ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 92/ मन्त्र 5
आ नो॑ नि॒युद्भि॑: श॒तिनी॑भिरध्व॒रं स॑ह॒स्रिणी॑भि॒रुप॑ याहि य॒ज्ञम् । वायो॑ अ॒स्मिन्त्सव॑ने मादयस्व यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । नि॒युत्ऽभिः॑ । श॒तिनी॑भिः । अ॒ध्व॒रम् । स॒ह॒स्रिणी॑भिः । उप॑ । या॒हि॒ । य॒ज्ञम् । वायो॒ इति॑ । अ॒स्मिन् । सव॑ने । मा॒द॒य॒स्व॒ । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो नियुद्भि: शतिनीभिरध्वरं सहस्रिणीभिरुप याहि यज्ञम् । वायो अस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयं पात स्वस्तिभि: सदा नः ॥
स्वर रहित पद पाठआ । नः । नियुत्ऽभिः । शतिनीभिः । अध्वरम् । सहस्रिणीभिः । उप । याहि । यज्ञम् । वायो इति । अस्मिन् । सवने । मादयस्व । यूयम् । पात । स्वस्तिऽभिः । सदा । नः ॥ ७.९२.५
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 92; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 14; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 14; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वायो) हे कर्मयोगिन् ! (अध्वरम्, नः) अस्माकमहिंसायज्ञे (शतिनीभिः) शतधा शक्तिभिः सह (सहस्रिणीभिः) सहस्रधाशक्तिभिः (उपयाहि) अस्मदन्तिकमागच्छ, (वायो) हे सर्वविधविद्यासु सञ्चरिष्णो विद्वन् ! (अस्मिन्, सवने) अस्मिन्ममानेकपदार्थोत्पादने यज्ञे (मादयस्व) आनन्दं लभस्व (यूयम्) भवन्तः (स्वस्तिभिः) स्वस्तिवाग्भिः (सदा) शश्वत् (नः) अस्मान् (पात) रक्षत ॥५॥ इति द्वानवतितमं सूक्तं चतुर्दशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वायो) हे कर्मयोगिन् विद्वन् ! (नः) हमारे (अध्वरं) इस अहिंसारूप यज्ञ में आप आएँ, (शतिनीभिः) अपने क्रियाकौशल के सैकड़ों प्रकार की शक्तियों को लेकर (सहस्रिणीभिः) सहस्रों प्रकार की शक्तियों को लेकर (उपयाहि) आऐं, (वायो) हे सर्वविद्या में गतिशील विद्वन् ! (अस्मिन्) हमारे इस (सवने) पदार्थविद्या के उत्पन्न करनेवाले यज्ञ में आकर आप (मादयस्व) आनन्द को लाभ करें और (यूयम्) आप विद्वान् लोग स्वस्तिवाचनों से (नः) हमको (सदा) सदैव (पात) पवित्र करें ॥५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मा ने सैकड़ों और सहस्रों शक्तियोंवाले कर्म्मयोगी विद्वानों के आह्वान करने का उपदेश किया है कि हे यजमानो ! तुम अपने यज्ञों में ऐसे विद्वानों को बुलाओ, जिनकी पदार्थविद्या में सैकड़ों प्रकार की शक्तियें हैं, उनको बुलाकर तुम उनसे सदुपदेश सुनो ॥५॥ यह ९२वाँ सूक्त और १४वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
विवेकी वीर जनों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( वायो ) बलवान् वीरजन ! तू ( शतिनीभिः ) सौ २ भटों के स्वामी, नायकों तथा हज़ार २ के भटों के स्वामी, नायकों वाली ( नियुद्भिः ) अश्व सेनाओं सहित ( नः यज्ञं उप याहि ) हमारे यज्ञ, राज्य को प्राप्त हो । ( अस्मिन् सवने मादयस्व ) इस ऐश्वर्ययुक्त शासन में तू अति प्रसन्न हो और अन्यों को भी प्रसन्न कर । हे विद्वानो ! वीर पुरुषो ! आप लोग ( स्वस्तिभिः नः सदा पात ) उत्तम उपदेशवचनों और कल्याणकारी उपायों से हमारी सदा रक्षा किया करें । इति चतुर्दशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १, ३—५ वायुः । २ इन्द्रवायू देवते । छन्दः —१ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ३, ४ विराट् त्रिष्टुप् । ५ आर्षी त्रिष्टुप् ॥
विषय
सैनिक व्यवस्था
पदार्थ
पदार्थ - हे (वायो) = बलवान् वीर! तू (शतिनीभिः सहस्त्रिणीभिः) = सौ-सौ तथा सहस्रसहस्र के भटों के नायकोंवाली (नियुद्भिः) = अश्व-सेनाओं सहित (नः यज्ञं उप याहि) = हमारे यज्ञ, राज्य को प्राप्त हो । (अस्मिन् सवने मादयस्व) = इस शासन में तू प्रसन्न हो, अन्यों को प्रसन्न कर। वीर पुरुषो! आप लोग (स्वस्तिभिः नः सदा पात) = सदा हमारी उत्तम साधनों से रक्षा करें।
भावार्थ
भावार्थ- सेनापति अपनी सेना में सौ-सौ व सहस्र - सहस्र सैनिकों के वर्ग व संघ बनाकर अलग-अलग सेनानायक नियुक्त करे। अश्वारोही सेना की भी ऐसी ही व्यवस्था कर सेना को सुदृढ़ बनाकर राष्ट्र की रक्षा करे। अग्रिम सूक्त का ऋषि वसिष्ठ तथा देवता इन्द्राग्नी है।
इंग्लिश (1)
Meaning
O Vayu, leader and giver of stormy inspiration and motivation, come with your forces of a hundredfold and thousandfold calibre to our yajna of non-violent production and progress and celebrate the glory of the social order in this session. O Indra, O Vayu, O heroic wise, protect and promote us with all means and modes of happiness and all round well being all ways all time.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमात्म्याने शेकडो व सहस्रो शक्तिमान कर्मयोगी विद्वानांना अह्वान करण्याचा उपदेश केलेला आहे, की हे यजमानांनो! तुम्ही आपल्या यज्ञात अशा विद्वानांना बोलवा ज्यांच्या ठायी पदार्थ विद्येत गती करणाऱ्या शेकडो प्रकारच्या शक्ती आहेत. त्यांना बोलावून तुम्ही त्यांच्याकडून सदुपदेश ऐका. ॥५॥
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