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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 40 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 40/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - भुरिक्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    सेदु॒ग्रो अ॑स्तु मरुतः॒ स शु॒ष्मी यं मर्त्यं॑ पृषदश्वा॒ अवा॑थ। उ॒तेम॒ग्निः सर॑स्वती जु॒नन्ति॒ न तस्य॑ रा॒यः प॑र्ये॒तास्ति॑ ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । इत् । उ॒ग्रः । अ॒स्तु॒ । म॒रु॒तः॒ । सः । शु॒ष्मी । यम् । मर्त्य॑म् । पृ॒ष॒त्ऽअ॒श्वाः॒ । अवा॑थ । उ॒त । ई॒म् । अ॒ग्निः । सर॑स्वती । जु॒नन्ति॑ । न । तस्य॑ । रा॒यः । प॒रि॒ऽए॒ता । अ॒स्ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सेदुग्रो अस्तु मरुतः स शुष्मी यं मर्त्यं पृषदश्वा अवाथ। उतेमग्निः सरस्वती जुनन्ति न तस्य रायः पर्येतास्ति ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। इत्। उग्रः। अस्तु। मरुतः। सः। शुष्मी। यम्। मर्त्यम्। पृषत्ऽअश्वाः। अवाथ। उत। ईम्। अग्निः। सरस्वती। जुनन्ति। न। तस्य। रायः। परिऽएता। अस्ति ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 40; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    कः सुरक्षितो विद्वान् भवतीत्याह ॥

    अन्वयः

    हे मरुतः ! पृषदश्वा यं मर्त्यमवाथ स इदेव उग्रः स शुष्म्यस्तु यं विद्वांसो जुनन्ति तस्य रायः पर्येता न जायत उतेमग्निरिव सरस्वती तस्योत्तमाऽस्ति ॥३॥

    पदार्थः

    (सः) (इत्) एव (उग्रः) तेजस्वी (अस्तु) (मरुतः) विद्वांसो मनुष्याः (सः) (शुष्मी) बहुबली (यम्) (मर्त्यम्) मनुष्यम् (पृषदश्वाः) सिक्तजलाग्निनाऽऽशुगामिनो महान्तः (अवाथ) रक्षेत (उत) (ईम्) सर्वतः (अग्निः) पावक इव (सरस्वती) शुद्धा वाणी (जुनन्ति) प्रेरयन्ति (न) (तस्य) (रायः) धनानि (पर्येता) वर्जिता (अस्ति) ॥३॥

    भावार्थः

    यान् मनुष्यान् विद्वांसो रक्षन्ति ते विद्वांसो भूत्वा धनैश्वर्यं प्राप्याऽन्यानपि रक्षितुं शक्नुवन्ति ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    कौन सुरक्षित विद्वान् होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मरुतः) विद्वान् मनुष्यो ! (पृषदश्वाः) सींचे हुए जल और अग्नि से जल्दी चलनेवाले बढ़े (यम्) जिस (मर्त्यम्) मनुष्य को (अवाथ) रक्खें (स, इत्) वही (उग्रः) तेजस्वी (सः) वह (शुष्मी) बहुत बलवान् (अस्तु) हो जिस को विद्वान् (जुनन्ति) प्रेरणा देते हैं (तस्य) उस के (रायः) धनों को (पर्येता) वर्जन करनेवाला (न) नहीं होता है (उत, ईम्) और सब ओर से (अग्निः) अग्नि के समान (सरस्वती) शुद्ध वाणी उस की उत्तम (अस्ति) है ॥३॥

    भावार्थ

    जिन मनुष्यों की विद्वान् जन रक्षा करते हैं, वे विद्वान् हो धन और ऐश्वर्य को पाकर औरों की भी रक्षा कर सकते हैं ॥३॥

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    विषय

    तेजस्वी राजा के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( मरुतः ) वायु तुल्य बलवान्, शत्रुओं को मारने हारे वीर मनुष्यो ! हे ( पृषदश्वाः ) सिञ्चन किये जलाग्नि से वेग पूर्वक जाने हारे वा ( पृषदश्वाः ) हृष्ट पुष्ट अश्वों वाले सैन्य जनो ! आप लोग ( यं मर्त्यं अवाथ ) जिस मनुष्य की रक्षा करते हो ( सः इत् उग्रः अस्तु ) वह ही बलवान्, शत्रुओं को भयभीत करने में समर्थ हो । ( उत ) और ( ईम् ) सब ओर से (तस्य सरस्वती ) उसकी उत्तम वाणी और वेगवती सेना ( अग्निः ) अग्नि के समान अर्थ की प्रकाशक, शत्रु को दग्ध करने वाली हो जिसको (जुनन्ति ) विद्वान् लोग सन्मार्ग पर चलाते हैं ( तस्य रायः ) उसके ऐश्वर्यों को कोई ( पर्येता न अस्ति ) छीन कर लेने वाला नहीं होता ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ विश्वेदेवा देवताः । छन्दः—१ पंक्ति: । ३ भुरिक् पंक्तिः विराट् पंक्तिः। २, ४ विराट् त्रिष्टुप् । ५, ७ निचृत्त्रिष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    सन्मार्गगामी बनो

    पदार्थ

    पदार्थ - हे (मरुतः) = वायु तुल्य बलवान् वीरो ! हे (पृषदश्वाः) = हृष्ट-पुष्ट अश्वोंवाले सैन्य जनो! आप (यं मर्त्यं अवाथ) = जिस मनुष्य की रक्षा करते हो (सः इत् उग्रः अस्तु) = वह ही शत्रुओं को डराने में समर्थ हो । (उत) = और (ईम्) = सब ओर (तस्य सरस्वती) = उसकी वेगवती सेना (अग्निः) = अग्नितुल्य शत्रु को जलानेवाली हो। जिसको (जुनन्ति) = विद्वान् लोग सन्मार्ग पर चलाते हैं (तस्य रायः) = उसके ऐश्वर्यों को कोई (पर्येता न अस्ति) = छीन लेनेवाला नहीं होता।

    भावार्थ

    भावार्थ- राष्ट्र की प्रजा विद्वानों के मार्गदर्शन में सन्मार्ग पर चलते हुए ऐश्वर्यशाली बने। उत्तम वाणी के धनी तथा वीर बनकर शत्रुओं को भयभीत करने और आत्मरक्षा में समर्थ प्रजा जन हों।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या माणसांचे विद्वान रक्षण करतात ते विद्वान बनून धन व ऐश्वर्य प्राप्त करून इतरांचे रक्षण करू शकतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Surely that person would be strong and brilliant whom the Maruts, great commanders of the power of fire, wind and water, protect and promote. Indeed, none would be able to counter his power and prosperity whom Agni, brilliant leader of divinities, and Sarasvati, spirit of knowledge and speech, inspire, energise and motivate.

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