ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 84/ मन्त्र 4
ऋषिः - वसिष्ठः
देवता - इन्द्रावरुणौ
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
अ॒स्मे इ॑न्द्रावरुणा वि॒श्ववा॑रं र॒यिं ध॑त्तं॒ वसु॑मन्तं पुरु॒क्षुम् । प्र य आ॑दि॒त्यो अनृ॑ता मि॒नात्यमि॑ता॒ शूरो॑ दयते॒ वसू॑नि ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्मे इति॑ । इ॒न्द्रा॒व॒रु॒णा॒ । वि॒श्वऽवा॑रम् । र॒यिम् । ध॒त्त॒म् । वसु॑ऽमन्तम् । पु॒रु॒ऽक्षुम् । प्र । यः । आ॒दि॒त्यः । अनृ॑ता । मि॒नाति॑ । अमि॑ता । शूरः॑ । द॒य॒ते॒ । वसू॑नि ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्मे इन्द्रावरुणा विश्ववारं रयिं धत्तं वसुमन्तं पुरुक्षुम् । प्र य आदित्यो अनृता मिनात्यमिता शूरो दयते वसूनि ॥
स्वर रहित पद पाठअस्मे इति । इन्द्रावरुणा । विश्वऽवारम् । रयिम् । धत्तम् । वसुऽमन्तम् । पुरुऽक्षुम् । प्र । यः । आदित्यः । अनृता । मिनाति । अमिता । शूरः । दयते । वसूनि ॥ ७.८४.४
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 84; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्द्रावरुणा) इन्द्रः परमैश्वर्यसम्पन्नः तथा वरुणः सर्वेषामुपास्यः परमात्मा (विश्ववारम्) जगत्सम्भजनीयः (वसुमन्तम्) विविधरत्नसम्पन्नं (रयिम्, धत्तम्) सकलसम्पदं दधानः (पुरुक्षुम्) बहुविधान्नयुक्तः तथा (यः) यः (प्र) सम्यक् (आदित्यः) अज्ञानध्वंसकश्चास्ति सः (अनृता, मिनाति) असत्यवादिनो दण्डयति, तथा (शूरः) शूरान् (अमिता, वसूनि, दयते) अपरिमितधनवतः करोति (अस्मे) सद्यमस्मानापि तथाविधसम्पत्तिसमृद्धान् करोतु ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्रावरुणा) इन्द्र=परमैश्वर्य्ययुक्त तथा वरुण=सब का उपास्यदेव परमात्मा (विश्ववारं) सबको रुचिकर (वसुमन्तं) सब प्रकार के धनों से युक्त (रयिं, धत्तं) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्य को धारण करनेवाला (पुरुक्षुं) नाना प्रकार के अन्नों से युक्त और (यः) जो (प्र) भले प्रकार (आदित्यः) अज्ञान का नाश करनेवाला है, वह (अनृता, मिनाति) असत्यवादियों को दण्ड देता और (शूरः) शूरवीरों को (आमिता, वसूनि, दयते) यथेष्ट धन देता है, (अस्मे) कृपा करके हमें भी ऐश्वर्य्ययुक्त करें ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यों ! तुम सब प्रकार के ऐश्वर्य्य तथा धन की याचना उसी परमात्मा से करो, क्योंकि वही परमैश्वर्य्ययुक्त, नानाप्रकार के अन्नरूप धनों का स्वामी और वही सब संसार को यथाभाग देनेवाला है। वह अनृतवादियों को दण्ड देता और धर्मात्मा शूरवीरों को यथेष्ट धन का स्वामी बनाता है, इसलिए उचित है कि सब प्रजाजन सत्यपरायण होकर परमात्मा से ही धन की प्रार्थना करें ॥४॥
विषय
उत्तम शासकों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( इन्द्रा वरुणा ) हे ऐश्वर्यवन् ! हे वरण करने योग्य ! आप दोनों ( अस्मे ) हमें ( पुरु-क्षुम् ) बहुत से अन्नसम्पदा से युक्त और सुवर्णादि ऐश्वर्य से युक्त ( विश्ववारं ) सब से वरने योग्य सब कष्टों प्रदान करो । ( यः ) जो ( आदित्यः ) सूर्य के समान तेजस्वी और 'अदिति' अखण्ड शासन नीति में कुशल और 'अदिति' भूमिका पुत्रवत् प्रिय वा शासक होकर (अनृता ) प्रजा के 'ऋत' अर्थात् वेद से विपरीत और असत्य व्यवहारों को ( प्र मिनाति ) नष्ट करता है वह ( शूरः ) शूरवीर पुरुष ( अमिता वसूनि दयते ) अमित धन-सम्पत्ति देता और उसकी रक्षा करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषि: ॥ इन्द्रावरुणौ देवते ॥ छन्दः – १, २, ४, ५ निचृत् त्रिष्टुप् । ३ त्रिष्टुप् ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
विषय
अखण्ड शासन-नीति
पदार्थ
पदार्थ - (इन्द्रा-वरुणा) = हे ऐश्वर्यवन्! हे वरणीय! आप दोनों (अस्मे) = हमें (पुरु-क्षम् वसुमन्तं) = बहुत अन्नसम्पदा और सुवर्णादि से युक्त, (विश्ववारं) = सबसे वरणीय (रयिं) = ऐश्वर्य (धत्तं) = दो। (यः) = जो (आदित्यः) = सूर्य-समान तेजस्वी और 'अदिति' अखण्ड शासन-नीति में कुशल और 'अदिति' भूमि का पुत्रवत् प्रिय वा शासक होकर (अनृता) = प्रजा के असत्य व्यवहारों को (प्र मिनाति) = नष्ट करता है वह (शूरः) = वीर पुरुष अमिता (वसूनि दयते) = अमित धन देता है।
भावार्थ
भावार्थ- राजा को योग्य है वह अपनी अखण्ड शासन नीति के द्वारा प्रजाओं के असत्य व्यवहारों को नष्ट करके उन्हें राष्ट्र भक्त, पुरुषार्थी तथा वीर बनने की प्रेरणा देकर पुत्रवत् प्रजा का पालन करे।
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra-Varuna, pray bear and bring for all of us wealth, honour and excellence of universal order in plenty, full of the world’s riches. The lord of light that frustrates and destroys untruth is the lord of power and gives boundless forms of wealth, joy and peaceful settlement on earth.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे माणसांनो! तुम्ही सर्व प्रकारचे ऐश्वर्य व धन यांची याचना परमेश्वरालाच करा. कारण तोच ऐश्वर्ययुक्त विविध प्रकारच्या अन्नरूपी धनाचा स्वामी व तोच सर्व जगाला यथायोग्य विभागणारा आहे. तो अनृतवादी लोकांना दंड देतो व धर्मात्मा शूरवीरांना यथेष्ट धनाचा स्वामी बनवितो. त्यासाठी सर्व प्रजेने सत्यवादी बनून परमेश्वरालाच धनाची प्रार्थना करावी. ॥४॥
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