Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 17 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 17/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अग्निः छन्दः - साम्नीपङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    वंस्व॒ विश्वा॒ वार्या॑णि प्रचेतः स॒त्या भ॑वन्त्वा॒शिषो॑ नो अ॒द्य ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वंस्व॑ । विश्वा॑ । वार्या॑णि । प्र॒चे॒त॒ इति॑ प्रऽचेतः । स॒त्याः । भ॒व॒न्तु॒ । आ॒ऽशिषः॑ । नः॒ । अ॒द्य ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वंस्व विश्वा वार्याणि प्रचेतः सत्या भवन्त्वाशिषो नो अद्य ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वंस्व। विश्वा। वार्याणि। प्रचेत इति प्रऽचेतः। सत्याः। भवन्तु। आऽशिषः। नः। अद्य ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 17; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनरध्यापकं प्रति विद्यार्थिनः किं पृच्छेयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे प्रचेतस्त्वं विश्वा वार्याणि वंस्व यतो नोऽद्याऽऽशिषः सत्या भवन्तु ॥५॥

    पदार्थः

    (वंस्व) संभज (विश्वा) सर्वाणि (वार्याणि) वरणीयानि प्रज्ञानानि (प्रचेतः) प्रकर्षेण प्रज्ञया युक्त (सत्याः) सत्सु साध्व्यः (भवन्तु) (आशिषः) इच्छा (नः) अस्माकम् (अद्य) अस्मिन् अहनि ॥५॥

    भावार्थः

    हे अध्यापक ! त्वं विवेकेन सत्यानि शास्त्राण्यध्यापय सुशिक्षां कुरु येन वयं सत्यकामा भवेम ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर अध्यापक से विद्यार्थी जन क्या पूछें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (प्रचेतः) उत्तम बुद्धि से युक्त पुरुष ! आप (विश्वा) सब (वार्याणि) ग्रहण करने योग्य विद्वानों का (वंस्व) सेवन कीजिये जिससे (अद्य) आज (नः) हमारी (आशिषः) इच्छा (सत्याः) सत्य (भवन्तु) होवें ॥५॥

    भावार्थ

    हे अध्यापक ! आप विवेक से सत्य शास्त्रों को पढ़ाइये और सुशिक्षा करिये, जिससे हम लोग सत्य कामनावाले हों ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    यज्ञाग्निवत् विद्वान् शासक के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे (प्रचेतः ) उत्तम ज्ञान और उत्तम चित्त वाले पुरुष ! तू ( विश्वा वार्याणि ) सब प्रकार के वरण करने योग्य धन, ज्ञान आदि पदार्थ ( नः वंस्व ) हमें प्रदान कर । और ( अद्य ) आज, (नः आशिषः) हमारी सब अभिलाषाएं ( सत्याः भवन्तु ) सत्य, उत्तम फलदायक हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ।। अग्निर्देवता ॥ छन्दः– १, ३, ४, ६, ७ आर्च्युष्णिक् । २ साम्नी त्रिष्टुप् । ५ साम्नी पंक्तिः । सप्तर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वार्य वस्तु लाभ तथा सत्य इच्छायें

    पदार्थ

    [१] हे (प्रचेत:) = प्रकृष्ट चेतना को प्राप्त करानेवाले प्रभो! आप (विश्वा) = सब वार्याणि वरणीय धनों को (वंस्व) = प्राप्त कराइये। वस्तुतः ज्ञानपूर्वक सब व्यवहारों को करते हुए हम उत्कृष्ट धनों को प्राप्त करें। [२] (अद्य) = आज (न:) = हमारी (आशिष:) = इच्छायें (सत्याः भवन्तु) = सत्य हों। हमारे मनों में कोई अशुभ इच्छा उठे ही नहीं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम 'प्रचेता' प्रभु के उपासक होते हुए वरणीय धनों को प्राप्त करें और सदा शुभ इच्छाओंवाले हों।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे अध्यापका! तू विवेकाने सत्य शास्त्राचे अध्यापन कर व सुशिक्षण दे. ज्यामुळे आम्ही सत्य कामनायुक्त बनावे. ॥ ५ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O man of knowledge and enlightenment, acquire and disseminate all the cherished gifts and virtues of the world so that all our hopes and ambitions for a full living may be truly fulfilled here and now.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top