ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 71/ मन्त्र 2
उ॒पाया॑तं दा॒शुषे॒ मर्त्या॑य॒ रथे॑न वा॒मम॑श्विना॒ वह॑न्ता । यु॒यु॒तम॒स्मदनि॑रा॒ममी॑वां॒ दिवा॒ नक्तं॑ माध्वी॒ त्रासी॑थां नः ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒प॒ऽआया॑तम् । दा॒शुषे॑ । मर्त्या॑य । रथे॑न । वा॒मम् । अ॒श्वि॒ना॒ । वह॑न्ता । यु॒यु॒तम् । अ॒स्मत् । अनि॑राम् । अमी॑वाम् । दिवा॑ । नक्त॑म् । मा॒ध्वी॒ इति॑ । त्रासी॑थाम् । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उपायातं दाशुषे मर्त्याय रथेन वाममश्विना वहन्ता । युयुतमस्मदनिराममीवां दिवा नक्तं माध्वी त्रासीथां नः ॥
स्वर रहित पद पाठउपऽआयातम् । दाशुषे । मर्त्याय । रथेन । वामम् । अश्विना । वहन्ता । युयुतम् । अस्मत् । अनिराम् । अमीवाम् । दिवा । नक्तम् । माध्वी इति । त्रासीथाम् । नः ॥ ७.७१.२
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 71; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अश्विना) हे विद्वज्जनाः ! यूयं (रथेन वामम्) स्वकीयेनाभायुक्तेन रथेन अस्मान् (उपायातम्) प्राप्नुत अन्यच्च (मर्त्याय दाशुषे) अस्माकं मनोरथान् (वहन्ता) पूरयन्तः (अनिराम्) दरिद्रताम् (अमीवाम्) रोगान् (अस्मत्) अस्मत्तः (युयुतम्) दूरीकुरुत तथा च (माध्वी) हे मधुरवाचिनो विद्वांसः (नक्तम् दिवा) रात्रिन्दिवं (नः) अस्मान् (त्रासीथाम्) रक्षत ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अश्विना) हे विद्वज्जनों ! (रथेन वामम् उपायातं) अपने आभावाले शीघ्रगामी यानों द्वारा हमें प्राप्त होकर (मर्त्याय दाशुषे) हम यजमानों की मनःकामना (वहन्ता) पूर्ण करते हुए (अस्मत्) हमसे (अनिराम् अमीवां) दरिद्रता तथा सब प्रकार के रोगों को (युयुतं) पृथक् करो और (माध्वी) हे मधुरभाषी विद्वानों ! (नक्तं दिवा) रात्रि-दिन (नः) हमारी (त्रासीथां) सब ओर से रक्षा करो ॥२॥
भावार्थ
हे प्रजाजनों ! तुम उन विद्वानों से प्रार्थना करो कि हे भगवन् ! आप हमें प्राप्त होकर हमको वह उपाय बतलावें, जिससे हमारी दरिद्रता दूर हो हमारा शरीर नीरोग रहे, हम मधुरभाषी हों और ईर्ष्या-द्वेष से सर्वथा पृथक् रहें अर्थात् अपनी चिकित्सारूप विद्या द्वारा हमको नीरोग करके ऐसे साधन बतलावें, जिससे हम रोगी कभी न हों और पदार्थविद्या के उपदेश द्वारा हमें कला-कौशलरूप ज्ञान का उपदेश करें, जिससे हमारी दरिद्रता दूर हो। हम ऐश्वर्य्यशाली हों और साथ ही हमें आत्मज्ञान का भी उपदेश करें, जिससे हमारा आत्मा पवित्र भावों में परिणत होकर आपकी आज्ञा का सदैव पालन करनेवाला हो ॥२॥
विषय
विद्वान् स्त्री-पुरुषों, शिक्षकों के कर्तव्य।
भावार्थ
