Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 3 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 3/ मन्त्र 8
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - अग्निः छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    धायो॑भिर्वा॒ यो युज्ये॑भिर॒र्कैर्वि॒द्युन्न द॑विद्यो॒त्स्वेभिः॒ शुष्मैः॑। शर्धो॑ वा॒ यो म॒रुतां॑ त॒तक्ष॑ ऋ॒भुर्न त्वे॒षो र॑भसा॒नो अ॑द्यौत् ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धायः॑ऽभिः । वा॒ । यः । युज्ये॑भिः । अ॒र्कैः । वि॒द्युत् । न । द॒वि॒द्यो॒त् । स्वेभिः॑ । शुष्मैः॑ । शर्धः॑ । वा॒ । यः । म॒रुता॑म् । त॒तक्ष॑ । ऋ॒भुः । न । त्वे॒षः । र॒भ॒सा॒नः । अ॒द्यौ॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धायोभिर्वा यो युज्येभिरर्कैर्विद्युन्न दविद्योत्स्वेभिः शुष्मैः। शर्धो वा यो मरुतां ततक्ष ऋभुर्न त्वेषो रभसानो अद्यौत् ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    धायःऽभिः। वा। यः। युज्येभिः। अर्कैः। विद्युत्। न। दविद्योत्। स्वेभिः। शुष्मैः। शर्धः। वा। यः। मरुताम्। ततक्ष। ऋभुः। न। त्वेषः। रभसानः। अद्यौत् ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 3; मन्त्र » 8
    अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ कीदृशो नरो राजा भवितुं योग्यः स्यादित्याह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वन् ! यो धायोभिर्युज्येभिः स्वेभिः शुष्मैर्गुणैर्वा विद्युन्न स्वेभिरर्कैर्दविद्योद्यो वा मरुतां शर्ध ऋभुर्न ततक्ष त्वेषो रभसानो नाद्यौत्स एव राजा संस्थापनीयः ॥८॥

    पदार्थः

    (धायोभिः) धारकैर्गुणैर्वा (वा) (यः) (युज्येभिः) योक्तव्यैः (अर्कैः) अर्चनीयैस्सत्कारहेतुभिः (विद्युत्) (न) इव (दविद्योत्) प्रकाशते (स्वेभिः) स्वकीयैः (शुष्मैः) बलैः (शर्धः) बलम् (वा) (यः) (मरुताम्) मनुष्याणाम् (ततक्ष) तीक्ष्णीकरोति (ऋभुः) मेधावी (न) इव (त्वेषः) देदीप्यमानः (रभसानः) वेगवान् (अद्यौत्) प्रकाशते ॥८॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यो विद्युद्वत्प्रतापी बलिष्ठः संयोग-वियोगविद्यायां विचक्षणो मेधावी विद्वान् धर्म्मात्मा जितेन्द्रियः पितृवत्प्रजापालनप्रियः क्षत्रियः स्यात्स एव राजा भवितुमर्हेत् ॥८॥ अत्राग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति तृतीयं सूक्तं चतुर्थो वर्गश्च समाप्तः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    अब कैसा मनुष्य राजा होने के योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! (यः) जो (धायोभिः) धारण करनेवालों वा गुणों से और (युज्येभिः) युक्त करने योग्य (स्वेभिः) अपने (शुष्मैः) बलों और गुणों से (वा) वा (विद्युत्) बिजुली (न) जैसे वैसे (स्वेभिः) अपने (अर्कैः) सत्कारों योग्य कारणों से (दविद्योत्) प्रकाशित होता है (यः) जो (वा) वा (मरुताम्) मनुष्यों के (शर्धः) बल को (ऋभुः) बुद्धिमान् जन (न) जैसे वैसे (ततक्ष) तीक्ष्ण करता है तथा (त्वेषः) प्रकाशयुक्त और (रभसानः) वेगयुक्त जैसे (अद्यौत्) प्रकाशित होता है, वही राजा संस्थापित करने योग्य है ॥८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जो बिजुली के सदृश प्रतापी, बलवान्, पदार्थों के संयोग और वियोग की विद्या में चतुर, बुद्धिमान्, विद्वान्, धर्मात्मा, इन्द्रियों को जीतनेवाला और प्रजापालनप्रिय क्षत्रिय होवे, वही राजा होने के योग्य होवे ॥८॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वान् के गुणवर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह तीसरा सूक्त और चौथा वर्ग समाप्त हुआ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सूर्यवत् सैन्यपति के पालन का राजा का कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( यः ) जो ( विद्युत् न ) विशेष कान्तियुक्त सूर्य या विजुली के समान (अर्कैः) अर्चना करने योग्य, मान सत्कार के पात्र, (युज्येभिः) कार्यों में नियुक्त करने योग्य, ( धायोभिः ) कार्यभारों को उत्तम रीति से धारण करने वाले अधीनस्थ पुरुषों से किरणों के समान और ( स्वेभिः ) अपने ( शुष्मैः ) शत्रुशोषक बली और सैन्यों से (दविद्योत्) निरन्तर चमका करता है, और (यः) जो ( मरुताम् ) वायुवत् बलवान् वीर पुरुषों के ( शर्ध: ) सैन्य वा बल को ( ततक्ष ) तैय्यार करता है वह (ऋभुः न ) बहुत अधिक तेज से चमकने वाले, महान् सूर्य के समान ( त्वेषः ) तीक्ष्ण कान्ति से युक्त ( रभसानः ) वेगवान्, कार्यकुशल होकर ( अद्यौत् ) चमकता है । इति चतुर्थो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १, ३, ४ त्रिष्टुप् । २, ५, ६, ७ निचृत्त्रिष्टुप् । ८ भुरिक् पंक्तिः ।। अष्टर्चं सूक्तम्

