण ) गंभीर, और ( उरुणा ) महान् विस्तीर्ण, सामर्थ्य से ( नः इषः ) हमारी कामनाओं को और (वाजान् ) बलों, अन्नों, ज्ञानों को ( प्र यन्धि ) हमें खूब दे । वा (नः वाजान् प्र इषः ) हमारे ऐश्वर्यो को तू चाह । ( नः वाजान्, प्र यन्धि ) हमारे बलों को नियम में रख। वा, ( नः इषः प्रयन्धि ) हमें अन्न, और इष्ट बुद्धि आदि प्रदान कर और ( वाजान् प्र यन्धि ) बहुत से ऐश्वर्य दे । वा (इषः प्रयन्धि, वाजान् प्रयन्धि) हमारी सेनाओं और बलवान् पुरुषों को उत्तम नियन्त्रण मे रख । और तू (नक्तोः ) रात्रि के (वि-उष्टौ ) प्रभात होने के काल में तथा ( परितक्म्यायाम् ) रात्रि काल में वा, अति कष्टमयी दशा में भी, (अरिषण्यन्) स्वयं प्रजाओं का पीड़न न करता हुआ, ( ऊती) अपने रक्षा बल से ( ऊर्ध्वः उ सु स्थाः ) सब से ऊंचा होकर रह ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः - १, २ भुरिक् पंक्तिः । ३,५,९ पंक्ति: । ४, ७ निचृत्त्रिष्टुप् । ८ त्रिष्टुप् । १० विराट् त्रिष्टुप् । ६ ब्राह्मी बृहती ॥ दशर्चं सूकम् ॥

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    विषय

    गम्भीरता व विशाल हृदयता

    पदार्थ

    [१] हे (सु वन्) = उत्पन्न सोम के रक्षक व (अमत्रिन्) = [अमत्रं बलम्] अतिशयेन बलवन् प्रभो ! (नः) = हमारे लिये (गम्भीरेण उरुणा) = गम्भीर व विशाल मन के हेतु से (इषः) = प्रकृष्ट प्रेरणाओं को व (वाजान्) = बलों को प्रयन्धिप्रकर्षेण प्राप्त कराइये । हम उत्कृष्ट प्रेरणाओं को व बलों को प्राप्त करके गम्भीर व विशाल हृदयवाले बन पायें। [२] हे प्रभो! आप (परितक्म्यायाम्) = रात्रि में तथा (अक्तो व्युष्टौ) = इस रात्रि के विवास [समाप्ति] अर्थात् दिन में भी (नः) = हमारी (ऊती) = रक्षा के लिये सदा (उ) = निश्चय से (षु) = अच्छी प्रकार (ऊर्ध्वः स्था:) = ऊपर खड़े हुए होइये - सदा जागरित होइये। हमें दिन-रात आपका रक्षण प्राप्त हो । (अरिषण्यन्) = आप हमें किन्हीं भी शत्रुओं से हिंसित न होने दीजिये ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम दिन-रात प्रभु के रक्षण में, प्रभु से प्रेरणाओं व शक्तियों को प्राप्त करके गम्भीर व विशाल हृदयवाले हों ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे यमनियमांचे पालन करून कार्य पूर्ण व्हावे यासाठी दिवसरात्र प्रयत्न करतात ते उत्कृष्ट असतात. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Mighty lord, purifier and sanctifier of things in the world of creation, with deep love, profound purpose and grace unbound, give us abundance of food and energy and wide ranging knowledge and success. Stay with us constant with your protection high over us, at dawn and at dusk, night and day without hurt or let up.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject of men's duties is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O mighty purifier of the produced objects, give the strengthening food materials and other things by your deep and great power. Give us knowledge, being non-violent, standing up erect to protect us at the time when the gloom of night brightens to morning.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those persons who observing Yamas (restraints) and Niyamas (observance) endeavor day and night to accomplish work, become exalted.

    Foot Notes

    (परितकम्यायाम्) निशिः । परितक्म्या इति पदनाम (NG 4, 1 ) पदी-गतौ अत्र गते स्त्रिष्वर्थेषु प्राप्त्यर्थमादाय | = In the night. (अक्तौ:) रात्रेः अक्तुः इति रात्रिनाम (NG 1, 7) विश्राम प्रापिका रात्रिरित्यर्थः = Of the night. (व्युष्टो) प्रभाते | = In the morning. (अरिषण्यन्) अहिंसयन् । रिष्-हिंसायाम् (भ्वा० ) = Non-harming.

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