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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 84 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 84/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्रावरुणौ छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    कृ॒तं नो॑ य॒ज्ञं वि॒दथे॑षु॒ चारुं॑ कृ॒तं ब्रह्मा॑णि सू॒रिषु॑ प्रश॒स्ता । उपो॑ र॒यिर्दे॒वजू॑तो न एतु॒ प्र ण॑: स्पा॒र्हाभि॑रू॒तिभि॑स्तिरेतम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कृ॒तम् । नः॒ । य॒ज्ञम् । वि॒दथे॑षु । चारु॑म् । कृ॒तम् । ब्रह्मा॑णि । सू॒रिषु॑ । प्र॒ऽश॒स्ता । उपो॒ इति॑ । र॒यिः । दे॒वऽजू॑तः । नः॒ । ए॒तु॒ । प्र । नः॒ । स्पा॒र्हाभिः॑ । ऊ॒तिऽभिः॑ । ति॒रे॒त॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कृतं नो यज्ञं विदथेषु चारुं कृतं ब्रह्माणि सूरिषु प्रशस्ता । उपो रयिर्देवजूतो न एतु प्र ण: स्पार्हाभिरूतिभिस्तिरेतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कृतम् । नः । यज्ञम् । विदथेषु । चारुम् । कृतम् । ब्रह्माणि । सूरिषु । प्रऽशस्ता । उपो इति । रयिः । देवऽजूतः । नः । एतु । प्र । नः । स्पार्हाभिः । ऊतिऽभिः । तिरेतम् ॥ ७.८४.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 84; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 6; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    भो नानाविधविद्यावेत्तारः ! (नः) अस्माकं (यज्ञम्) क्रतुम् (विदथेषु) अस्मद्यज्ञशालायां (चारुम्, कृतम्) शोभनं विधत्त=सफलं कुरुत (ब्रह्माणि) वैदिकस्तोत्राणि (सूरिषु) ज्ञातिषु मध्ये (प्रशस्ता, कृतम्) प्रशंसनीयं कुरुत (नः) अस्माभिः (देवजूतः) युष्मत्कर्तृकाभिरक्षया (उपो, एतु, रयिः) सुस्थिरं पुष्कलं धनं प्राप्यताम् (नः) अस्मान् (प्र) नानाविधाभिः (स्पार्हाभिः) स्वाभिलषिताभिः (ऊतिभिः) रक्षाभिः (तिरेतम्) समुन्नमयत ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे विद्वान् राजपुरुषो ! (नः) हमारे (यज्ञं) यज्ञ को (विदथेषु) हमारे गृहों में (चारुं, कृतं) सुन्दर बनायें, (ब्रह्माणि) वैदिकस्तोत्रों को (सूरिषु) शूरवीरों में (प्रशस्ता, कृतं) प्रशंसनीय बनाओ, (नः) हमारे (देवजूतः) आपकी रक्षा से (उपो, एतु, रयिः) उत्तमोत्तम पुष्कल धन प्राप्त हो और (नः) हमको (प्र) सर्व प्रकार की (स्पार्हाभिः) अभिलषित (ऊतिभिः) रक्षाओं से (तिरेतम्) उन्नत करो ॥३॥

    भावार्थ

    परमात्मा आज्ञा देते हैं कि हे न्यायाधीश तथा सेनाधीश राजपुरुषो ! तुम प्रजाजनों को प्राप्त होकर उनके घरों को यज्ञों द्वारा सुशोभित करो और शूरवीरों को वैदिक शिक्षा दो, ताकि वे वेदवाणीरूप ब्रह्मस्तोत्रों का प्रजा में भलीभाँति प्रचार करें और राजा तथा प्रजा दोनों ऐश्वर्य्ययुक्त पदार्थों से भरपूर हों और प्रजाजन भी उन विद्वानों से प्रार्थना करें कि हे भगवन् ! आपकी रक्षा से हमको पुष्कल धन प्राप्त हो और हम आपकी रक्षा में रहकर मनोऽभिलषित उन्नति करें ॥३॥

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    विषय

    उत्तम शासकों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे विद्वान्, ऐश्वर्यवान्, श्रेष्ठ और दुःखादि वारण करने वाले जनो ! आप दोनों (नः विदथेषु ) हमारे गृहों में (चारुं यज्ञं कृतं ) उत्तम यज्ञ सम्पादन करो। और ( सूरिषु ) विद्वानों के निमित्त ( प्रशस्ता ब्रह्माणि कृतम् ) उत्तम २ धन प्रदान करो । ( नः ) हमें ( देवजूतः रयिः ) विद्वानों से उपदेश किया और उनके सेवन योग्य धनैश्वर्यं ( नः उपो एतु ) हमें सदा प्राप्त हो। आप दोनों ( स्पार्हाभिः ) चाहने योग्य उत्तम २ रक्षाओं द्वारा ( प्र तिरेतम् ) बढ़ाओ ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषि: ॥ इन्द्रावरुणौ देवते ॥ छन्दः – १, २, ४, ५ निचृत् त्रिष्टुप् । ३ त्रिष्टुप् ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    यज्ञों का सम्पादन

    पदार्थ

    पदार्थ- हे विद्वान्, श्रेष्ठ और दुःख निवारक जनो! आप दोनों (नः विदथेषु) = हमारे गृहों में (चारुं यज्ञं कृतं) = उत्तम यज्ञ सम्पादन करो और (सूरिषु) = विद्वानों को (प्रशस्ता ब्रह्माणि कृतम्) = उत्तम धन दो। (न:) = हमें (देवजूतः रयि:) = विद्वानों से उपदेश और सेवन योग्य ऐश्वर्य (नः उपो एतु) = प्राप्त हो। आप दोनों (स्पार्हाभिः) = चाहने योग्य उत्तम रक्षाओं द्वारा (प्र तिरेतम्) = हमें बढ़ाओ।

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा को योग्य है कि वह राज्य में विद्वानों की नियुक्ति करे जो प्रजाओं के मध्य जाकर उनके घरों में उत्तम यज्ञों का सम्पादन कराके तथा ज्ञान का उपदेश करके प्रजाओं को पुरुषार्थी एवं वीर बनने की प्रेरणा करे।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra-Varuna, pray raise our yajnic acts in the business of life to beauty and grace. May you vest our songs of adoration and gratitude with love and faith among the wise and brave of the community. May wealth, honour and excellence of life inspired by divinities come to us. May you, Indra-Varuna, help us cross the seas of life with cherished means of protection and progress.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा आज्ञा करतो, की हे न्यायाधीश व सेनाधीश राजपुरुषांनो! तुम्ही प्रजेच्या घरांना यज्ञाद्वारे सुशोभित करा व शूरवीरांना वैदिक शिक्षण द्या. त्यामुळे ते वेदवाणीरूपी ब्रह्मस्तोत्रांचा प्रजेमध्ये चांगल्या प्रकारे प्रचार करतील व राजा आणि प्रजा दोघेही ऐश्वर्ययुक्त पदार्थांनी युक्त व्हावेत. प्रजेनेही त्या विद्वानांची प्रार्थना करावी. हे भगवान तुमच्या रक्षणामुळे आम्हाला पुष्कळ धन प्राप्त व्हावे व तुमच्या संरक्षणात राहून आम्ही मनोवांच्छित उन्नती करावी. ॥३॥

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