ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 61/ मन्त्र 6
समु॑ वां य॒ज्ञं म॑हयं॒ नमो॑भिर्हु॒वे वां॑ मित्रावरुणा स॒बाध॑: । प्र वां॒ मन्मा॑न्यृ॒चसे॒ नवा॑नि कृ॒तानि॒ ब्रह्म॑ जुजुषन्नि॒मानि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । ऊँ॒ इति॑ । वा॒म् । य॒ज्ञम् । म॒ह॒य॒म् । नमः॑ऽभिः । हु॒वे । वा॒म् । मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒ । स॒ऽबाधः॑ । प्र । वा॒म् । मन्मा॑नि । ऋ॒चसे॑ । नवा॑नि । कृ॒तानि॑ । ब्रह्म॑ । जु॒जु॒ष॒न् । इ॒मानि॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
समु वां यज्ञं महयं नमोभिर्हुवे वां मित्रावरुणा सबाध: । प्र वां मन्मान्यृचसे नवानि कृतानि ब्रह्म जुजुषन्निमानि ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । ऊँ इति । वाम् । यज्ञम् । महयम् । नमःऽभिः । हुवे । वाम् । मित्रावरुणा । सऽबाधः । प्र । वाम् । मन्मानि । ऋचसे । नवानि । कृतानि । ब्रह्म । जुजुषन् । इमानि ॥ ७.६१.६
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 61; मन्त्र » 6
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 3; मन्त्र » 6
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 3; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ वेदज्ञा एवोपदेशका भवेयुरित्युपदिश्यते।
पदार्थः
(मित्रावरुणा) हे अध्यापकोपदेशकौ ! (वाम्) युवयोः (महयम्) सत्कारार्हं यज्ञं (सबाधः) जिज्ञासुरहं (नमोभिः) सत्कारैः (समु) सम्यक्तया (हुवे) स्वीकुर्याम् अन्यच्च (वाम्) युवयोः करुणया (नवानि, मन्मानि) नूतनव्याख्यानानि (प्र ऋचसे) पदार्थज्ञानविवृद्धये (कृतानि) दत्तानि, अन्यच्च (वाम्) युवयोः इमानि व्याख्यानानि (ब्रह्म, जुजुषन्) ब्रह्मसम्बन्धीनि ॥६॥
भावार्थः
ईश्वरो वदति–हे अध्यापकोपदेशकौ ! भवतोः प्रवचनरूपः=अध्यापनरूपः उपदेशरूपश्च यज्ञः मयाऽऽद्रियते, अन्यच्च वेदार्थबोधकानि यानि यानि नूतनानि व्याख्यानानि तानि तानि भवद्भिः सर्वदैव दातव्यानि, यैर्वेदस्य ख्यातिर्वर्द्धेत, तद्द्वारा स्वजीवनमपि सफलीकुरुतां भवन्तौ, अस्मिन् मन्त्रे यत्कृतानि इति पदं तन्न मनुष्यस्य कृतिं बोधयति, अपि तु ईश्वरस्यैव कृतिं बोधयति, कुतः, वेदानामीश्वरज्ञानत्वात् नित्यत्वाच्च, प्रतिपादनं चैतत्–“अस्य वा महतो भूतस्य निःश्वसितमेतद् यदृग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोऽथर्वाङ्गिरसः” बृहदा० ४।५।११ इत्यत्रेति ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
अब परमात्मा उपदेशकों के वेदवाणीयुक्त होने का उपदेश करते हैं।
पदार्थ
(मित्रावरुणा) हे अध्यापक तथा उपदेशकों ! (सबाधः) मैं जिज्ञासु (वाम्) तुम्हारे (महयम्, यज्ञम्) प्रशंसनीय यज्ञ को (सम्, ऊम्) भलेप्रकार (नमोभिः) सत्कारपूर्वक (हुवे) ग्रहण करता हूँ (वाम्) आपके (नवानि) नये (मन्मानि) व्याख्यान (प्र, ऋचसे) पदार्थज्ञान के बढ़ानेवाले हैं और (वाम्) आपके (कृतानि) दिये हुए (इमानि) ये व्याख्यान (ब्रह्म, जुजुषन्) परमात्मा के साथ जोड़ते हैं ॥६॥
