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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 65 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 65/ मन्त्र 2
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - उषाः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    वि तद्य॑युररुण॒युग्भि॒रश्वै॑श्चि॒त्रं भा॑न्त्यु॒षस॑श्च॒न्द्रर॑थाः। अग्रं॑ य॒ज्ञस्य॑ बृह॒तो नय॑न्ती॒र्वि ता बा॑धन्ते॒ तम॒ ऊर्म्या॑याः ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि । तत् । य॒युः॒ । अ॒रु॒ण॒युक्ऽभिः॑ । अश्वैः॑ । चि॒त्रम् । भा॒न्ति॒ । उ॒षसः॑ । च॒न्द्रऽर॑थाः । अग्र॑म् । य॒ज्ञस्य॑ । बृ॒ह॒तः । नय॑न्तीः । वि । ताः । बा॒ध॒न्ते॒ । तमः॑ । ऊर्म्या॑याः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वि तद्ययुररुणयुग्भिरश्वैश्चित्रं भान्त्युषसश्चन्द्ररथाः। अग्रं यज्ञस्य बृहतो नयन्तीर्वि ता बाधन्ते तम ऊर्म्यायाः ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वि। तत्। ययुः। अरुणयुक्ऽभिः। अश्वैः। चित्रम्। भान्ति। उषसः। चन्द्रऽरथाः। अग्रम्। यज्ञस्य। बृहतः। नयन्तीः। वि। ताः। बाधन्ते। तमः। ऊर्म्यायाः ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 65; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्ता स्त्रियः कीदृश्यो भवेयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे पुरुषा ! याः कन्या यथा चन्द्ररथा उषसोऽरुणयुग्भिरश्वैर्ययुस्तच्चित्रं वि भान्ति बृहतो यज्ञस्याऽग्रं नयन्तीरूर्म्यायास्तमो वि बाधन्ते ता इव वर्त्तमाना वधूर्यूयं प्राप्नुत ॥२॥

    पदार्थः

    (वि) (तत्) (ययुः) प्राप्नुवन्ति (अरुणयुग्भिः) येऽरुणान् किरणान् योजयन्ति तैः (अश्वैः) महद्भिः किरणैः (चित्रम्) अद्भुतं जगत् (भान्ति) (उषसः) प्रभातवेलाः (चन्द्ररथाः) चन्द्रं सुवर्णमिव रथो रमणीयं स्वरूपं यासां ताः (अग्रम्) (यज्ञस्य) सङ्गन्तव्यस्य गृहस्थव्यवहारस्य (बृहतः) महतः (नयन्तीः) प्रापयन्त्यः (वि) (ताः) (बाधन्ते) (तमः) अन्धकारम् (ऊर्म्यायाः) रात्रेः। ऊर्म्येति रात्रिनाम। (निघं०१.७) ॥२॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे नरा ! यूयं स्वसदृशगुणकर्मस्वभावा उषर्वदानन्दप्रदा विद्याविनयादिभिः सुशीला ब्रह्मचारिणीः कन्याः प्राप्य ताः सततमानन्द्य स्वयमानन्दं प्राप्नुत ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वे स्त्री कैसी हों, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे पुरुषो ! जो कन्यायें जैसे (चन्द्ररथाः) जिनका सुवर्ण के समान रमणीयरूप है वे (उषसः) प्रभातवेलायें (अरुणयुग्भिः) जो अरुण किरणों की योजना करती हैं उन (अश्वैः) बड़ी-बड़ी किरणों से (ययुः) प्राप्त होती हैं (तत्, चित्रम्) उस आश्चर्य्य को (वि, भान्ति) विशेषता से प्रकाशित करती हैं तथा (बृहतः) महान् (यज्ञस्य) सङ्ग करने योग्य गृहस्थों के व्यवहार के (अग्रम्) अगले भाग को (नयन्तीः) प्राप्त कराती हुई (ऊर्म्यायाः) रात्रि के (तमः) अन्धकार को (वि, बाधन्ते) नष्ट करती हैं (ताः) उनके समान दुःखान्धकार को दूर करनेवाली वधुओं को तुम प्राप्त होओ ॥२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! तुम अपने सदृश गुण-कर्म-स्वभावयुक्त प्रभातवेलाओं के समान आनन्द देनेवाली, विद्या और नम्रता आदि गुणों से सुशील, ब्रह्मचारिणी कन्याओं को प्राप्त होकर उनको निरन्तर आनन्द देकर आप आनन्द को प्राप्त होओ ॥२॥

