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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 28 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 28/ मन्त्र 7
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - गावः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्र॒जाव॑तीः सू॒यव॑सं रि॒शन्तीः॑ शु॒द्धा अ॒पः सु॑प्रपा॒णे पिब॑न्तीः। मा वः॑ स्ते॒न ई॑शत॒ माघशं॑सः॒ परि॑ वो हे॒ती रु॒द्रस्य॑ वृज्याः ॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒जाऽव॑तीः । सु॒ऽयव॑सम् । रि॒शन्तीः॑ । शु॒द्धाः । अ॒पः । सु॒ऽप्र॒पा॒ने । पिब॑न्तीः । मा । वः॒ । स्ते॒नः । ई॒श॒त॒ । मा । अ॒घऽशं॑सः । परि॑ । वः॒ । हे॒तिः । रु॒द्रस्य॑ । वृ॒ज्याः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रजावतीः सूयवसं रिशन्तीः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः। मा वः स्तेन ईशत माघशंसः परि वो हेती रुद्रस्य वृज्याः ॥७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रजाऽवतीः। सुऽयवसम्। रिशन्तीः। शुद्धाः। अपः। सुऽप्रपाने। पिबन्तीः। मा। वः। स्तेनः। ईशत। मा। अघऽशंसः। परि। वः। हेतिः। रुद्रस्य। वृज्याः ॥७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 28; मन्त्र » 7
    अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 25; मन्त्र » 7
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ प्रजाः कथं पालेयदित्याह ॥

    अन्वयः

    हे राजन् ! यथा गोपः सूयवसं रिशन्तीः सुप्रपाणे शुद्ध अपः पिबन्तीः प्रजावतीर्गाः पालयति तथा त्वं प्रजाः पालय यथा वः प्रजाः स्तेनोऽघशंसश्च मेशत तथा वो रुद्रस्य हेतिरेतान्मा परि वृज्याः ॥७॥

    पदार्थः

    (प्रजावतीः) प्रशस्ताः प्रजा विद्यन्ते यासान्ताः (सूयवसम्) शोभनं घासादिकम्। अत्रान्येषामपीत्युकारदैर्घ्यम्। (रिशन्तीः) भक्षयन्तीः (शुद्धाः) निर्मलाः (अपः) जलानि (सुप्रपाणे) सुन्दरे जलपानस्थाने (पिबन्तीः) (मा) (वः) युष्माकम् (स्तेनः) चोरः (ईशत) हनने समर्थो भवेत् (मा) (अघशंसः) हिंस्रः पापकृत् (परि) सर्वतः (वः) युष्माकम् (हेतिः) वज्रम् (रुद्रस्य) रौद्रकर्मकर्त्तुः (वृज्याः) वृणक्तु ॥७॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । ये पितृवत्प्रजाः पालयन्ति शुद्धाऽहारविहाराश्च कृत्वा पुरुषार्थयन्ति स्तेनादीन् दुष्टाञ्छिन्दन्ति ते राजामात्यभृत्याः प्रशंसनीया भवन्ति ॥७॥

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    हिन्दी (1)

    विषय

    अब प्रजाओं का कैसे पालन करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे राजन् ! जैसे गौवों का पालन करनेवाला (सूयवसम्) सुन्दर घास आदि को (रिशन्तीः) भक्षण करती हुई (सुप्रपाणे) सुन्दर जलपान के स्थान में (शुद्धाः) निर्मल (अपः) जलों को (पिबन्तीः) पीती हुई (प्रजावतीः) श्रेष्ठ सन्तानवाली गौवों का पालन करता है, वैसे आप प्रजाओं का पालन करिये और जैसे (वः) आप लोगों की प्रजाओं को (स्तेनः) चोर और (अघशंसः) पाप करनेवाला डाकू (मा) नहीं (ईशत) मारने में समर्थ होवे, वैसे (वः) आप लोगों के सम्बन्ध में (रुद्रस्य) रौद्र कर्म के करनेवाले का (हेतिः) वज्र इनको (मा) मत (परि, वृज्याः) परिवर्जन करे ॥७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो पिता के सदृश प्रजाओं का पालन करते और शुद्ध भोजन और विहारवाली करके पुरुषार्थ करते और चोर आदि दुष्टों का छेदन करते हैं, वे राजा, अमात्य और भृत्य प्रशंसा करने योग्य होते हैं ॥७॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे पित्याप्रमाणे प्रजेचे पालन करतात व शुद्ध आहार-विहार करतात व पुरुषार्थ करून चोर व दुष्टांचे हनन करतात ते राजे, अमात्य व सेवक प्रशंसा करण्यायोग्य असतात. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O fertile and abundant cows blest with calves, feeding on fine green grass and drinking pure water from transparent pools, may no thief ever overpower you, may no strike of the cruel and sinful butcher ever slaughter you.$(Swami Dayanand applies this mantra to the duties of the ruler: The ruler should look after the cattle wealth of the country. The government must protect and promote the cows. Not only that. Even the people and their education culture and efficiency are, like the holy cow, to be protected against violence and promoted with good food and water and all means of prevention of social crime and violence.)

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