ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 39/ मन्त्र 4
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
अ॒यं रो॑चयद॒रुचो॑ रुचा॒नो॒३॒॑यं वा॑सय॒द्व्यृ१॒॑तेन॑ पू॒र्वीः। अ॒यमी॑यत ऋत॒युग्भि॒रश्वैः॑ स्व॒र्विदा॒ नाभि॑ना चर्षणि॒प्राः ॥४॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । रो॒च॒य॒त् । अ॒रुचः॑ । रु॒चा॒नः । अ॒यम् । वा॒स॒य॒त् । वि । ऋ॒तेन॑ । पू॒र्वीः । अ॒यम् । ई॒य॒ते॒ । ऋ॒त॒युक्ऽभिः॑ । अश्वैः॑ । स्वः॒ऽविदा॑ । नाभि॑ना । च॒र्ष॒णि॒ऽप्राः ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं रोचयदरुचो रुचानो३यं वासयद्व्यृ१तेन पूर्वीः। अयमीयत ऋतयुग्भिरश्वैः स्वर्विदा नाभिना चर्षणिप्राः ॥४॥
स्वर रहित पद पाठअयम्। रोचयत्। अरुचः। रुचानः। अयम्। वासयत्। वि। ऋतेन। पूर्वीः। अयम्। ईयते। ऋतयुक्ऽभिः। अश्वैः। स्वःऽविदा। नाभिना। चर्षणिऽप्राः ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 39; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 11; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 11; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वांसः किं कुर्य्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे विद्वांसो ! यथाऽयमरुचो रुचानः सूर्य्यः सर्वं जगद्रोचयत्, तथा विद्यया सर्वान् मनुष्यान् प्रकाशयत। यथायं सवितर्त्तेन पूर्वीर्वि वासयत्तथा सकलाः प्रजा सत्येन विज्ञानेन संयोजयत, यथायं रविर्ऋतयुग्भिरश्वैः स्वर्विदा नाभिना चर्षणिप्राः सन्नीयते तथा सत्ययोजकैर्महद्भिर्गुणैः सुखप्रदानेनात्माऽऽकर्षणेन वक्तृत्वेन श्रोतॄन् व्याप्नुवन्तो यत्र तत्र गच्छत ॥४॥
पदार्थः
(अयम्) (रोचयत्) प्रकाशयति (अरुचः) प्रकाशरहिताँश्चन्द्रादीन् (रुचानः) प्रकाशयन् (अयम्) (वासयत्) (वि) (ऋतेन) जलेनेव सत्येन (पूर्वीः) प्रागुत्पन्नाः प्रजाः (अयम्) (ईयते) गच्छति (ऋतयुग्भिः) जलस्य योजकैः (अश्वैः) महद्भिराशुगामिभिः किरणैः (स्वर्विदा) स्वः सुखं विदन्ति येन तेन (नाभिना) मध्याऽऽकर्षणादिबन्धनेन (चर्षणिप्राः) यो विद्यादिभिर्गुणैश्चर्षणीन् मनुष्यान् प्राति व्याप्नोति ॥४॥
भावार्थः
ये विद्वांसः सूर्य्यवत्प्रकाशात्मानो भूत्वाऽविद्यां विनाश्य जनान् विद्यया प्रकाशयन्ति सत्याचरणं प्रत्याकर्षन्ति ते धन्याः सन्ति ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह विद्वान् जन क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वन् जनो ! जैसे (अयम्) यह (अरुचः) प्रकाश से रहित चन्द्र आदिकों को (रुचानः) प्रकाशित करता हुआ सूर्य्य सम्पूर्ण जगत् को (रोचयत्) प्रकाशित करता है, वैसे विद्या से सब मनुष्यों को प्रकाशित करिये जैसे (अयम्) यह सूर्य्य (ऋतेन) जल के सदृश सत्य से (पूर्वीः) पहिले उत्पन्न हुए प्रजाओं को (वि, वासयत्) विशेष वसाता है, वैसे सम्पूर्ण प्रजाओं को सत्य विज्ञान से संयुक्त करिये और जैसे (अयम्) यह सूर्य्य (ऋतयुग्भिः) जल के युक्त करनेवालों से (अश्वैः) महान् शीघ्रगामी किरणों और (स्वर्विदा) सुखको जानते हैं जिससे उस (नाभिना) मध्य के आकर्षण आदि बन्धन से (चर्षणिप्राः) विद्या आदि गुणों से मनुष्यों के प्रति व्याप्त होनेवाला हुआ (ईयते) जाता है, वैसे सत्य के युक्त करानेवाले बड़े गुणों से सुख देनेवाले आत्मा के आकर्षण से और वक्तृत्व से श्रोताओं को व्याप्त होते हुए जहाँ तहाँ जाइये ॥४॥
भावार्थ
जो विद्वान् जन सूर्य्य के सदृश प्रकाशात्मा होकर और अविद्या का विनाश कर मनुष्यों को विद्या से प्रकाशित करते हैं और सत्य आचरण के प्रति आकर्षित करते हैं, वे धन्य हैं ॥४॥
विषय
missing
भावार्थ
