ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 65/ मन्त्र 3
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - उषाः
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
श्रवो॒ वाज॒मिष॒मूर्जं॒ वह॑न्ती॒र्नि दा॒शुष॑ उषसो॒ मर्त्या॑य। म॒घोनी॑र्वी॒रव॒त्पत्य॑माना॒ अवो॑ धात विध॒ते रत्न॑म॒द्य ॥३॥
स्वर सहित पद पाठश्रवः॑ । वाज॑म् । इष॑म् । ऊर्ज॑म् । वह॑न्तीः । नि । दा॒शुषे॑ । उ॒ष॒सः॒ । मर्त्या॑य । म॒घोनीः॑ । वी॒रऽव॑त् । पत्य॑मानाः । अवः॑ । धा॒त॒ । वि॒ध॒ते । रत्न॑म् । अ॒द्य ॥
स्वर रहित मन्त्र
श्रवो वाजमिषमूर्जं वहन्तीर्नि दाशुष उषसो मर्त्याय। मघोनीर्वीरवत्पत्यमाना अवो धात विधते रत्नमद्य ॥३॥
स्वर रहित पद पाठश्रवः। वाजम्। इषम्। ऊर्जम्। वहन्तीः। नि। दाशुषे। उषसः। मर्त्याय। मघोनीः। वीरऽवत्। पत्यमानाः। अवः। धात। विधते। रत्नम्। अद्य ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 65; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्ताः कीदृश्यः स्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे पुरुषा ! या उषस इव दाशुषे विधते मर्त्याय श्रवो वाजमिषमूर्जं वहन्तीर्मघोनीर्वीरवत्पत्यमानाः स्त्रियोऽद्य रत्नमवः प्राप्नुवन्ति ता यूयं नि धात ॥३॥
पदार्थः
(श्रवः) श्रवणम् (वाजम्) विज्ञानम् (इषम्) अन्नम् (ऊर्जम्) पराक्रमम् (वहन्तीः) प्रापयन्त्यः (नि) नितराम् (दाशुषे) विद्यादिशुभगुणदात्रे (उषसः) प्रभातवेलाः (मर्त्याय) मनुष्याय (मघोनीः) बहूत्तमधनाः (वीरवत्) शूरवीरतुल्याः (पत्यमानाः) प्राप्नुवन्त्यः (अवः) रक्षणम् (धात) धत्त (विधते) सेवमानाय (रत्नम्) रमणीयम् (अद्य) इदानीम् ॥३॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! या उषर्वद्वर्त्तमानाः सत्यशास्त्रश्रवणादियुक्ता बलिष्ठा विचक्षणा धनैश्वर्यवर्धिका रक्षणे तत्परा विदुष्यः स्त्रियः स्युस्तासां मध्यात् स्वस्वप्रियां भार्यां सर्वे गृह्णन्तु ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वे कैसी हों, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे पुरुषो ! जो (उषसः) प्रभातवेलाओं के समान (दाशुषे) विद्यादि शुभगुण देनेवाले (विधते) सेवा करते हुए (मर्त्याय) मनुष्य के लिये (श्रवः) श्रवण (वाजम्) विज्ञान (इषम्) अन्न और (ऊर्जम्) पराक्रम को (वहन्तीः) प्राप्त कराती तथा (मघोनीः) बहुत धनवाली (वीरवत्) वीर के समान (पत्यमानाः) प्राप्त होती हुई स्त्रियाँ (अद्य) इस समय (रत्नम्) रमणीय (अवः) रक्षा को प्राप्त होतीं उनको तुम (नि, धात) निरन्तर धारण करो ॥३॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जो उषा के समान वर्त्तमान, सत्यशास्त्र श्रवणादियुक्त, बलिष्ठ, विचक्षण (चित्र-विचित्र बुद्धियुक्त) धन और ऐश्वर्य्य की बढ़ानेवाली, रक्षा में तत्पर, विदुषी स्त्रियाँ हों, उनके बीच से अपनी-अपनी प्रिया भार्या को सब ग्रहण करें ॥३॥
विषय
उषा के दृष्टान्त से स्त्रियों के कर्त्तव्यों का वर्णन।
भावार्थ
हे ( उषस: ) प्रभात वेलाओं के सदृश रमणीय कान्ति से युक्त, उदयकालिक अनुराग वाली शुभ कन्याओ ! आप लोग ( दाशुषे मर्त्याय ) अन्न, वस्त्र, आभूषण आदि देने वाले पुरुष के लिये ( श्रवः) यश,. ज्ञान, ( वाजम् ) बल वीर्य, ( इषम् ) उत्तम अन्न, उत्तम इच्छा और ( ऊर्जम् ) बल पराक्रम ( वहन्तीः ) प्राप्त कराती हुई,अर्थात् इन पदार्थों को प्राप्त करने में सहायक होती हुई स्वयं ( मघोनी ) उत्तम धन सम्पन्न होकर ( पत्यमानाः ) पति की कामना करती हुई ( वीरवत् अवः ) उत्तमः सन्तानयुक्त कामना, अलिंगनादि ( पत्यमानाः ) प्राप्त करती हुई (विधते) विशेष पोषक पति के लिये ( अद्य ) आज ( रत्नम् निधात. ) उत्तम, रमणीय, धनवत् पुत्र को धारण किया करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। उषा देवता ।। छन्दः – १ भुरिक् पंक्तिः । ५ विराट् पंक्तिः । २, ३ विराट् त्रिष्टुप । ४, ६ निचृत्त्रिष्टुप् ।। षडृचं सूक्तम् ।।