है (अश्विना ) विद्वान् स्त्री पुरुषो ! वा विद्वान् अध्यापक और आचारशिक्षक गुरुजनो ! आप लोग ( दाशुषे मर्त्याय ) अपने को आप लोगों के प्रति समर्पण कर देने वाले के हितार्थ ( उप आयातम् ) समीप आइये और ( रथेन वामम् वहन्ता ) रथ या गाड़ी आदि साधन से जिस प्रकार उत्तम धन सम्पदा लाई जाती है उसी प्रकार आप लोग ( रथेन ) उत्तम उपदेश से ( वामम् ) सुन्दर श्रवण करने योग्य ज्ञान को ( वहन्ता ) प्राप्त कराते हुए ( अस्मत् ) हमसे ( अनिराम् ) अन्नादि के दारिद्रय, ( अनिराम् ) 'इरा' अर्थात् विद्योपदेशमय वाणी के अभाव को तथा ( अमीवाम् ) रोग-दुःखजनक दशा को ( युयुतम् ) दूर करो । और ( दिवा-नक्तम् ) दिन और रात ( माध्वी ) सदा मधुर प्रसन्न चित्त रहकर वा 'मधु' अन्न जल वा ज्ञान से युक्त होकर ( नः त्रासीथाम् ) हमारी रक्षा करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते । छन्दः – १, ५ त्रिष्टुप् । २, ३, ४, ६ विराट् त्रिष्टुप् ॥ षडृचं सूक्तम् ॥
विषय
शिक्षक के कर्त्तव्य
पदार्थ
पदार्थ - हे (अश्विना) = विद्वान् स्त्री-पुरुषो! एवं गुरुजनो! आप लोग (दाशुषे मर्त्याय) = अपने को आप के प्रति समर्पण कर देनेवाले के हितार्थ (उप आयातम्) = समीप आइये और (रथेन वामम् वहन्ता) = गाड़ी आदि से जैसे उत्तम धन-सम्पदा लाई जाती है वैसे ही आप लोग (रथेन) = उत्तम उपदेश से (वामम्) = सुन्दर श्रवण योग्य ज्ञान को वहन्ता प्राप्त कराते हुए (अस्मत्) = हमसे (अनिराम्) = अन्नादि के (दारिद्र्य) = और 'इरा' अर्थात् विद्योपदेशमय वाणी के अभाव को तथा (अमीवाम्) = रोगजनक दशा को (युयुताम्) = दूर करो और (दिवानक्तम्) = दिन-रात (माध्वी) = प्रसन्नचित्त वा 'मधु' अन्न, जल वा ज्ञान से युक्त होकर (नः त्रासीथाम्) = हमारी रक्षा करो।
भावार्थ
भावार्थ- गुरुजन अपने समर्पित शिष्यों के हित के लिए ज्ञान का उपदेश करें। जिससे वे शिष्य लोग ज्ञानी होकर रोग रहित स्वस्थ तथा दारिद्र्य रहित ऐश्वर्य सम्पन्न जीवन धारण करें।
इंग्लिश (1)
Meaning
Ashvins, harbingers of a new dawn of sweetness and light of culture and prosperity, come by your chariot laden with riches of beauty and bliss for generous mortals, ward off from us sufferance and disease, and protect and promote us day and night relentlessly.
मराठी (1)
भावार्थ
हे प्रजाजनांनो! तुम्ही विद्वानांना प्रार्थना करा, की हे भगवान! तुम्ही आम्हाला असा उपाय सांगा ज्यामुळे आमची दरिद्रता दूर व्हावी. आमचे शरीर निरोगी राहावे. आम्ही मधुरभाषी व्हावे व ईर्षा, द्वेष यापासून पृथक राहावे. अर्थात, आपल्या चिकित्सारूपी विद्यांद्वारे आम्हाला निरोग करून असे साधन सांगा ज्यामुळे आम्ही कधी रोगी होता कामा नये व पदार्थविद्येच्या उपदेशाद्वारे आम्हाला कौशल्यरूपी ज्ञानाचा उपदेश करा, ज्यामुळे आमची दरिद्रता दूर व्हावी. आम्ही ऐश्वर्यवान व्हावे. त्याबरोबरच आम्हाला आत्मज्ञानाचा उपदेश करा ज्यामुळे आत्मा पवित्र भावात परिणत होऊन तुमची आज्ञा सदैव पालन करणारा बनावा. ॥२॥
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