( रुचानः अरुचः रोचयत् ) जिस प्रकार सूर्य स्वयं कान्ति से चमकता हुआ कान्ति से रहित चन्द्र, पृथिवी आदि लोकों को प्रकाशित करता है उसी प्रकार ( अयम् ) यह विद्वान् उपदेष्टा गुरु, स्वयं ( रुचानः) तेजस्वी होकर ( अरुचः ) विद्या प्रकाश से रहित जनों को ( रोचयंत् ) विद्या प्रकाश से प्रकाशित करे । ( अयं ) यह (पूर्वी: ) पूर्व विद्यमान प्रजाओं के समान ही नवीन विद्यार्थी जनों को ( ऋतेन ) सत्योपदेश के निमित्त ( वासयत् ) अपने अधीन बसावे, रखे । ( अयम् ) वह ( चर्षणिप्राः ) मनुष्यों को ज्ञान से पूर्ण करने हारा विद्वान् ( स्वः विदा नाभिना ) तेजोमय, उपदेश को प्राप्त करने वाले ‘नाभि’ अर्थात् सम्बन्ध से ( ऋत-युग्भिः ) सत्य ज्ञान का योग करा देने वाले ( अश्वैः ) उत्तम विद्वान् सहायक अध्यापकों द्वारा ( ईयते ) आगे बढ़ता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्रो देवता ॥ छन्दः – १, ३ विराट् त्रिष्टुप् । । २ त्रिष्टुप् । ४, ५ भुरिक् पंक्तिः ।। पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
विषय
'सूर्य द्वारा लोक प्रकाशक' प्रभु
पदार्थ
[१] (अयम्) = ये प्रभु ही (रुचानः) = सूर्यात्मना दीप्त होते हुए (अरुचः) = अप्रकाशमान लोकों को (रोचयत्) = प्रकाशित करते हैं। (अयम्) = ये प्रभु ही (ऋतेन) = अपने गमनशील तेज से (पूर्वी:) = इन बहुत उषाकालों को (विवासयत्) = अपगत अन्धकारवाला करते हैं। [२] (अयम्) = ये प्रभु ही (ऋतयुग्भिः) = ऋत के साथ मेलवाले (अश्वैः) = इन्द्रियाश्वों से तथा (स्वर्विदा) = सुख को प्राप्त करानेवाले अथवा [सु+अर्] सुष्टु अरणीय धन को प्राप्त करानेवाले (नाभिना) = [नह बन्धने] सुन्दर सब अंगोंवाले शरीर-रथ से (चर्षणिप्राः) = तब मनुष्यों का पूरण करनेवाले होते हुए (ईयते) = गति करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु ही सूर्योदय द्वारा सब लोकों को प्रकाशित करते हैं, प्रभु ही उषाकालों को अन्धकारशून्य करते हैं। ये प्रभु ही ऋत से मेलवाले, यज्ञ प्रवृत्त, इन्द्रियाश्वों को व सुदृढ़ शरीरों को प्राप्त कराके मनुष्यों का पूरण करते हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
जे विद्वान लोक सूर्याप्रमाणे प्रकाशात्मा बनून अविद्येचा नाश करून माणसांना विद्येने प्रकाशित करतात व सत्याचरणाकडे आकर्षित करतात ते धन्य होते. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
This Indra, the sun, itself refulgent, lights up the lightless such as earth and moon, and it lights up the ancient dawns, by the operation of cosmic law. It goes on in orbit by the centre pin of cosmic gravitation with other heavenly bodies such as planets and satellites, drawn by the motive forces of cosmic law and giving light and comfort primarily to the people of the earth.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should the enlightened persons do-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O highly learned persons ! as the sun giving light to the moon and other objects, which are devoid of light, illuminates the whole world, so you should illuminate all men with true knowledge. As this sun makes all people established in joy from times immemorial with water, so unite all people with true knowledge. As this sun goes with the rapid and great rays, which create water with the law of central attraction, which gives happiness being the supporter of all men, so you should go every- where pervading all with great virtues that unite truth and with joy producing attraction of the soul and speech.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Blessed are those enlightened men, who shining like the sun, in their souls dispels darkness of ignorance and illuminate men with true knowledge and attract them towards the observance of truth.
Foot Notes
(ऋतेन) जलेनेव सत्येन । ऋतमिति सत्यनाम (NG 3, 10) ऋतमिति उदकनाम (NG 1, 12)। = With truth like water. (अश्वै:) महादिभराशुगामिभिः किरणैः। = With great rapid going rays. (चर्षणिप्रा:) यो विद्यादिभिर्गुणैश्चर्षणीन् मनुष्यनाम प्राति व्याप्नौति। चर्षनायः इति मनुष्यनाम (NG 2, 3 ) प्ट-पालन पूरणयो: ( जुहो० )। = Who pervades all men with knowledge and other virtues.
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