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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 39 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 39/ मन्त्र 3
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒यं द्यो॑तयद॒द्युतो॒ व्य१॒॑क्तून्दो॒षा वस्तोः॑ श॒रद॒ इन्दु॑रिन्द्र। इ॒मं के॒तुम॑दधु॒र्नू चि॒दह्नां॒ शुचि॑जन्मन उ॒षस॑श्चकार ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । द्यो॒त॒य॒त् । अ॒द्युतः॑ । वि । अ॒क्तून् । दो॒षा । वस्तोः॑ । श॒रदः॑ । इन्दुः॑ । इ॒न्द्र॒ । इ॒मम् । के॒तुम् । अ॒द॒धुः॒ । नु । चि॒त् । अह्ना॑म् । शुचि॑ऽजन्मनः । उ॒षसः॑ । च॒का॒र॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं द्योतयदद्युतो व्य१क्तून्दोषा वस्तोः शरद इन्दुरिन्द्र। इमं केतुमदधुर्नू चिदह्नां शुचिजन्मन उषसश्चकार ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम्। द्योतयत्। अद्युतः। वि। अक्तून्। दोषा। वस्तोः। शरदः। इन्दुः। इन्द्र। इमम्। केतुम्। अदधुः। नु। चित्। अह्नाम्। शुचिऽजन्मनः। उषसः। चकार ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 39; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 11; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वांसः कथं वर्त्तेरिन्नित्याह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वन् ! यथाऽयमिन्दुः सूर्योऽद्युतोऽक्तून् दोषा वस्तोः शरदो वि द्योतयदह्नां चिच्छुचिजन्मन उषसः प्रादुर्भावं चकार तथेमं केतुं द्योतय यथेमं प्रकाशमयं सूर्य्यमुषसोऽदधुस्तथा नू विद्याप्रकाशं धेहि ॥३॥

    पदार्थः

    (अयम्) (द्योतयत्) प्रकाशयति (अद्युतः) अप्रकाशकान् भूम्यादीन् (वि) (अक्तून्) रात्रीः (दोषा) प्रभातवेलाः (वस्तोः) दिनम् (शरदः) शरदादीन् ऋतून् (इन्दुः) आर्द्रीकरः (इन्द्र) सूर्यवद्वर्त्तमान (इमम्) (केतुम्) प्रज्ञाम् (अदधुः) दधतु (नू) क्षिप्रम्। अत्र ऋचि तुनुघेति चेति दीर्घः। (चित्) अपि (अह्नाम्) दिनानाम् (शुचिजन्मनः) शुचे रवेर्जन्म यस्यास्तस्याः (उषसः) प्रभातवेलायाः (चकार) करोति ॥३॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! यूयं यथा सूर्य्योऽन्येषाम्प्रकाशकानां भूम्यादीनां प्रकाशक आनन्दकरः पवित्रक्षणादीन्त्समयान्निर्निमीते तथा जनानामात्मनां प्रकाशकाः सन्तो विद्यावृद्धिकराणि कर्माणि निष्पादयत कर्माणि च प्रचारयत ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वान् जन कैसा वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) सूर्य्य के सदृश वर्त्तमान विद्वन् ! जैसे (अयम्) यह (इन्दुः) गीला करनेवाला सूर्य्य (अद्युतः) नहीं प्रकाश करनेवाले भूमि आदिकों को और (अक्तून्) रात्रियों को (दोषा) प्रभातकालों को (वस्तोः) दिन को (शरदः) शरद् आदि ऋतुओं को (वि, द्योतयत्) प्रकाशित करता है और (अह्नाम्) दिनों के (चित्) भी (शुचिजन्मनः) सूर्य्य से जन्म जिसका उस (उषसः) प्रभात वेला की प्रकटता को (चकार) करता है, वैसे (इमम्) इस (केतुम्) बुद्धि को प्रकाशित कीजिये और जैसे इस प्रकाशस्वरूप सूर्य्य को प्रभात वेलायें (अदधुः) धारण करें, वैसे (नू) शीघ्र विद्या के प्रकाश को धारण करिये ॥३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वान् जनो ! आप लोग जैसे सूर्य्य, अप्रकाशक भूमि आदि का प्रकाश करने और आनन्द करनेवाला पवित्र क्षण आदि समयों का निर्म्माण करता है, वैसे मनुष्यों के आत्माओं के प्रकाशक हुए विद्या की वृद्धि करनेवाले कर्म्मों को निष्पन्न कीजिये और कर्मों का प्रचार कराइये ॥३॥