विषय
उषा जागरण व ज्ञान वाणियों का अध्ययन
पदार्थ
[१] (मघोनी:) = ऐश्वर्यवाली (उषसः) = उषाएँ (दाशुषे मर्त्याय) = दाश्वान्, अग्नि के लिये हवि को देनेवाले मनुष्य के लिये (श्रवः) = ज्ञान को, (वाजम्) = शक्ति को, (इषं ऊर्जम्) = प्रेरणा व प्राणशक्ति को (वहन्तीः) = प्राप्त कराती हुई, (पत्यमानाः) = निरन्तर गति करती हुई, (अद्य) = आज (विधते )= परिचरण करते हुए उपासक के लिये (वीरवत् अवः) = वीरता से युक्त अन्न को तथा (रत्नम्) = रमणीय धन को निधात निश्चय से धारण करो। [२] उषा के आने पर जो यज्ञशील पुरुष होते हैं, उनके लिये ये उषा काल सब रमणीय वस्तुओं को धारित करती हैं। उषा की उपासना यही है कि हम उषा में प्रबुद्ध होकर प्रभु का परिचरण करें।
भावार्थ
भावार्थ - उषाएँ जागकर हम प्रभु का उपासन करें तथा यज्ञों में प्रवृत्त हों। ऐसा करने पर हमारा जीवन ज्ञान व शक्ति से सम्पन्न होगा। हमें अन्न-धन की कमी न रहेगी।
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! ज्या विदुषी स्त्रिया उषेप्रमाणे वर्तमान, सत्यशास्त्र श्रवणांनी युक्त बलवान, विलक्षण बुद्धिमान, धन व ऐश्वर्य वाढविणाऱ्या, रक्षण करण्यात तत्पर असतील तर त्यांच्यामधून आपली प्रिय भार्या निवडावी. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O glorious dawns, bearing food, energy, knowledge and the message of divinity for the generous mortals, your lights descending like brave powers of heaven, bear and bring protection, advancement and the jewel wealth of life for the celebrant devotee.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How should women be-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! uphold or support those wives well, who like the dawns enable their husbands, who are givers of education and other good virtues and then serving people get hearing of good words of knowledge, good food and strength, who are endowed with good and abundant wealth and who go like brave persons obtaining good protection.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men you should choose a suitable wife. (one for one) among those, who are like the dawn endowed with the hearing of the true Shastras, ( scriptures) strong and powerful, wonderfully intelligent, increasers of wealth and prosperity, highly educated and engaged in protecting others.
Foot Notes
(वाजम्) विज्ञानम् । वज-गतौ (म्वा.) गतेस्त्रिस्वर्थे अत्रज्ञानार्थं गृहणम् । = True knowledge. (दाशुषे ) विद्यादिशुभगुणदात्रे । दाशु-दाने (भ्वा.) = For the giver of knowledge and other good virtues. (विद्यते) सेवमानाय । विधेम परिचरणकर्मा (NG 3, 5) Serving the people, a servant of the people..
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal