ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 71/ मन्त्र 3
आ वां॒ रथ॑मव॒मस्यां॒ व्यु॑ष्टौ सुम्ना॒यवो॒ वृष॑णो वर्तयन्तु । स्यूम॑गभस्तिमृत॒युग्भि॒रश्वै॒राश्वि॑ना॒ वसु॑मन्तं वहेथाम् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । वा॒म् । रथ॑म् । अ॒व॒मस्या॑म् । विऽउ॑ष्टौ । सु॒म्न॒ऽयवः॑ । वृष॑णः । व॒र्त॒य॒न्तु॒ । स्यूम॑ऽगभस्तिम् । ऋ॒त॒युक्ऽभिः॑ । अश्वैः॑ । आ । अ॒श्वि॒ना॒ । वसु॑ऽमन्तम् । व॒हे॒था॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ वां रथमवमस्यां व्युष्टौ सुम्नायवो वृषणो वर्तयन्तु । स्यूमगभस्तिमृतयुग्भिरश्वैराश्विना वसुमन्तं वहेथाम् ॥
स्वर रहित पद पाठआ । वाम् । रथम् । अवमस्याम् । विऽउष्टौ । सुम्नऽयवः । वृषणः । वर्तयन्तु । स्यूमऽगभस्तिम् । ऋतयुक्ऽभिः । अश्वैः । आ । अश्विना । वसुऽमन्तम् । वहेथाम् ॥ ७.७१.३
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 71; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अश्विना) हे विद्वांसः ! भवन्तः (ऋतयुग्भिः अश्वैः) द्विविधैर्ज्ञानैः अस्मान् (आ) सम्यक्तया (वसुमन्तम्) ऐश्वर्य्ययुक्तान् (वहेथाम्) कुर्वन्तु यतो वयं (सुम्नायवः) सुखयुक्ताः सन्तः (वृषणः वर्त्तयन्तु) आनन्दमनुभवाम (वाम्) यूयं (रथम्) स्वकीयं यानं (अवमस्याम् व्युष्टौ) निर्विघ्ने मार्गे सञ्चारयत तथा च तानि यानानि (स्यूमगभस्तिम्) रश्मियुक्तानि बभूवुः ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अश्विना) हे विद्वानों ! आप (ऋतयुग्भिः अश्वैः) दो प्रकार के ज्ञानों से हमको (आ) भले प्रकार (वसुमन्तं वहेथां) ऐश्वर्य्यसम्पन्न करें, ताकि हम (सुम्नावयः) सुखपूर्वक (वृषणः वर्तयन्तु) आनन्द को अनुभव कर सकें (वां रथं) आप अपने रथ=यानों को (अवमस्यां व्युष्टौ) विघ्नरहित मार्गों में चलायें और वह सुन्दर रथ (स्यूमगभस्तिम्) ऐश्वर्य्य की रासोंवाले हों ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में यह प्रार्थना की गई है कि हे परमात्मा ! आप हमारे उपदेशकों को ऐश्वर्य्य की रासोंवाले रथ प्रदान करें अर्थात् वे सब प्रकार से सम्पत्तिसम्पन्न हों, दरिद्र न हों, ताकि वह हमको ऐहलौकिक दोनों प्रकार के सुख का उपदेश करें अर्थात् हम उनसे अभ्युदय तथा निःश्रेयस दोनों प्रकार के ज्ञान प्राप्त करके आनन्द अनुभव कर सकें ॥३॥
विषय
रथवत् गृहस्थसंचालन का आदर्श।
भावार्थ
