ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 92/ मन्त्र 3
प्र याभि॒र्यासि॑ दा॒श्वांस॒मच्छा॑ नि॒युद्भि॑र्वायवि॒ष्टये॑ दुरो॒णे । नि नो॑ र॒यिं सु॒भोज॑सं युवस्व॒ नि वी॒रं गव्य॒मश्व्यं॑ च॒ राध॑: ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । याभिः॑ । यासि॑ । दा॒श्वांस॑म् । अच्छ॑ । नि॒युत्ऽभिः॑ । वा॒यो॒ इति॑ । इ॒ष्टये॑ । दु॒रो॒णे । नि । नः॒ । र॒यिम् । सु॒ऽभोज॑सम् । यु॒व॒स्व॒ । नि । वी॒रम् । गव्य॑म् । अश्व्य॑म् । च॒ । राधः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र याभिर्यासि दाश्वांसमच्छा नियुद्भिर्वायविष्टये दुरोणे । नि नो रयिं सुभोजसं युवस्व नि वीरं गव्यमश्व्यं च राध: ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । याभिः । यासि । दाश्वांसम् । अच्छ । नियुत्ऽभिः । वायो इति । इष्टये । दुरोणे । नि । नः । रयिम् । सुऽभोजसम् । युवस्व । नि । वीरम् । गव्यम् । अश्व्यम् । च । राधः ॥ ७.९२.३
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 92; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वायो) हे ज्ञानयोगिन् ! (इष्टये) यज्ञाय (दुरोणे) यज्ञशालायां (नियुद्भिः) याज्ञिकैराहूतः (यासि) तत्र गच्छ गत्वा च (वीरम्) वीरपुरुषं (गव्यम्) गोसङ्घम् (अश्व्यम्) अश्वसङ्घं च (च) च पुनः (राधः) अन्नादिपदार्थं (युवस्व) देहि (सुभोजसम्) सुष्ठुभोज्यपदार्थं (रयिम्) धनानि च देहि ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वायो) हे ज्ञानयोगी विद्वन् ! (इष्टये) यज्ञ के लिए (दुरोणे) यज्ञमण्डपों में जाकर (नियुद्भिः) याज्ञिक लोगों द्वारा आह्वान किये हुए आप (यासि) जाकर प्राप्त होओ और वहाँ जाकर (वीरं) वीरतायुक्त पुरुष (गव्यं) गौऐं (अश्व्यं) घोड़े (च) और (राधः) धन को (युवस्व) दें और (सुभोजसम्) सुन्दर-सुन्दर भोजन (रयिं) धनादि पदार्थ दें ॥३॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि यजमानों से आह्वान किये हुए विद्वान् लोग यज्ञमण्डपों में जाकर जनता को गौऐं, घोड़े और धनादि ऐश्वर्यों के उत्पन्न करने का उपदेश करें ॥३॥
विषय
विवेकी वीर जनों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे (वायो ) ज्ञानवन् ! विद्वन् ! बलवन् ! (याभिः नियुद्भिः) जिन अश्वादि सेनाओं सहित ( दुरोणे ) गृहवत् राष्ट्र में विद्यमान ( दाश्वां-सम् ) कर आदि देने वाले प्रजाजन को ( अच्छ प्र यासि ) भली प्रकार प्राप्त होता है उन द्वारा ही तू ( नः ) हमें ( सुभोजसं रयिम् ) उत्तम भोग्य पदार्थों और उत्तम रक्षा साधनों से सम्पन्न ऐश्वर्य को ( नि युवस्व ) प्रदान कर और ( वीरं ) वीरजन, ( गव्यं राधः ) गवादि सम्पदा और ( अश्व्यं च राधः ) अश्वों से बनी सम्पदा भी ( नि युवस्व ) प्रदान कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १, ३—५ वायुः । २ इन्द्रवायू देवते । छन्दः —१ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ३, ४ विराट् त्रिष्टुप् । ५ आर्षी त्रिष्टुप् ॥
विषय
ऐश्वर्यशाली राष्ट्र
पदार्थ
पदार्थ - हे (वायो) = बलवन् ! (याभिः नियुद्भिः) = जिन अश्वादि सेनाओं सहित (दुरोणे) = गृहवत् राष्ट्र में विद्यमान (दाश्वांसम्) = कर आदि के दाता प्रजाजन को (अच्छ प्र यासि) = भली प्रकार प्राप्त होता है उन द्वारा ही तू (न:) = हमें (सुभोजसं रयिम्) = उत्तम भोग्य पदार्थों और रक्षा-साधनों से सम्पन्न ऐश्वर्य को (नि युवस्व) = दे और (वीरं) = वीरजन, (गव्यं राधः) = गौ आदि और (अश्व्यं च राधः) = अश्वों से बनी सम्पदा भी (नि युवस्व) = दे।
भावार्थ
भावार्थ- राजा को योग्य है कि वह अपने राष्ट्र को समृद्ध एवं सुदृढ़ बनाने के लिए अश्वादि से सुसज्जित वीर सेना को बढ़ावे तथा व्यापार आदि कार्यों की वृद्धि की योजना बनावे, जिनसे कर के रूप में धन प्राप्त करके प्रजाजनों को ऐश्वर्यशाली तथा अन्य योजनाओं को सफल बनाया जा सके।
इंग्लिश (1)
Meaning
Vayu, lord of knowledge and motivation, come by superfast transport with supportive knowledge and expertise with which you proceed to the house of the liberal host of yajna for the fulfilment of his desired aim. Bless us with delicious food and wealth for comfortable life, brave generation of youth, plenty of lands and cows, horses and transport, and the success mantra to attain what is possible further on.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की यजमानांनी आह्वान केलेल्या विद्वानांनी यज्ञमंडपात जाऊन जनतेला गायी, घोडे व धन इत्यादी ऐश्वर्य प्रात्प करण्याचा उपदेश करावा. ॥३॥
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