Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 41 के मन्त्र
1 2 3 4 5
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 41/ मन्त्र 5
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    ह्वया॑मसि॒ त्वेन्द्र॑ याह्य॒र्वाङरं॑ ते॒ सोम॑स्त॒न्वे॑ भवाति। शत॑क्रतो मा॒दय॑स्वा सु॒तेषु॒ प्रास्माँ अ॑व॒ पृत॑नासु॒ प्र वि॒क्षु ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ह्वया॑मसि । त्वा॒ । आ । इ॒न्द्र॒ । या॒हि॒ । अ॒र्वाङ् । अर॑म् । ते॒ । सोमः॑ । त॒न्वे॑ । भ॒वा॒ति॒ । शत॑क्रतो॒ इति॒ शत॑ऽक्रतो । मा॒दय॑स्व । सु॒तेषु॑ । प्र । अ॒स्मान् । अ॒व॒ । पृत॑नासु । प्र । वि॒क्षु ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ह्वयामसि त्वेन्द्र याह्यर्वाङरं ते सोमस्तन्वे भवाति। शतक्रतो मादयस्वा सुतेषु प्रास्माँ अव पृतनासु प्र विक्षु ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ह्वयामसि। त्वा। आ। इन्द्र। याहि। अर्वाङ्। अरम्। ते। सोमः। तन्वे। भवाति। शतक्रतो इति शतऽक्रतो। मादयस्व। सुतेषु। प्र। अस्मान्। अव। पृतनासु। प्र। विक्षु ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 41; मन्त्र » 5
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 13; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृशः सन् किं कुर्य्यादित्याह ॥

    अन्वयः

    हे शतक्रतो इन्द्र ! ते तन्वे यस्सोमोऽर्वाङ् प्र भवाति तं त्वं याहि। यन्त्वा वयमाह्वयामसि स त्वं सुतेष्वस्मान् प्राव पृतनासु विक्ष्वरं मादयस्वा ॥५॥

    पदार्थः

    (ह्वयामसि) आह्वयामः (त्वा) त्वाम् (आ) (इन्द्र) सर्वतो रक्षक (याहि) गच्छ (अर्वाङ्) योऽर्वाग् गच्छति सः (अरम्) अलम्। अत्र वर्णव्यत्ययेन लस्य स्थाने रः। (ते) तव (सोमः) महौषध्यादिरसः (तन्वे) शरीराय (भवाति) भवेत् (शतक्रतो) असंख्यप्रज्ञ उत्तमकर्मन् वा (मादयस्वा) आनन्दाऽऽनन्दय वा। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सुतेषु) निष्पन्नेष्वैश्वर्येषु (प्र) (अस्मान्) (अव) रक्ष (पृतनासु) मनुष्येषु सेनासु वा। पृतना इति मनुष्यनाम। (निघं०२.३) (प्र) (विक्षु) प्रजासु ॥५॥

    भावार्थः

    यो राजा स्वैश्वर्येण सर्वाः प्रजा न्यायेन रक्षति स प्रशंसितश्चिरायुरानन्दित आनन्दयिता च भवतीति ॥५॥ अत्रेन्द्रराजसोमगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकचत्वारिंशत्तमं सूक्तं त्रयोदशो वर्गश्च समाप्तः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह कैसा हुआ क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (शतक्रतो) असङ्ख्य बुद्धियुक्त तथा उत्तम कर्म्म करने और (इन्द्र) सब प्रकार से रक्षा करनेवाले (ते) आपके (तन्वे) शरीर के लिये जो (सोमः) बड़ी ओषधि आदि का रस (अर्वाङ्) नीचे चलनेवाला (प्र, भवति) प्रभाव को प्राप्त होता है उसको आप (याहि) प्राप्त हूजिये और जिन (त्वा) आपको हम लोग (आ, ह्वयामसि) पुकारते हैं वह आप (सुतेषु) उत्पन्न हुए ऐश्वर्य्यों में (अस्मान्) हम लोगों की (प्र, अव) उत्तम प्रकार रक्षा करो और (पृतनासु) मनुष्यों वा सेनाओं में और (विक्षु) प्रजाओं में (अरम्) अच्छे प्रकार (मादयस्वा) आनन्द करो वा आनन्द कराओ ॥५॥

