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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 25/ मन्त्र 5
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    न॒हि त्वा॒ शूरो॒ न तु॒रो न धृ॒ष्णुर्न त्वा॑ यो॒धो मन्य॑मानो यु॒योध॑। इन्द्र॒ नकि॑ष्ट्वा॒ प्रत्य॑स्त्येषां॒ विश्वा॑ जा॒तान्य॒भ्य॑सि॒ तानि॑ ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न॒हि । त्वा॒ । शूरः॑ । न । तु॒रः । न । धृ॒ष्णुः । न । त्वा॒ । यो॒धः । मन्य॑मानः । यु॒योध॑ । इन्द्र॑ । नकिः॑ । त्वा॒ । प्रति॑ । अ॒स्ति॒ । ए॒षा॒म् । विश्वा॑ । जा॒तानि॑ । अ॒भि । अ॒सि॒ । तानि॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नहि त्वा शूरो न तुरो न धृष्णुर्न त्वा योधो मन्यमानो युयोध। इन्द्र नकिष्ट्वा प्रत्यस्त्येषां विश्वा जातान्यभ्यसि तानि ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नहि। त्वा। शूरः। न। तुरः। न। धृष्णुः। न। त्वा। योधः। मन्यमानः। युयोध। इन्द्र। नकिः। त्वा। प्रति। अस्ति। एषाम्। विश्वा। जातानि। अभि। असि। तानि ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 25; मन्त्र » 5
    अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्र ! यथा त्वा मन्यमानश्शूरो त्वा नहि युयोध न तुरो न धृष्णुर्न योधो त्वाभि युयोध त्वा प्रति कोऽपि नकिरस्ति एषां यानि विश्वा जातानि बलादीनि सन्ति यतस्तानि त्वं जित्वा विजयमानोऽसि तस्मात् प्रशंसां लभसे ॥५॥

    पदार्थः

    (नहि) निषेधे (त्वा) त्वाम् (शूरः) (न) (तुरः) हिंसकः शीघ्रकारी (न) (धृष्णुः) धृष्टः (न) (त्वा) त्वाम् (योधः) युद्धकर्ता (मन्यमानः) अभिमानी सन् (युयोध) युद्ध्येत् (इन्द्र) सेनापते (नकिः) निषेधे (त्वा) त्वाम् (प्रति) (अस्ति) (एषाम्) (विश्वा) सर्वाणि (जातानि) प्रसिद्धानि (अभि) (असि) (तानि) ॥५॥

    भावार्थः

    राज्ञा राजपुरुषैर्विशेषतः सेनाजनैरीदृशं बलं विज्ञानं च वर्त्तनीयं येन कोऽपि योद्धुं नेच्छेत् ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह राजा कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) सेना के स्वामिन् ! जैसे (त्वा) आपको (मन्यमानः) मानता हुआ (शूरः) शूरवीर जन (त्वा) आपसे (नहि) नहीं (युयोध) युद्ध करता और (न)(तुरः) हिंसा वा शीघ्र करनेवाला (न)(धृष्णुः) ढीठ (न) और न (योधः) प्रतियोधा (त्वा) आपसे (अभि) सब प्रकार से युद्ध करता है, किन्तु आपके (प्रति) प्रति कोई भी (नकिः) नहीं (अस्ति) है और (एषाम्) इन की जो (विश्वा) सम्पूर्ण (जातानि) प्रसिद्ध सेना हैं, जिस कारण (तानि) उनको आप जीत कर जीतते हुए (असि) हैं, इससे प्रशंसा को प्राप्त होते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    राजा और राजपुरुषों को चाहिए कि विशेष करके सेनाजनों से ऐसा पराक्रम और विज्ञान बढ़ावें, जिससे कोई भी युद्ध करने की इच्छा न करे ॥५॥

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    विषय

    सर्वोपरि शासक।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! शत्रुहन्तः ! राजन् ! (त्वा) तेरे से अधिक (नहि शूरः) न कोई शूरवीर (न तुरः) न कोई हिंसक, (न धृष्णुः) न कोई शत्रुपराजयकारी, ( न योधः ) न कोई योद्धा, ( मन्यमानः ) अभिमानी होकर (युयोध) युद्ध कर सकता है, ( एषाम् ) इनमें से ( त्वा प्रति नकिः अस्ति ) तेरे मुक़ाबले पर कोई भी नहीं है । तू ही ( विश्वा जातानि ) समस्त उत्पन्न वा प्रसिद्ध ( तानि ) उन २ नाना सैन्यों के ( अभि असि ) मुक़ाबले पर समर्थ है । इत्येकोनविंशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः । इन्द्रो देवता । छन्दः – १, ५ पंक्तिः । ३ भुर्रिक् पंक्तिः । २, ७, ८, ९ निचृत्त्रिष्टुप् । ४, ६ त्रिष्टुप् ।। नवर्च सूक्तम् ॥

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    विषय

    प्रभु अजय्य हैं

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = सब शक्तिशाली कर्मों को करनेवाले प्रभो ! (त्वा शूरः नहि युयोध) = कोई भी शूरवीर आपके साथ युद्ध नहीं कर सकता । (तुरः) = कोई भी शत्रुओं का हिंसन करनेवाला न आपका हिंसन नहीं कर पाता। (धृष्णुर्न) = शत्रुओं का धर्मण करनेवाला व्यक्ति न आपका धर्षण करने में समर्थ नहीं। और (त्वा) = आपको कोई भी (मन्यमानः योधः) = अपने को वीर माननेवाला योद्धा न (युयोध) = युद्ध में सामने नहीं आ पाता । [२] हे इन्द्र ! (एषाम्) = इनमें (नकिः त्वा प्रत्यस्ति) = कोई भी आपका मुकाबिला नहीं कर सकता । (तानि) = उन (विश्वा) = सब (जातानि) = शत्रुर्भूत हुए हुए शत्रुओं को (अभ्यासि) = आप अभिभूत करते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु को कोई भी जीत नहीं सकता। प्रभु अजय्य हैं। सब को ये अभिभूत करनेवाले हैं।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजा व राजपुरुष यांनी विशेषकरून सेनेचा पराक्रम व विज्ञान वाढवावे, ज्यामुळे कोणीही त्यांच्याशी युद्ध करण्याची इच्छा बाळगू नये. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Neither the brave nor impetuous nor violent nor warrior, however great and proud, can stand and fight against you. Indra, lord almighty, none is your equal, none adversary, you are supreme over all those that are bom and existent.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How should a king be-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Indra-Commander of the army ! no hero, no prompt violent person, no impertinent (or bold ) brave, no bad warrior proud of his velour can fight with you. None of them is match for you. You far surpass all their strength and achieve victory. Thus you get good reputation.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The king, officers of the State and especially the men of the army should develop their power and knowledge in such a manner that none should dare to fight with them.

    Foot Notes

    (तुर:) हिंसकः शीघ्रकारी । तुर-त्वरणे (जुहो.) तूरी-गतिस्वरण हिंसनयो: (दिवा०)। = A prompt or violent person. (मन्यमानः ) अभिमानी सन् । Being proud of his velour. (धृष्णु:) धृष्ट: । = Impartment or bold.

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