भावार्थ
हे अध्यापक तथा उपदेशकों ! मैं जिज्ञासु तुम्हारे यज्ञों को सत्कारपूर्वक स्वीकार करता हुआ प्रार्थना करता हूँ कि आपके उपदेश मुझे ब्रह्म की प्राप्ति करायें ॥६॥
विषय
दोनों विद्वानों के वचन, उत्तम ज्ञान से पूर्ण हो ।
भावार्थ
हे ( मित्रावरुणा ) सर्वस्नेही और सबसे गुरु आदि रूप से वरण करने योग्य स्त्री पुरुषो ! (स-बाधः ) विशेष अज्ञानादि की बाधा वा पीड़ा से युक्त होकर (वां यज्ञं) आप लोगों के सत्संग की मैं ( नमोभिः) अति विनययुक्त वचनों से ( महयम् ) स्तुति करता हूँ और ( वां हुवे ) आप दोनों की भी स्तुति करता हूं । ( वाम् ) आप लोगों के ( नवानि ) नये से नये स्तुत्य ( कृतानि ) सम्पादित किये ( इमानि ब्रह्म ) ये नाना अन्नादि, धन और उपदिष्ट ( मन्मानि ) मनन करने योग्य ज्ञानादि को लोग ( ऋचसे ) सेवन करने के लिये ( जुजुषन् ) प्रेमपूर्वक प्राप्त करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ मित्रा वरुणौ देवते ॥ छन्दः—१ भुरिक् पंक्तिः । २, ४ त्रिष्टुप् । ३, ५, ६, ७ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
विषय
सर्वस्नेही पुरुष
पदार्थ
पदार्थ - हे (मित्रावरुणा) = सर्वस्नेही वरणीय स्त्री-पुरुषो! (स बाधः) = अज्ञानादि बाधा वा पीड़ा से युक्त होकर (वां यज्ञं) = आप के सत्संग की मैं (नमोभिः) = विनम्र वचनों से (महयम्) = स्तुति करता हूँ और (वां हुवे) = आप दोनों की स्तुति करता हूँ। (वाम्) = आप लोगों के (नवानि) = नये-से नये (कृतानि) = सम्पादित किये (इमानि ब्रह्म) = ये नाना अन्नादि, धन और उपदिष्ट (मन्मानि) = मननीय ज्ञानादि को लोग (ऋचसे) = सेवन के लिये (जुजुषन्) = प्राप्त करें।
भावार्थ
भावार्थ- जो ज्ञानी स्त्री-पुरुष मधुरता के साथ सबसे प्रेम करते हुए ज्ञान का उपदेश करते हैं अज्ञान से पीड़ित दुःखी लोग भी उनके सत्संग में आकर उनके उपदेशों को ग्रहण करके ज्ञानी हो जाते हैं तथा अन्न-धन आदि अपने पुरुषार्थ से प्राप्त कर सुखी होकर उन ज्ञानियों के प्रशंसक हो जाते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
O Mitra and Varuna, I invoke and join your great yajna of universal grandeur with homage especially when I am faced with challenges and limitations. Your latest thoughts, visions and revelations are created, structured and gifted to us for the advancement of knowledge and wisdom in relation to the highest reality of existence.
मराठी (1)
भावार्थ
हे अध्यापक व उपदेशकांनो! मी जिज्ञासू तुमच्या यज्ञांचा सत्कारपूर्वक स्वीकार करून प्रार्थना करतो, की तुमच्या उपदेशाने मला ब्रह्मप्राप्ती व्हावी. ॥६॥
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