    भावार्थ

    जो राजा अपने ऐश्वर्य्य से सम्पूर्ण प्रजाओं की न्याय से रक्षा करता है, वह प्रशंसित, अधिक अवस्थावाला और आनन्दयुक्त वा आनन्द करानेवाला भी होता है ॥५॥ इस सूक्त में इन्द्र, राजा और सोम के रस का गुणवर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह इकतालीसवाँ सूक्त और तेरहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    इन्द्र,स्वामी को उसके कर्त्तव्यों का उपदेश ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यप्रद ! बलवन् ! शत्रुहन्तः ! प्रभो ! (त्वा) तुझे हम ( ह्वयामसि ) बुलाते हैं । ( सोमः ) अन्न जिस प्रकार ( तन्वे ) शरीर के पोषण के लिये होता है। और ( सोमः तन्वे ) जिस प्रकार पुत्र या शिष्य वंश परम्परा के विस्तार के लिये होता है, उसी प्रकार यह पुत्रवत् राष्ट्र भी ( ते तन्वे अरम् ) तेरे विशाल शरीर वा राज्य विस्तार के लिये प्रदीप्त ( भवाति ) हो । हे ( इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! तू (अर्वाङ् आयाहि ) सब के समक्ष आ । अथवा (अर्वाङ्) अश्व सैन्य को प्राप्त करके (आ याहि ) सब ओर प्रयाण कर, हे (शतक्रतो ) सैकड़ों कर्म करनेहारे ! तू (अस्मान्) हम सबों को ( सुतेषु ) पुत्रवत् आह्लादकारक अभिषेकादि कर्मों के अवसरों वा ऐश्वर्यों के निमित्त सदा आनन्दित कर और ( पृतनासु ) संग्रामों के अवसरों और (विक्षु ) प्रजाओं में भी ( अस्मान् प्र अव ) हमारी अच्छी प्रकार रक्षा कर । इति त्रयोदशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्रो देवता ।। छन्दः - १ विराट् त्रिष्टुप् । २, ३, ४ त्रिष्टुप् । ५ भुरिक् पंक्ति: ।। पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सोम द्वारा शक्तियों का विस्तार

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (त्वा ह्वयामसि) = हम आपको पुकारते हैं । (अर्वाङ् याहि) = हमें आभिमुख्येन प्राप्त होइये । (ते सोमः) = आपका यह सोम [वीर्यशक्ति] (तन्वे) = शक्तियों के विस्तार के लिये (भवाति) = होता है। [२] हे (शतक्रतो) = अनन्त प्रज्ञान व शक्तिवाले प्रभो ! आप (सुतेषु) = इन सोमों के उत्पन्न होने पर (मादयस्व) = हमारे जीवनों को उल्लासमय करिये। आप (पृतनासु) = संग्रामों में (अस्मान्) = हमें (प्र अवि) = प्रकर्षेण रक्षित करिये। (विक्षु) = सब प्रजाओं में हमारा अवश्य प्र [अव] = रक्षण करिये।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु को पुकारें। रक्षित सोम हमारी शक्तियों का विस्तार करे। उत्पन्न सोम हमारे उल्लास का कारण बने । हमें वासनाओं व रोगों से रक्षित करें। अगले सूक्त में भी 'भरद्वाज बार्हस्पत्य' इन्द्र का आराधन करते हैं -

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो राजा आपल्या ऐश्वर्याने संपूर्ण प्रजेचे न्यायाने रक्षण करतो तो प्रशंसित, दीर्घायू व आनंदी किंवा आनंदी करणारा असतो. ॥ ५ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, ruler and protector, we invoke and exhort you, go forward, let the soma of exhilaration and social dignity be sufficient and inspiring for your health and the body politic. O lord of a hundred great actions and yajnic victories, rise and celebrate the glory of life among the people raised and refined to the sweetness and beauty of culture. Guide on, protect and promote us among the nations and powers of the world.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should a king do and how-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O prosperous king! endowed with infinite wisdom and good actions, go to drink that Soma (the juice of the great invigorating herbs) which strengthens your body. We call on you, to come and protect us when the wealth has been gathered. Be glad and delight us well in the armies during a battle and among men in general.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    That king, who justly protects all his subjects with his wealth, is admired, lives long, is happy and delights all.

    Foot Notes

    (मादयस्वा) आनन्दाऽऽनन्दय वा । अन्न संहितायामिति दीर्घः । मदी-हर्षे ( दिवा.)। = Be glad and delight us. (पुतनासु) मनुष्येषु सेनासु वा । पूतना इति मनुष्यनाम (NG 2, 3)। = Men, army. (सुतेषु) निष्पन्नेष्वैश्वर्येषु । षु-प्रसवैश्वर्ययोः। = When the wealth is gathered and there is prosperity.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top