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    विषय

    उषा के दृष्टान्त से स्त्रियों के कर्त्तव्यों का वर्णन।

    भावार्थ

    जिस प्रकार ( उषसः ) प्रभात वेलायें ( चन्द्र-रथाः ) आह्लादजनक, रमणीय रूप वाली, या मानो प्रातःकाल तक दीखने वाले चन्द्र पर रथवत् चढ़कर आने वाली होकर (अरुण-युग्भिः ) प्रातःकालिक अरुण वर्ण से युक्त अश्वों अर्थात् किरणों सहित (तत् वि ययुः ) उस परम क्रान्तिमार्ग पर गति करते हैं उसी प्रकार ( उषसः ) कमनीय कन्याएं, ( चन्द्र-रथा: ) आह्लादजनक, उत्तम रमणीय व्यवहारों वाली वा उत्तम रथों पर विराजमान होकर ( अरुण-युग्भिः) रक्त वर्ण के ( अश्वैः ) किरणों से ( चित्रं ) अद्भुत (वि भान्ति ) विशेष रूप से चमकें (तत् ) उस परम गृह-आश्रम को ( ययुः ) प्राप्त हों । वे ( यज्ञस्य ) परस्पर संगति, मुख्य पद या श्रेष्ठ प्रजोत्पत्ति रूप अंश को प्राप्त कराती हुई, ( ताः ) वे सब मिलकर ( ऊर्म्यायाः ) रात्रि के ( तमः ) अन्धकार के समान दुःख को ( वि बाधन्ते ) विविध प्रकार से दूर करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। उषा देवता ।। छन्दः – १ भुरिक् पंक्तिः । ५ विराट् पंक्तिः । २, ३ विराट् त्रिष्टुप । ४, ६ निचृत्त्रिष्टुप् ।। षडृचं सूक्तम् ।।

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    विषय

    यज्ञशीलता

    पदार्थ

    [१] (चन्द्ररथाः) - कान्तियुक्त रथवाली (उषसः) = उषाएँ (अरुणयुग्भिः) = तेजस्विता से युक्त (अश्वैः) = किरणाश्वों के साथ (चित्रं भान्ति) = अद्भुत ही शोभावाली होती हैं। (तत्) = [तदा] उस प्रातः काल में ये (विययुः) = विशिष्ट व विस्तृत गतिवाली होती हैं। [२] (बृहतः यज्ञस्य) = वृद्धि के कारणभूत यज्ञों के (अग्रं नयन्तीः =) अग्रभाग में हमें प्राप्त कराती हुई, अर्थात् यज्ञशीलता में सर्वोपरि करती हुई (ताः) = वे उषायें (ऊर्म्यायाः) = रात्रि के (तमः) = अन्धकार को (विबाधन्ते) = विशेषरूप से बाधित करती है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- उषाएँ अपने अद्भुत प्रकाश से शोभती हैं, हमें यज्ञों के लिये प्रेरित करती हैं।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! तुम्ही आपल्या गुण, कर्म, स्वभावाप्रमाणे सुशील, ब्रह्मचारिणी कन्यांशी विवाह करून त्यांना निरंतर आनंदित करून स्वतः आनंदित व्हा. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The dawns proceed by the golden chariot of bright crimson rays of the sun and wonderfully illuminate the world of humanity. Leading the yajnic business of the wide world, they dispel and stem away the darkness of the night.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How should women be-is further told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! get those brides as partner in life, who are like the dawns, with gold like beautiful, firm, going with great rays, yoking many other beams and shining in wonderous manners. As the dawns drive away the darkness of the night, so these good girls drive away all darkness of ignorance and shine, leading towards the summit of the Yajna in the form of the household dealing, to be united well.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! get those good natured Brahmacharinis (virgins), who match to your merits, actions and temperament, who are givers of joy like the dawns and endowed with knowledge and humility. After getting them as your wives, gladden them constantly and enjoy happiness.

    Translator's Notes

    अश्व इति महन्नाम quoted by Rishi Dayananda Sarasvati in his commentary on the Rigveda 4.79. and other places, though is it not now found in extant editions. It is a matter of research to find out old editions. अश्व इति पदनाम (NG 5,3) पद-गतौ गते-प्राप्त्यर्थमादाय प्रकाश प्रापककिरणनिग्रह्मन्त्रकर्तु शब्धते । चन्द्रमिति हिरण्यनाम (NG 1, 2)

    Foot Notes

    (अश्वैः) मःदिभिः किरणै = With great rays. (चन्द्ररथाः) चन्द्र सुवर्णमिव रथो रमणीयस्वरूपं यासां ताः । = Whose form is charming like the gold. (यज्ञस्य) सङ्गन्तव्यस्य गृहस्थव्यवहारस्य । यज्ञ देवपूजा सङ्गतिकरण दानेषु (भ्वा.) अत्र सङ्गतिकरणार्थमादाय व्याख्या गृहस्थ व्यवहार विषयिणी | = Of the household dealing in the form of Yajna. (ऊर्म्यायाः ) रात्रेः । उम्र्मेति रात्रिनाम (NG 1, 7)= Night.

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