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    विषय

    चन्द्र सूर्यवत् उनके परस्पर व्यवहार ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र) ऐश्वर्यवन्, अज्ञान को नाश करने और ज्ञान के देनेहारे ! सूर्यवत् तेजस्विन् गुरो ! ( इन्द्रः अक्तून् दोषा वस्तोः शरदः वि अद्योतयत्) जिस प्रकार चन्द्र रातों को सदा सब वर्षों में ही प्रकाशित करता है, उसी प्रकार ( अयम् ) यह ( इन्दुः ) चन्द्रवत् आल्हादकारी गुरु भी ( दोषा वस्तोः ) रात दिन ( शरदः ) छहों शरद आदि ऋतुओं में भी ( अद्युतः अक्तून् ) ज्ञान की दीप्ति से रहित रात्रिवत् अज्ञात विद्यास्थलों को ( वि अद्योतयत् ) विशेष रूप से प्रकाशित करा करे। जिस प्रकार उषाएं ( अह्नां केतुम् अदधुः ) दिनों को चमकाने वाले सूर्य को धारण करती हैं उसी प्रकार ( उषासः ) विद्या की कामना करने वाले जितेन्द्रिय विद्यार्थी जन सूर्यवत् तेजस्वी, ( अह्नां ) न ताड़ना योग्य शिष्यों को (केतुम् ) ज्ञान देने वाले गुरु को (अदधुः) धारण करें, उसको गुरुवत् स्वीकार करें । और जिस प्रकार सूर्य ( शुचि-जन्मनः उषसः चकार ) शुद्ध पवित्र जन्मवाली उषाओं को उत्पन्न करता है उसी प्रकार वह गुरु भी ( उषसः ) विद्या के इच्छुक शिष्यों के ( शुचि-जन्मनः चकार ) शुद्ध पवित्र विद्या माता में शुद्ध पवित्र जन्म ग्रहण करने वाला बना देता है, अर्थात् विद्वान् बना कर उनको ज्ञानमय पवित्र जन्म देता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्रो देवता ॥ छन्दः – १, ३ विराट् त्रिष्टुप् । । २ त्रिष्टुप् । ४, ५ भुरिक् पंक्तिः ।। पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    चन्द्रमा की गति से तिथि पक्ष आदि काल-विभाग

    पदार्थ

    [१] (अयं इन्दुः) = यह चन्द्रमा, हे इन्द्र प्रभो! आपसे नियम्यमान होता हुआ (अद्युतः) = न चमकनेवाली (अक्तून्) = रात्रियों को (वि द्योतयत्) = विशिष्टरूप से दीप्त करता है। इस अपने आगमन से (दोषा वस्तोः) = रात्रियों व दिनों को तथा (शरदः) = संवत्सरों को प्रकाशित करता है । [२] (नू चित्) = निश्चय से (इमम्) = इस चन्द्रमा को (अह्नाम्) = दिनों के (केतुम्) = प्रकाशक के रूप में (अदधुः) = स्थापित करते हैं। चन्द्र से ही प्रतिपदा द्वितीया आदि तिथियों का ज्ञान होता है। यह चन्द्र ही (उषसः) = उषाओं को (शुचि जन्मनः) = पवित्र प्रादुर्भाववाला चकार करता है। इन उषाकालों में चन्द्र किरणों द्वारा वायुमण्डल में सोमशक्ति का [ओजोन गैस] का स्थापन होता है । सो इस समय की वायु जीवनी शक्ति का संचार करती प्रतीत होती है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- चन्द्रमा रात्रियों को प्रकाशित करता है। इस प्रकार दिन-रात व संवत्सर का मान होता है। चन्द्रमा दिनों का ज्ञापक बनता है। इसी से 'प्रतिपदा' आदि तिथियों का व्यवहार होता है। उषाओं को यही सोम शक्ति सम्पन्न व उज्ज्वल बनाता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो ! जसा सूर्य अप्रकाशक भूमीचा प्रकाशक, आनंददायक, पवित्र क्षण व वेळ यांचा निर्माणकर्ता आहे. तसे माणसाच्या आत्म्याला प्रकट करणारे, विद्येची वृद्धी करणारे कर्म निष्पन्न करा व कर्मांचा प्रचार करा. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Thus does this sun, this cosmic drop of divine soma, light up the unlighted: the nights, the mornings, days and seasons of the year. Thus does Indra create the light of immaculate dawns which bear up the light as banner of the days.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How should the scholars behave-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O enlightened person ! as this sun, who makes all wet through raining down water, illuminates the earth and other lightless worlds, the nights, mornings autumn and other seasons, manifests the dawns, which have their birth from the pure sun, in the same manner, you should illuminate the intellect. As the dawns uphold this resplendent sun, so uphold the light of true knowledge.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

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    Foot Notes

    (इन्दु:) आर्द्रीकर: । (इन्दुः) उन्दी-क्लेदने (रुधा०) । = Which makes wet. (केतुम् ) प्रज्ञाम् । केतुरिति प्रज्ञानाम (NG 3, 9 ) । = Good intellect. (वस्तोः) दिनम् । वस्तोः इति अर्ह नाम (NG 1, 9)। = Day.

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