ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 79/ मन्त्र 5
दे॒वंदे॑वं॒ राध॑से चो॒दय॑न्त्यस्म॒द्र्य॑क्सू॒नृता॑ ई॒रय॑न्ती । व्यु॒च्छन्ती॑ नः स॒नये॒ धियो॑ धा यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥
स्वर सहित पद पाठदे॒वम्ऽदे॑वम् । राध॑से । चो॒दय॑न्ती । अ॒स्म॒द्र्य॑क् । सू॒नृताः॑ । ई॒रय॑न्ती । वि॒ऽउ॒च्छन्ती॑ । नः॒ । स॒नये॑ । धियः॑ । धाः॒ । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
देवंदेवं राधसे चोदयन्त्यस्मद्र्यक्सूनृता ईरयन्ती । व्युच्छन्ती नः सनये धियो धा यूयं पात स्वस्तिभि: सदा नः ॥
स्वर रहित पद पाठदेवम्ऽदेवम् । राधसे । चोदयन्ती । अस्मद्र्यक् । सूनृताः । ईरयन्ती । विऽउच्छन्ती । नः । सनये । धियः । धाः । यूयम् । पात । स्वस्तिऽभिः । सदा । नः ॥ ७.७९.५
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 79; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
सम्प्रति धनप्राप्तये ईश्वरः प्रार्थ्यते।
पदार्थः
हे परमात्मन् ! (देवम् देवम्) सर्वान्स्तोतॄन् (राधसे) धनप्राप्तये (चोदयन्ती) प्रेरयतु (अस्मद्र्यक्) अस्मदभिमुखं (सूनृताः) उत्तमवेदवाचः प्रति (व्युच्छन्ती) उत्साहयतु तथा च (नः) अस्माकं (धियः) बुद्धीः (सनये) दानाय (धाः) धारयन् (ईरयन्ती) ताः प्रति प्रेरयतु, यतो वयं प्रदाने समर्था भवेम (यूयम्) भवान् (स्वस्तिभिः) कल्याणीभिर्वाग्भिः (नः) अस्मान् (सदा) निरन्तरं (पात) रक्षतु=पुनातु ॥५॥ इत्येकोनाशीतितमं सूक्तं षड्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
विषय
अब धनप्राप्ति की ईश्वर से प्रार्थना करते हैं।
पदार्थ
हे परमात्मन् ! (देवं देवं) सब श्रोताओं को (राधसे) धनप्राप्ति के लिये (चोदयन्ती) प्रेरित करें, (अस्मद्र्यक्) हम यजमानों को (सूनृताः) उत्तम वेदवाणियों की ओर (व्युच्छन्ती) उत्साहित करें और (नः) हमारी (धियः) बुद्धियों को (सनये) दान के लिये (धाः) धारण करते हुए (ईरयन्ती) उस ओर प्रेरें, जिससे हम दान में समर्थ हों और (यूयं) आप (स्वस्तिभिः) कल्याणरूप वाणियों से (नः) हमको (सदा) सदा (पात) पवित्र करें ॥५॥
भावार्थ
हे दिव्यशक्तिसम्पन्न परमात्मन् ! आप अब स्तोताओं को धन-धान्यादि से भले प्रकार समृद्ध करें, ताकि वह उत्तमोत्तम वेदवाणियों द्वारा आपका सदा स्तवन करते हुए हमारी बुद्धियों को आपकी ओर प्रेरित करे और हे भगवन् ! हमें दानशील बनावें, ताकि हम उत्साहित होकर स्तोता आदि अधिकारियों को दान देनें में समर्थ हों और आप हमें सदा के लिए पवित्र करें, यह प्रार्थना है ॥५॥ यह ७९वाँ सूक्त और २६वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
भावार्थ
हे विदुषि ! सौभाग्यवति ! तू ( देवं-देवं ) प्रत्येक विद्वान् पुरुष को ( राधसे ) प्रदान योग्य धन को ( चोदयन्ती ) स्वीकार करने की प्रार्थना करती हुई और ( अस्मद्रयक् ) हमारे प्रति ( सूनृता ) उत्तम वचन देती, कहती हुई, (वि उच्छन्ती ) विशेष गुणों को प्रकट करती पुरुष ( नः सनये ) हमें दान देने के लिये ( धियः धाः ) नाना लौकिक वैदिक कर्म और शुभ संकल्प किया कर । हे विद्वान् स्त्री पुरुषो ! ( यूयं नः स्वस्तिभिः सदा पात ) आप लोग हमारी नाना उत्तम २ उपायों से सदा रक्षा किया करो । इति षड्विंशोवर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ उषा देवता॥ छन्दः—१, ४ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ३ विराट् त्रिष्टुप् । ५ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
विषय
दानशील स्त्री
पदार्थ
पदार्थ- हे विदुषि! तू (देवं देवं) = प्रत्येक विद्वान् पुरुष को (राधसे) = दान-योग्य धन (चोदयन्ती) = स्वीकार करने की प्रार्थना करती हुई और (अस्मद्र्यक्) = हमारे प्रति (सूनृता) = उत्तम वचन कहती हुई, (वि उच्छन्ती) = विशेष गुण प्रकट करती हुई (नः सनये) = हमें दान देने के लिये (धियः धाः) = लौकिक वैदिक कर्म और शुभ संकल्प कर। हे विद्वान् स्त्री पुरुषो! (यूयं नः स्वस्तिभिः सदा पात) = आप सदा उत्तम साधनों से हमारा पालन करें।
भावार्थ
भावार्थ- विदुषी स्त्री अपने घर पर विद्वानों को दान स्वीकार करने की प्रार्थना किया करे और मधुरता के साथ लोक व्यवहार को वेद के अनुसार करने का शुभ संकल्प करे।
इंग्लिश (1)
Meaning
Inspiring every noble person for the attainment of wealth and competence for the good life, radiating the light of divinity and holy intelligence for us, enlightening our thought and will with the original message of divinity for advancement in generosity, O lights of the dawn, protect and promote us with all modes and means of success for peace, progress and the good life all ways all time.
मराठी (1)
भावार्थ
हे दिव्यशक्तीसंपन्न भगवान! तू सर्व प्रशंसकांना धनधान्याने परिपूर्ण कर. त्यामुळे त्यांना उत्तमोत्तम वेदवाणीद्वारे आमच्या बुद्धीला तुझे स्तवन करण्यासाठी प्रेरित कर. हे भगवान! तू आम्हाला दानशील बनव, त्यामुळे आम्ही उत्साहित होऊन स्तोता इत्यादी लोकांना दान देण्यास समर्थ व्हावे. तू आम्हाला सदैव पवित्र करावे, हीच प्रार्थना आहे. ॥५॥
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