ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 71/ मन्त्र 4
यो वां॒ रथो॑ नृपती॒ अस्ति॑ वो॒ळ्हा त्रि॑वन्धु॒रो वसु॑माँ उ॒स्रया॑मा । आ न॑ ए॒ना ना॑स॒त्योप॑ यातम॒भि यद्वां॑ वि॒श्वप्स्न्यो॒ जिगा॑ति ॥
स्वर सहित पद पाठयः । वा॒म् । रथः॑ । नृ॒प॒ती॒ इति॑ नृऽपती । अस्ति॑ । वो॒ळ्हा । त्रि॒ऽव॒न्धु॒रः । वसु॑ऽमान् । उ॒स्रऽया॑मा । आ । नः॒ । ए॒ना । ना॒स॒त्या॒ । उप॑ । या॒त॒म् । अ॒भि । यत् । वा॒म् । वि॒श्वऽप्स्न्यः॑ । जिगा॑ति ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो वां रथो नृपती अस्ति वोळ्हा त्रिवन्धुरो वसुमाँ उस्रयामा । आ न एना नासत्योप यातमभि यद्वां विश्वप्स्न्यो जिगाति ॥
स्वर रहित पद पाठयः । वाम् । रथः । नृपती इति नृऽपती । अस्ति । वोळ्हा । त्रिऽवन्धुरः । वसुऽमान् । उस्रऽयामा । आ । नः । एना । नासत्या । उप । यातम् । अभि । यत् । वाम् । विश्वऽप्स्न्यः । जिगाति ॥ ७.७१.४
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 71; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(नासत्या) हे सत्यवादिनो विद्वांसः ! (वाम्) यूयं (नः) अस्मान् (एना) एतेन मार्गेण (उपयातम्) प्राप्नुत (यः) यो मार्गः (विश्वप्स्न्यः) परमात्मना (जिगाति) उपगीतोऽस्ति। (नृपती) हे मनुष्याणां पतयो विद्वज्जनाः (वाम्) युष्माकं (यत् रथः) यो रथः युष्माकं (आ) सम्यक् (वोळ्हा) वाहकोऽस्ति सः (त्रिवन्धुरः) बन्धनत्रययुक्तः (वसुमान्) ऐश्वर्य्यवान् (उस्रयामा) नभोगमनशीलश्च (अस्तु) भूयात् ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अश्विना) हे सत्यवादी विद्वानों ! (वां) आप (नः) हमको (एना) उस मार्ग द्वारा (उपयातं) प्राप्त हों, (यः) जो (विश्वप्स्न्यः) परमात्मा ने (जिगाति) कथन किया है। (नृपती) हे मनुष्यों के पति विद्वानों ! (वां) आपका (यत्) जो (रथः) रथ (वोळ्हा आ) तुम्हें भले प्रकार लानेवाला है, वह (त्रिवन्धुरः) तीन बन्धनोंवाला (वसुमान्) ऐश्वर्य्यवाला और (उस्रयामा) आकाशमार्ग में चलनेवाला (अस्तु) हो ॥४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में यह प्रार्थना की गई है कि हे विद्वज्जनों ! आप परमात्मा के कथन किये हुए मार्ग द्वारा हमें प्राप्त हों अर्थात् परमात्मा ने उपदेशकों के लिये कर्तव्य कथन किया है, उसका आप पालन करें या यों कहो कि आप हमें परमात्मपरायण करके हमारे जीवन को उच्च बनावें और हमें वेदों का उपदेश सुनावें, जो परमात्मा ने हमारे लिये प्रदान किया है ॥४॥
विषय
रथ की पुरुष से तुलना।
भावार्थ
हे (नृपती ) मनुष्य पति पत्नी ! विवाहित स्त्री पुरुषो ! जिस प्रकार ( रथः वोढा, त्रि-वन्धुरः) रथ अपने में मनुष्यों को उठाकर लेजाने से 'वोढा' और तीन दण्डों से बने पीढ़े से युक्त होता है, उसी प्रकार ( यः ) जो पुरुष ( वां ) आप दोनों में से ( रथः ) रम्य स्वभाव का वा स्थिर होकर ( वोढा ) गृहस्थ के भार सहन करने वाला, विवाह करने हारा ( त्रि-वन्धुरः ) तीन ऋणों से बद्ध, (वसु-मान्) ऐश्वर्यवान्, (उस्त्रयामा ) सूर्यवत् तेजस्वी होकर जाने हारा है और ( यत् वां ) जो तुम दोनों में से ( विश्व-प्स्न्यः ) विशेष उत्तम रूपवान् होकर (अधि जिगाति) प्राप्त होता है हे ( नासत्या) कभी असत्य धारण न करने हारे स्त्री पुरुषो ! ( एना ) उस व्यक्ति के बल से ही (नः आ उपयातम् ) हमें प्राप्त होओ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते । छन्दः – १, ५ त्रिष्टुप् । २, ३, ४, ६ विराट् त्रिष्टुप् ॥ षडृचं सूक्तम् ॥
विषय
गृहस्थ के कर्त्तव्य
पदार्थ
पदार्थ - हे (नृपती) = मनुष्य पति पत्नी! विवाहित स्त्री-पुरुषो! जैसे (रथः वोढा, त्रिवन्धुरः) = रथ मनुष्यों को उठाकर ले जाने से 'वोढा' और तीन दण्डों से बने पीढ़े से युक्त होता है, वैसे ही (यः) = जो पुरुष (वां) = आप दोनों में से (रथः) = रम्यस्वभाव का, वा स्थिर होकर (वोढा) = गृहस्थभार सहनेवाला, (त्रि- वन्धुरः) = तीन ऋणों से बद्ध, (वसुमान्) = ऐश्वर्यवान्, (उस्त्रयामा) = सूर्यवत् तेजस्वी होकर जाने हारा है और (यत् वां) = जो तुम दोनों में से (विश्व-स्न्यः) = विशेष रूपवान् होकर (अधि जिगाति) = प्राप्त होता है, हे (नासत्या) = असत्य धारण न करने हारे स्त्री-पुरुषो ! (एना) = उस व्यक्ति के बल से ही (नः आ उपयातम्) = हमें प्राप्त होओ।
भावार्थ
भावार्थ - विवाहित स्त्री-पुरुष गृहस्थ में स्थित होकर गृहस्थ के उत्तरदायित्व को निभाते हुए असत्य आचरण से सदैव दूर रहकर ऐश्वर्यशाली बनें।
इंग्लिश (1)
Meaning
Ashvins, protectors of humanity dedicated to the truth and law of nature and Divinity, may your chariot laden with wealth and wisdom, inbuilt with three-fold bonds of physical, mental and spiritual discipline, going by the light of sun, transport you hither to us. Come by this chariot to us following the paths which the lord of universal vision and eternal wisdom reveals to you.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात ही प्रार्थना आहे, की हे विद्वानांनो! परमात्म्याने कथन केलेल्या मार्गाद्वारे आम्ही तुम्हाला प्राप्त करावे. अर्थात, परमात्म्याने उपदेशकांसाठी कर्तव्य सांगितलेले आहे. त्याचे तुम्ही पालन करा किंवा तुम्ही आम्हाला परमात्मपरायण बनवून आमच्या जीवनाला उच्च बनवा. परमेश्वराने आमच्यासाठी प्रदान केलेला वेदाचा उपदेश आम्हाला ऐकवा ॥४॥
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