ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 28/ मन्त्र 4
ए॒भिर्न॑ इ॒न्द्राह॑भिर्दशस्य दुर्मि॒त्रासो॒ हि क्षि॒तयः॒ पव॑न्ते। प्रति॒ यच्चष्टे॒ अनृ॑तमने॒ना अव॑ द्वि॒ता वरु॑णो मा॒यी नः॑ सात् ॥४॥
स्वर सहित पद पाठए॒भिः । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । अह॑ऽभिः । द॒श॒स्य॒ । दुः॒ऽमि॒त्रासः॑ । हि । क्षि॒तयः॑ । पव॑न्ते । प्रति॑ । यत् । च॒ष्टे॒ । अनृ॑तम् । अ॒ने॒नाः । अव॑ । द्वि॒ता । वरु॑णः । मा॒यी । नः॒ । सा॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
एभिर्न इन्द्राहभिर्दशस्य दुर्मित्रासो हि क्षितयः पवन्ते। प्रति यच्चष्टे अनृतमनेना अव द्विता वरुणो मायी नः सात् ॥४॥
स्वर रहित पद पाठएभिः। नः। इन्द्र। अहऽभिः। दशस्य। दुःऽमित्रासः। हि। क्षितयः। पवन्ते। प्रति। यत्। चष्टे। अनृतम्। अनेनाः। अव। द्विता। वरुणः। मायी। नः। सात् ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 28; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः कथं वर्तितव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे इन्द्र ! येऽनृतं वदन्ति ते दुर्मित्रासः सन्ति यो हि क्षितयः सत्यं वदन्ति त एभिरहभिः पवन्त एतैः स त्वं नो दशस्यानेना भवान् यत्प्रति चष्टे द्विता वरुणो मायी सन् नः सत्यमव सात् ॥४॥
पदार्थः
(एभिः) वर्त्तमानैः (नः) अस्मान् (इन्द्र) दोषविदारक (अहभिः) दिवसैस्सह (दशस्य) देहि (दुर्मित्रासः) दुष्टानि तानि मित्राणि (हि) (क्षितयः) मनुष्याः (पवन्ते) पवित्रा भवन्ति (प्रति) (यत्) (चष्टे) वदति (अनृतम्) मिथ्याभाषणम् (अनेनाः) निष्पापः (अव) (द्विता) द्वयोर्भावः (वरुणः) वरणीयः (मायी) उत्तमा प्रज्ञा विद्यते यस्य सः (नः) अस्मान् (सात्) निश्चिनुयात् ॥४॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! येऽत्राऽसत्यं वदन्ति तेऽधर्मात्मानो ये सत्यं ब्रुवन्ति ते धार्मिका इति निश्चिन्वन्तु ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को कैसे वर्त्तना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्र) दोषों के विदीर्ण करनेवाले ! जो (अनृतम्) झूँठ कहते हैं वे (दुर्मित्रासः) दुष्ट मित्र हैं और जो (हि) निश्चित (क्षितयः) मनुष्य सत्य कहते हैं वे (एभिः) इन वर्त्तमान (अहभिः) दिवसों के साथ (पवन्ते) पवित्र होते हैं इनके साथ आप (नः) हम लोगों को (दशस्य) दीजिये और (अनेनाः) निष्पाप आप (यत्) जिसके (प्रति) प्रति (चष्टे) कहते हैं (द्विता) तथा दो का होना (वरुणः) जो स्वीकार करने योग्य वह और (मायी) उत्तम बुद्धिमान् होता हुआ जन (नः) हम लोगों को सत्य का (अव, सात्) निश्चय कर देवे ॥४॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जो यहाँ झूँठ कहते हैं, वे अधर्मात्मा पुरुष हैं और जो सत्य कहते हैं वे धर्मात्मा हैं, ऐसा निश्चय करो ॥४॥
विषय
न्याय का उत्तम दाता हो ।
भावार्थ
हे (इन्द्र ) सत्य न्याय के देखने हारे राजन् ! ( नः ), हमारे ( दुः-मित्रासः ) दुष्ट मित्र और (क्षितयः) हमारे साथ रहने वाले लोग (हि) भी (पवन्ते) तुझे प्राप्त होते हैं । तू ( एभिः अहभिः) इन कुछ दिनों में, शीघ्र (दशस्य) न्याय को प्रदान कर । (यः) जो तू ( अनृतम् ) असत्य को ( प्रतिचष्टे ) प्रत्याख्यान करता है वह तू ( अनेनाः ) पाप रहित, (वरुणः ) सर्वश्रेष्ठ (मायी ) बुद्धिमान् होकर ( द्विता ) सत्य और असत्य इन दोनों के बीच ( नः अव सात् ) हमारा निर्णय कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ इन्द्रा देवता ॥ छन्दः – १, २, ५ निचृत्त्रिष्टुप् । ३ भुरिक् पंक्तिः । ४ स्वराट् पंक्तिः॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥
विषय
राजा उत्तम न्यायकारी हो
पदार्थ
पदार्थ - हे (इन्द्र) न्याय के द्रष्टा राजन्! (न:) = हमारे (दुः-मित्रासः) = दुष्ट मित्र और (क्षितयः) = साथी (हि) = भी (पवन्ते) = तुझे प्राप्त होते हैं। तू (एभिः अहभिः) = इन कुछ दिनों में, शीघ्र (दशस्य) = न्याय प्रदान कर। (यः) = जो तू (अनृतम्) = असत्य को (प्रतिचष्टे) = खण्डित करता है वह, तू (अनेना:) = पाप-रहित, (वरुणः) = श्रेष्ठ (मायी) = बुद्धिमान् होकर (द्विता) = सत्य और असत्य दोनों के बीच (नः अव सात्) = हमारा निर्णय कर ।
भावार्थ
भावार्थ- राजा को अपनी गुप्तचर व्यवस्था को सुदृढ़ करना चाहिए। जिससे राज्य में होनेवाली प्रत्येक गतिविधि को जानकर राजा अपनी न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ कर सके। न्यायकारी राजा उत्तम न्याय व्यवस्था द्वारा प्रजा को सुखी एवं शत्रु को मित्र बना सकता है।
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जे असत्यवचनी असतात ते अधोर्मिक असतात, जे सत्यवचनी असतात ते धार्मिक असतात हे जाणा. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, lord ruler of the world, in these few days bless us that the evil in friends be purged and they become good citizens. O lord, if the man of judgement and discrimination were to see untruth and false conduct, then he, Varuna, with justice and power, may cause it to be reduced to half and then purged off.
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