ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 61/ मन्त्र 3
प्रोरोर्मि॑त्रावरुणा पृथि॒व्याः प्र दि॒व ऋ॒ष्वाद्बृ॑ह॒तः सु॑दानू । स्पशो॑ दधाथे॒ ओष॑धीषु वि॒क्ष्वृध॑ग्य॒तो अनि॑मिषं॒ रक्ष॑माणा ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । उ॒रोः । मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒ । पृ॒थि॒व्याः । प्र । दि॒वः । ऋ॒ष्वात् । बृ॒ह॒तः । सु॒दा॒नू॒ इति॑ सुऽदानू । स्पशः॑ । द॒धा॒थे॒ इति॑ । ओष॑धीषु । वि॒क्षु । ऋध॑क् । य॒तः । अनि॑ऽमिषम् । रक्ष॑माणा ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रोरोर्मित्रावरुणा पृथिव्याः प्र दिव ऋष्वाद्बृहतः सुदानू । स्पशो दधाथे ओषधीषु विक्ष्वृधग्यतो अनिमिषं रक्षमाणा ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । उरोः । मित्रावरुणा । पृथिव्याः । प्र । दिवः । ऋष्वात् । बृहतः । सुदानू इति सुऽदानू । स्पशः । दधाथे इति । ओषधीषु । विक्षु । ऋधक् । यतः । अनिऽमिषम् । रक्षमाणा ॥ ७.६१.३
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 61; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अब परमात्मा अध्यापक तथा उपदेशकों के कर्तव्य कर्मों का उपदेश करते हैं।
पदार्थ
(मित्रावरुणा) हे अध्यापक तथा उपदेशको ! तुम (प्रोरोः) विस्तृत (पृथिव्याः) पृथिवी और (ऋष्वात्) बड़े (प्रदिवः) द्युलोक की विद्याओं का वर्णन करो, (यतः) क्योंकि आप लोग (बृहतः) बड़े-बड़े (सुदानू, स्पशः) दानी महाशयों के भावों को (दधाथे) धारण किये हुए हो और (ओषधीषु) ओषधियों द्वारा (अनिमिषम्) निरन्तर (विक्षु) सम्पूर्ण संसार की (रक्षमाणा) रक्षा करो ॥३॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे अध्यापक तथा उपदेशको ! तुम सत्य का प्रचार तथा ओषधियों=अन्नादि द्वारा प्रजा का भले प्रकार रक्षण करो अर्थात् अपने सदुपदेश द्वारा मानस रोगों की और ओषधियों द्वारा शारीरिक रोगों की चिकित्सा करके संसार में सर्वथा सुख फैलाने का उद्योग करो ॥३॥
विषय
राज्य में प्रजापालक, दुष्टवारक मित्र, वरुण दोनों वर्गों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( मित्रावरुणौ ) 'मित्र' प्रजाजनों को मृत्यु आदि के कष्टों से बचाने वाले और 'वरुण' और उनके दुखों को दूर करने वाले दोनों प्रकार के वर्गो ! हे ( सु-दानू ) उत्तम ज्ञान सुखादि के दाता आप दोनों ( उरोः पृथिव्याः ) विशाल पृथिवी और ( बृहतः ) बड़े भारी (ऋष्वात् ) महान् ( दिवः ) प्रकाशयुक्त सूर्य से ( स्पशः ) नाना प्रकार के ग्रहण करने योग्य पदार्थों को ( प्र प्र दधाथे ) प्राप्त किया करो । (ओषधीषु) ओषधियों और ( विक्षु ) प्रजाओं में भी ( अनिमिषं ) विना प्रमाद के, विना नयन झपके (ऋधक् ) सत्य के बल से ( रक्षमाणा ) प्रजाओं की रक्षा करते हुए भी ( यतः ) यत्नशील ( स्पशः प्र दधाथे ) उत्तम गुप्तचरों और अध्यक्षों को अच्छी प्रकार नियुक्त करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ मित्रा वरुणौ देवते ॥ छन्दः—१ भुरिक् पंक्तिः । २, ४ त्रिष्टुप् । ३, ५, ६, ७ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
विषय
राजा का कर्त्तव्य
पदार्थ
पदार्थ- हे (मित्रावरुणौ) ='मित्र', प्रजा के मृत्यु आदि कष्टों से रक्षक और 'वरुण' दुःखों के दूर कर्ता दोनों वर्गो! हे (सुदानू) = उत्तम ज्ञान दाता आप दोनों (उरोः पृथिव्याः) = विशाल पृथिवी और (बृहतः) = बड़े भारी (ऋष्वात्) = महान् (दिव:) = प्रकाशयुक्त सूर्य से (स्पशः) = ग्रहण-योग्य पदार्थों को (प्र प्र दधाथे) = प्राप्त करो। (ओषधीषु) = ओषधियों और (विक्षु) = प्रजाओं में (अनिमिषं) = बिना प्रमाद के, (ऋधक्) = सत्य के बल से (रक्षमाणा) = प्रजा रक्षण करते हुए भी (यतः) = यत्नशील (स्पशः प्र दधाथे) = गुप्तचरों और अध्यक्षों को नियुक्त करो।
भावार्थ
भावार्थ- उत्तम राजा को चाहिए कि वह अपने राज्य में कर्त्तव्यपरायण गुप्तचरों तथा प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति करे। इससे प्रजा की रक्षा होगी तथा राजा, प्रजा में लोकप्रिय हो जाएगा।
इंग्लिश (1)
Meaning
O Mitra and Varuna, light and life of the universe, generous love and intelligence of nature and humanity, you transcend the wide earth and the vast heaven by your dynamic power and sublimity. You vest life energy and distinct form in herbs and trees and specific identity in people and their communities while you preserve and protect the truth of law and the pursuers of truth with relentless vigil.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे अध्यापक व उपदेशकांनो! तुम्ही सत्याचा प्रचार करा. औषधी= अन्न इत्यादीद्वारे प्रजेचे चांगल्या प्रकारे रक्षण करा. अर्थात, आपल्या सदुपदेशाने मानस रोगांची व औषधीद्वारे शारीरिक रोगांची चिकित्सा करून जगात सर्व सुख पसरविण्याचे कार्य करा ॥३॥
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