ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 76/ मन्त्र 4
त इद्दे॒वानां॑ सध॒माद॑ आसन्नृ॒तावा॑नः क॒वय॑: पू॒र्व्यास॑: । गू॒ळ्हं ज्योति॑: पि॒तरो॒ अन्व॑विन्दन्त्स॒त्यम॑न्त्रा अजनयन्नु॒षास॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठते । इत् । दे॒वाना॑म् । स॒ध॒ऽमादः॑ । आ॒स॒न् । ऋ॒तऽवा॑नः । क॒वयः॑ । पू॒र्व्यासः॑ । गू॒ळ्हम् । ज्योतिः॑ । पि॒तरः॑ । अनु॑ । अ॒वि॒न्द॒न् । स॒त्यऽम॑न्त्राः । अ॒ज॒न॒य॒न् । उ॒षस॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
त इद्देवानां सधमाद आसन्नृतावानः कवय: पूर्व्यास: । गूळ्हं ज्योति: पितरो अन्वविन्दन्त्सत्यमन्त्रा अजनयन्नुषासम् ॥
स्वर रहित पद पाठते । इत् । देवानाम् । सधऽमादः । आसन् । ऋतऽवानः । कवयः । पूर्व्यासः । गूळ्हम् । ज्योतिः । पितरः । अनु । अविन्दन् । सत्यऽमन्त्राः । अजनयन् । उषसम् ॥ ७.७६.४
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 76; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
इत आरभ्य ब्रह्मवेतृ विदुषां कर्त्तव्यं वर्ण्यते।
पदार्थः
(देवानाम् सधमादः) विदुषां समुदायात्मके यज्ञे (ते इत्) त एव (ऋतावानः) सत्यवादिनः (कवयः) विचक्षणाः (पूर्व्यासः) पुरातनाः (आसन्) अमंसत, ये (गूळ्हम्) गहनं ज्योतिःस्वरूपं परमात्मानं (अनु अविन्दन्) साधु अज्ञासिषुः (सत्यमन्त्राः) ते सत्योपदेशकर्तारः (पितरः) पितरो वृद्धाः (उषसम्) परमात्मप्रकाशं (अजनयन्) प्रादुरबीभवन् ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
अब ब्रह्मवेत्ता विद्वानों का कर्तव्य कथन करते हैं।
पदार्थ
(देवानां सधमादः) विद्वानों के समुदायरूप यज्ञ में (ते इत्) वे ही (ऋतावानः) सत्यवादी (कवयः) कवि (पूर्व्यासः) प्राचीन (आसन्) माने जाते थे, जो (गूळ्हम्) गहन ज्योतिप्रकाश परमात्मा को (अनु अविन्दन्) भले प्रकार जानते थे, (सत्यमन्त्राः) वे सत्य का उपदेश करनेवाले (पितरः) पितर (उषसं) परमात्मप्रकाश को (अजनयन्) प्रकट करते थे ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यों ! विद्वानों के यज्ञ में वही सत्यवादी, वही कवि, वही प्राचीन उपदेष्टा और वही पितर माने जाते हैं, जो परमात्मा के गुप्तभाव को प्रकाशित करते हैं अर्थात् विद्वत्ता तथा कवित्व उन्हीं लोगों का सफल होता है, जो परमात्मा के गुणों को कीर्तन द्वारा सर्वसाधारण तक पहुँचाते हैं ॥४॥
विषय
सौभाग्यवान् पुरुषों का लक्षण ।
भावार्थ
जो ( ऋतावानः ) सत्य ज्ञान और वेद, तप आदि का सेवन करने वाले ( पूर्व्यासः कवयः ) पूर्व के विद्वानों से शिक्षित, क्रान्तदर्शी ज्ञानी पुरुष हैं ( ते इत् ) वे ही ( देवानां ) विद्वान् पुरुषों के ( सधमाद: आसन् ) साथ आनन्द, सुख प्राप्त करने वाले होते हैं। वे ही ( पितरः ) माता पितावत् पालक बनकर ( गूढं ज्योतिः ) अपने भीतर छिपे ज्योतिर्मय तेज को ( अनु अविन्दन् ) प्राप्त करते हैं । जो ( सत्य-मन्त्राः ) सत्य, मननशील होकर ( उषासम् अजनयन् ) कान्तिमती, ज्योतिष्मती, अज्ञान और पाप को दूर करने वाली विशोका प्रज्ञा को प्रकट करते हैं । ( २ ) उसी प्रकार सत्यज्ञानी, ऐश्वर्यवान्, विद्वान् सहयोग का सुख पाते हैं जो माता पिता होकर सन्तान वा वीर्यरूप गूढ ज्योति को प्राप्त करते हैं, सत्यमन्त्र होकर ( उषासं अजनयन् ) कामनायुक्त वधू को प्राप्त कर उससे उत्तम सन्तान उत्पन्न करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ छन्दः—१ त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ३, ४, ५, ६, ७ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
विषय
ज्ञानी पुरुष
पदार्थ
पदार्थ- जो (ऋतावान:) = सत्य, वेद, तप आदि का सेवन करनेवाले (पूर्व्यासः कवयः) = पूर्व के विद्वानों से शिक्षित, क्रान्तदर्शी पुरुष हैं (ते इत्) = वे ही (देवानां) = विद्वान् पुरुषों के (सधमादः आसन्) = साथ आनन्द प्राप्त करनेवाले होते हैं। वे ही (पितरः) = माता-पितावत् पालक बनकर (गूढं ज्योतिः) = भीतर छिपे तेज को (अनु अविन्दन्) = प्राप्त करते हैं। जो (सत्य-मन्त्राः) = सत्य, मननशील होकर (उषासम् अजनयन्) = अज्ञान और पाप को दूर करनेवाली 'विशोका' प्रज्ञा को प्रकट करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- श्रेष्ठ पुरुषों को योग्य है कि वे सत्य ज्ञानी तपस्वी वेद के विद्वानों के सान्निध्य में रहकर अपने अन्दर के तेज को प्राप्त करके सत्य का चिन्तन करते हुए अज्ञान की नाशक 'विशोका' नाम की बुद्धि को प्राप्त करें।
इंग्लिश (1)
Meaning
They alone share communion and union with divinities in the house of meditative yajna who, dedicated to divine truth and law, are veteran visionaries and creative poets, who are sagely father figures and realise the mysterious sublimity of light divine, and who, having realised and mastered the activating mantra, recreate and reveal the light of divinity in spiritual vision.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे माणसांनो! विद्वानांच्या यज्ञात जे परमात्म्याचे रहस्य प्रकट करतात तेच सत्यवादी, तेच कवी, तेच प्राचीन उपदेष्टे व तेच पितर मानले जातात. जे परमेश्वराचे गुण, कीर्तनाद्वारे सर्व सामान्यांपर्यंत पोचवितात त्यांची विद्वत्ता व कवित्व सफल होते ॥४॥
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