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'ज्ञान व शक्ति' के पुञ्ज प्रभु

    पदार्थ

    [१] (यः) = जो प्रभु (धायोभिः) = हमारा धारण करनेवाले (वा) = और (युज्येभिः) = हमें कर्मों में प्रेरित करनेवाले (अर्कैः) = अर्चनीय वेद-मन्त्रों के ज्ञान से तथा (स्वेभिः) = अपने (शुष्मैः) = बलों से (विद्युत् न) = विद्युत् के समान (दविद्योत्) = चमकते हैं। प्रभु ज्ञान व शक्ति के पुञ्ज हैं, सर्वज्ञ व सर्वशक्तिमान् हैं। विद्युत्वत् दीप्त हैं और विद्युत् की तरह बुराई को भस्म करनेवाले हैं। [२] (यः) = जो प्रभु (मरुताम्) = प्राणों के (शर्धः) = बल को ततक्ष तीव्र करते हैं। तथा (ऋभुः न) = [उरु भासमान: ] खूब दीप्त सूर्य के समान (त्वेषः) = दीप्त व (रभसानः) = शक्तियुक्त वेग को करते हुए सबल कार्यों को करते हुए (अद्यौत्) = चमकते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु ज्ञान व शक्ति के पुञ्ज हैं। ये प्रभु हमारे जीवनों में भी प्राणों के बल का स्थापन करते हुए हमें दीप्त व तेजस्वी बनाते हैं । भरद्वाज बार्हस्पत्य का ही अगला भी सूक्त है -

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो, जो विद्युल्लतेप्रमाणे पराक्रमी, बलवान, पदार्थांच्या संयोग वियोग विद्येत चतुर, बुद्धिमान, विद्वान, धर्मात्मा, जितेन्द्रिय, प्रजापालप्रिय क्षत्रिय असेल तर तो राजा होण्यायोग्य असतो. ॥ ८ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Who flashes like lightning, shines with his self refulgence and potent presence, and constantly illuminates by his manifestation by the beneficiary stars, planets and plants, by his associates and assistants, and by his celebrants and worshippers of his virtues, and who, blazing and impetuous, like the divine intelligence and maker, fashions the forms and force of the winds and the stormy powers of humanity : that is Agni, life of existence and leading light of the world.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What sort of man is fit to be a ruler is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person ! that man alone should be made a king who by his upholding and applicable virtues and honorable powers shines like the lightning, or who augments the strength of men like a wise person and who being resplendent and quick-going (vigorous) glows.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! he alone can become a ruler, who is vigorous like the lightning, mighty, expert in the knowledge of uniting and dividing people, exceptionally wise or genius, highly learned, self-controlled, fond of cherishing the subjects like their father and is a true Kshatriya (brave soldier).

    Foot Notes

    (अर्कोः) अर्चनीयैस्सत्कारहेतुभि: (गुणैः) (अर्कैः) अर्च-पूजायाम् । = By venerable and respectable virtues. (शुष्मैः ) बलैः । शुषमिति बलनाम (NG 2, 9) = By strength. (शर्ध:) वलम् । शर्धः इति बलनाम (NG 2, 9)। = Strength.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top