ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 92/ मन्त्र 4
ये वा॒यव॑ इन्द्र॒माद॑नास॒ आदे॑वासो नि॒तोश॑नासो अ॒र्यः । घ्नन्तो॑ वृ॒त्राणि॑ सू॒रिभि॑: ष्याम सास॒ह्वांसो॑ यु॒धा नृभि॑र॒मित्रा॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठये । वा॒यवे॑ । इ॒न्द्र॒ऽमाद॑नासः । आऽदे॑वासः । नि॒ऽतोश॑नासः । अ॒र्यः । घ्नन्तः॑ । वृ॒त्राणि॑ । सू॒रिऽभिः॑ । स्या॒म॒ । स॒स॒ह्वांसः॑ । यु॒धा । नृऽभिः॑ । अ॒मित्रा॑न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
ये वायव इन्द्रमादनास आदेवासो नितोशनासो अर्यः । घ्नन्तो वृत्राणि सूरिभि: ष्याम सासह्वांसो युधा नृभिरमित्रान् ॥
स्वर रहित पद पाठये । वायवे । इन्द्रऽमादनासः । आऽदेवासः । निऽतोशनासः । अर्यः । घ्नन्तः । वृत्राणि । सूरिऽभिः । स्याम । ससह्वांसः । युधा । नृऽभिः । अमित्रान् ॥ ७.९२.४
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 92; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 14; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 14; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ये) ये पुरुषाः (वायवे) कर्मयोगिषु विश्वसन्ति (इन्द्रमादनासः) ज्ञानयोगिनश्च सत्कुर्वन्ति तथा (आदेवासः) विदुषश्च सत्कुर्वन्ति, ते (अर्यः, नितोशनासः) शत्रून् घ्नन्तः तथा (सूरिभिः) विद्वद्भिः (वृत्राणि) अज्ञानानि नाशयन्त इति ब्रुवन्ति (स्याम) वयं सत्यपरा भवेम (अमित्रान्) अन्यायमाचरतः शत्रून् (युधा) युद्धे (नृभिः) न्यायपथे सुदृढैर्जनैः (ससह्वांसः) हन्यामेति ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ये) जो पुरुष (वायवे) कर्मयोगी विद्वानों पर विश्वास रखते हैं, (इन्द्रमादनासः) ज्ञानयोगी विद्वान् का सत्कार करते हैं तथा (आदेवासः) विद्वान् पुरुषों का सत्कार करते हैं, वे (अर्य्यः) शत्रुओं को (नितोशनासः) नाश करते हुए और (सूरिभिः) विद्वानों से (घ्नन्तः) अज्ञानों का नाश करते हुए यह कथन करते हैं कि (स्याम) हम लोग सत्यपरायण होकर (अमित्रान्) अन्यायकारी शत्रुओं को (युधा) युद्ध में (नृभिः) न्यायपथ पर दृढ़ रहनेवाले मनुष्यों के द्वारा (ससह्वांसः) नाश करें ॥४॥
भावार्थ
जो सर्वव्यापक परमात्मा पर विश्वास रख कर अन्यायकारियों के दमन के लिए उद्यत होते हैं, वे सदैव विजयलक्ष्मी का लाभ करते हैं अर्थात् उनके गले में विजयलक्ष्मी अवश्यमेव जयमाला पहनाती है ॥४॥
विषय
विवेकी वीर जनों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( ये ) जो ( वायवः ) बलवान् पुरुष ( इन्द्र-मादनासः ) आत्मा प्राणों के समान शत्रुहन्ता, प्रजा को प्रसन्न करने में समर्थ जो ( आदेवासः ) अपने सब ओर विद्वान् और विजयाभिलाषी व्यवहारज्ञ पुरुषों को रखते हैं और ( अर्य: ) शत्रु के ( नितोशनासः ) मारने वाले हों ऐसे ( सूरिभिः ) शासक नायकों और विद्वानों के द्वारा हम लोग ( वृत्राणि घ्नन्तः ) विघ्नकारक दुष्टों, शत्रुओं का नाश और धनों को प्राप्त करते हुए ( युधा ) युद्ध द्वारा ( नृभिः अमित्रान् सासह्नांसः ) वीर पुरुषों द्वारा शत्रुओं को पराजय करने वाले होवें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १, ३—५ वायुः । २ इन्द्रवायू देवते । छन्दः —१ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ३, ४ विराट् त्रिष्टुप् । ५ आर्षी त्रिष्टुप् ॥
विषय
प्रजापालक राजा
पदार्थ
पदार्थ- (ये) = जो (वायवः) = बलवान् पुरुष इन्द्र-(मादनासः) = प्राणों के समान शत्रुहन्ता, को प्रसन्न करने में समर्थ (आदेवासः) = सब ओर विद्वान् व्यवहारज्ञ पुरुषों को रखते और (अर्यः) = के (नितोशनासः) = मारनेवाले हों ऐसे (सूरिभिः) = शासकों और विद्वानों द्वारा हम (वृत्राणि घ्नन्तः) = विघ्नकारक शत्रुओं का नाश करते हुए (युधा) = युद्ध द्वारा (नृभिः अमित्रान् सासह्वांसः) = वीर पुरुषों द्वारा शत्रुओं का पराजय करनेवाले हों।
भावार्थ
भावार्थ - राजा प्रजा को प्रसन्न करनेवाला, शत्रु का नाश करनेवाला तथा प्रजाजनों के सन्मार्गदर्शन के लिए विद्वानों की सुव्यवस्था करनेवाला होकर अपने शासन को सुदृढ़ करे।
इंग्लिश (1)
Meaning
Those who offer reverence and homage in honour of Vayu, who admire and celebrate Indra, respect the noble and brilliant people and destroy the enemies of the generous and brilliant, with all such brave and far sighted people, heroic warriors and leaders, let us take up the challenges and destroy the enemies and wipe out the demons of darkness, ignorance, injustice and poverty.
मराठी (1)
भावार्थ
जे सर्वव्यापक परमेश्वरावर विश्वास ठेवून अन्यायकारी लोकांच्या दमनासाठी उद्यत होतात ते सदैव विजयी होतात. अर्थात, विजयलक्ष्मी त्यांच्या गळ्यात माळ घालते. ॥४॥
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