जिस प्रकार रथ को बलवान् अश्व चलाते हैं और ( ऋत युग्भिः अश्वैः स्यूमगभस्तिं, वसुमन्तं रथं वहन्ति) ज्ञान पूर्वक लगे अश्वों से, सिली रासों वाले और धनादि सम्पन्न रथको लेजाते हैं उसी प्रकार हे (अश्विना) विद्या में व्यापक विद्वान् स्त्री पुरुषों के स्वामी जनो ! ( वां ) आप दोनों के ( रथं ) रमणीय गृहस्थोचित कर्त्तव्य तथा उपदेश आदि को ( अवमस्यां व्युष्टौ ) आगामी समीपतम प्रभात वेला में ( सुम्नायवः ) सुखाभिलाषी (वृषण: ) बलवान् पुरुष ( वर्त्तयन्तु ) सम्पादित करें । और आप दोनों अपने (स्यूम-गभस्तिम् ) सुखकारी रश्मियों या रासों से युक्त, सुप्रबद्ध ( वसुमन्तं रथं ) उत्तम बसने वाले वा वसु ब्रह्मचारियों से वा सुखैश्वर्य से युक्त इस गृहस्थाश्रम रूप रथ को ( ऋतयुग्भिः ) सत्य के बल से जुड़े हुए, ( अश्वैः ) विद्वानों की सहायता से ( वहेथाम् ) धारण करो, सन्मार्ग पर ले चलो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते । छन्दः – १, ५ त्रिष्टुप् । २, ३, ४, ६ विराट् त्रिष्टुप् ॥ षडृचं सूक्तम् ॥
विषय
आदर्श गृहस्थ
पदार्थ
पदार्थ- जैसे रथ को बलवान् अश्व चलाते हैं और (ऋतयुग्भिः अश्वैः स्यूमगभस्तिं, वसुमन्तं रथं वहन्ति) = ज्ञान- पूर्वक लगे अश्वों से, सिली रासोंवाले और धनादि- सम्पन्न रथ को ले जाते हैं वैसे ही हे (अश्विना) = विद्या में व्यापक विद्वान् स्त्री-पुरुषों के स्वामी जनो! (वां) = आप के (रथं) = गृहस्थोचित कर्त्तव्य आदि को (अवमस्यां व्युष्टौ) = आगामी प्रभात वेला में (सुम्नायवः) = सुखाभिलाषी (वृषणः) = बलवान् पुरुष (वर्त्तयन्तु) = सम्पादित करें और आप दोनों (स्यूमगभस्तिम्) = सुखकारी रश्मियों या रासों से युक्त (वसुमन्तं रथं) = बसनेवाले, वा वसु ब्रह्मचारियों वा सुखैश्वर्ययुक्त गृहस्थाश्रम-रूप रथ को (ऋतयुग्भिः) = सत्य से जुड़े हुए, (अश्वैः) = विद्वानों की सहायता से (वहेथाम्) = धारण करो।
भावार्थ
भावार्थ- गृहस्थ स्त्री पुरुष ज्ञानपूर्वक अपने गृहस्थ के समस्त कार्यों को करें और इस सुखऐश्वर्ययुक्त गृहस्थाश्रम को विद्वानों के मार्गदर्शन में धारण करें।
इंग्लिश (1)
Meaning
On the rise of the new dawn when darkness is cleared, O devout, generous, gracious and powerful pioneers of light and wisdom, turn and guide your chariot towards us. Ashvins, harbingers of light and joy, steer your chariot laden with wealth, controlled by reins of sun rays and powered by the wise dedicated to the truth of divine laws, come to us and bless all.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात ही प्रार्थना केलेली आहे, की हे परमात्मा! तू आमच्या उपदेशकांना ऐश्वर्याचा लगाम असलेला रथ प्रदान कर. अर्थात, ते सर्व प्रकारे संपन्न व्हावेत. दरिद्री नसावेत. त्यामुळे त्यांनी आम्हाला ऐहिक व पारलौकिक दोन्ही सुखांचा उपदेश करावा. आम्हाला त्यांच्याकडून अभ्युदय नि:श्रेयस या दोन्ही प्रकारच्या ज्ञानाची प्राप्ती करून आनंदाचा अनुभव घेता येईल. ॥३॥
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