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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 40 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 40/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒यं हि ने॒ता वरु॑ण ऋ॒तस्य॑ मि॒त्रो राजा॑नो अर्य॒मापो॒ धुः। सु॒हवा॑ दे॒व्यदि॑तिरन॒र्वा ते नो॒ अंहो॒ अति॑ पर्ष॒न्नरि॑ष्टान् ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । हि । ने॒ता । वरु॑णः । ऋ॒तस्य॑ । मि॒त्रः । राजा॑नः । अ॒र्य॒मा । अपः॑ । धुरिति॒ धुः । सु॒ऽहवा॑ । दे॒वी । अदि॑तिः । अ॒न॒र्वा । ते । नः॒ । अंहः॑ । अति॑ । प॒र्ष॒न् । अरि॑ष्टान् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं हि नेता वरुण ऋतस्य मित्रो राजानो अर्यमापो धुः। सुहवा देव्यदितिरनर्वा ते नो अंहो अति पर्षन्नरिष्टान् ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम्। हि। नेता। वरुणः। ऋतस्य। मित्रः। राजानः। अर्यमा। अपः। धुरिति धुः। सुऽहवा। देवी। अदितिः। अनर्वा। ते। नः। अंहः। अति। पर्षन्। अरिष्टान् ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 40; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    के राजानो भवितुमर्हन्तीत्याह ॥

    अन्वयः

    येऽयं नेता वरुणो मित्रोऽर्यमा च सुहवा राजानो ह्यृतस्यापो धुस्तेऽनर्वा देव्यदितिरिव नोऽरिष्टानंहोऽति पर्षन् ॥४॥

    पदार्थः

    (अयम्) (हि) (नेता) नयनकर्ता (वरुणः) श्रेष्ठः (ऋतस्य) सत्यस्य (मित्रः) सखा (राजानः) (अर्यमा) न्यायेशः (अपः) सुकर्म (धुः) दध्युः (सुहवा) सुष्ठुदानादानाः (देवी) देदीप्यमाना (अदितिः) अखण्डिता (अनर्वा) अविद्यमानाश्वगमनेव (ते) (नः) अस्मान् (अंहः) अपराधात् (अति) (पर्षन्) उल्लङ्घयेयुः (अरिष्टान्) अहिंसितान् ॥४॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। त एव राजानो भवन्ति ये न्यायं शुभान् गुणान् सर्वेषु मैत्रीं च भावयन्ति त एवापराधाचरणाज्जनान् पृथग्रक्षितुमर्हन्ति त एव राजानो भवितुमर्हन्ति ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    कौन राजा होने योग्य होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    जो (अयम्) यह (नेता) न्यायकर्त्ता (वरुणः) श्रेष्ठ (मित्रः) मित्र (अर्यमा) और न्यायाधीश (सुहवा) सुन्दर देने लेनेवाले (राजानः) राजजन (हि) ही (ऋतस्य) सत्य के (अपः) कर्म को (धुः) धारण करें (ते) वे (अनर्वा) नहीं है घोड़े की चाल जिस की उस (देवी) देदीप्यमान (अदितिः) अखण्डित नीति के समान (नः) हम लोगों को (अंहः) अपराध से (अरिष्टान्) न विनाश किये हुए (अति, पर्षन्) उल्लङ्घे अर्थात् छोड़े ॥४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वे ही राजा होते हैं, जो न्याय, श्रेष्ठ गुण और सबों में मित्रता की भावना कराते हैं, वे ही अपराध के आचरण से लोगों को दूर रखने योग्य होते हैं और राजा होने योग्य होते हैं ॥४॥

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    विषय

    तेजस्वी राजा के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( अयं ) यह ( हि ) ही निश्चय से ( वरुणः ) सर्वश्रेष्ठ पुरुष (नेता) सबका नायक होता है । ( मित्रः ) सर्व स्नेही ( अर्यमा ) शत्रुनियन्ता और ( राजा नः ) अन्य राजागण उसके अधीन ( अपः धुः ) नाना काम अपने कन्धों ले लेते हैं । ( सुहवा ) उत्तम ज्ञान से युक्त ( देवी ) उत्तम अन्नादि देने वाली एवं विदुषी (अदितिः ) अखण्ड चरित्र वाली, भूमिवत् माता और ( अनर्वा ) अश्वादि से रहित यन्त्रमय रथपर जाने वाला अथवा ( अनर्वा ) अहिंसक पुरुष ( ते ) वे सब ( अंहः ) पाप और कष्ट से (अरिष्टान् ) विना पीड़ित हुए ( नः ) हमें ( अति पर्षन् ) पार करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ विश्वेदेवा देवताः । छन्दः—१ पंक्ति: । ३ भुरिक् पंक्तिः विराट् पंक्तिः। २, ४ विराट् त्रिष्टुप् । ५, ७ निचृत्त्रिष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    दुःखसागर से तरो

    पदार्थ

    पदार्थ - (अयं) = यह (हि) = ही (वरुणः) = सर्वश्रेष्ठ पुरुष (नेता) = सबका नायक होता है। (मित्रः) = सर्वस्नेही (अर्यमा) = शत्रुनियन्ता और (राजानः) = अन्य राजागण उसके अधीन (अपः धुः) = नाना काम अपने पर लेते हैं। (सुहवा) = उत्तम ज्ञान युक्त (देवी) = अन्नादि देनेवाली, विदुषी (अदितिः) = अखण्ड चरित्रवाली माता और (अनर्वा) = अश्वादि से रहित, यन्त्रमय रथ पर जानेवाला पुरुष (ते) = वे सब (अंहः) = कष्ट से (अरिष्टान्) = बिना पीड़ित हुए (नः) = हमें (अति पर्षन्) = पार करें।

    भावार्थ

    भावार्थ- राष्ट्र का नेता सर्वश्रेष्ठ होवे । वह सर्वस्नेही, शत्रु का नियन्ता होवे। राष्ट्र की स्त्रियाँ विदुषी, उत्तम चरित्रवाली होवें। यान पर आरूढ़ होकर राष्ट्रनायक प्रजाजन को पाप और दुःखों से पार करे ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्यांचे गुण श्रेष्ठ असतात व सर्वांशी मैत्रीने वागतात तेच राजे होतात व अपराधापासून लोकांना दूर ठेवण्याची ज्यांच्यात क्षमता असते, ते राजे होण्यायोग्य असतात. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    And this leader of the yajnic social order of truth and dynamism of society and supportive ruling powers, judicious Varuna, friendly Mitra, far seeing guiding force Aryama, and self-directive brilliant and indestructible spirit and policy, Aditi, all adorable powers faithfully invoked and invited, may, we pray, guide and direct our actions and purge us of evil, sin and crime without hurt or violence.

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