ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 98/ मन्त्र 4
यद्यो॒धया॑ मह॒तो मन्य॑माना॒न्त्साक्षा॑म॒ तान्बा॒हुभि॒: शाश॑दानान् । यद्वा॒ नृभि॒र्वृत॑ इन्द्राभि॒युध्या॒स्तं त्वया॒जिं सौ॑श्रव॒सं ज॑येम ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । यो॒धयाः॑ । म॒ह॒तः । मन्य॑मानान् । साक्षा॑म । तान् । बा॒हुऽभिः॑ । शाश॑दानान् । यत् । वा॒ । नृऽभिः॑ । वृतः॑ । इ॒न्द्र॒ । अ॒भि॒ऽयुध्याः॑ । तम् । त्वया॑ । आ॒जिम् । सौ॒श्र॒व॒सम् । ज॒ये॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्योधया महतो मन्यमानान्त्साक्षाम तान्बाहुभि: शाशदानान् । यद्वा नृभिर्वृत इन्द्राभियुध्यास्तं त्वयाजिं सौश्रवसं जयेम ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । योधयाः । महतः । मन्यमानान् । साक्षाम । तान् । बाहुऽभिः । शाशदानान् । यत् । वा । नृऽभिः । वृतः । इन्द्र । अभिऽयुध्याः । तम् । त्वया । आजिम् । सौश्रवसम् । जयेम ॥ ७.९८.४
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 98; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे विद्वन् ! (महतो, मन्यमानान्, योधयाः) ये योद्धार आत्मानः प्रबलान् मन्यन्ते (शाशदानान्) हिंसकान् (तान्) तान् (बाहुभिः) भुजैः (साक्षाम) हन्तुं शक्नुयाम (यत्, वा) तथा वा यः (नृभिः, वृतः) अनेकसैन्यपरिवृतः (अभियुध्याः) मया युध्येत (तम्) तं योद्धारं (इन्द्रः) हे विद्वन् ! (सौश्रवसम्) सुप्रख्यातं (आजिम्) सङ्ग्रामे (त्वया) त्वत्साहाय्येन (जयेम) अभिभवेम ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे विद्वन् ! (महतो, मन्यमानान्, योधयाः) युद्ध करनेवाले जो बड़े से बड़ा अपने को मानते हैं और (शाशदानान्) बड़े हिंसक हैं, (तान्) उनको (बाहुभिः) हाथों से (साक्षाम) हनन करने में हम समर्थ हों और (यत्, वा) अथवा (नृभिः) मनुष्यों करके (वृतः) आवृत हुआ (इन्द्रः) युद्धविद्यावेत्ता विद्वान् (अभियुध्याः) हम से युद्ध करे, (तम्) उस (सौश्रवसम्) बड़े प्रख्यात को (आजिम्) संग्राम में (त्वया) तुम्हारी सहायता से (जयेम) जीतें ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि जो पुरुष न्यायशील होकर अन्यायकारी शत्रुओं को दमन करने का बल माँगते हैं, उनको मैं अनन्त बल देता हूँ, ताकि वे अन्यायकारी हिंसकों का नाश कर संसार में धर्म और न्याय का राज्य फैलावें ॥४॥
विषय
वीर जनों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( यत् ) जब तू ( महतः ) बड़े २ ( मन्यमानान् ) अभिमानशील शत्रुओं को ( योधयाः ) हम से लड़ा, और हम ( शाशदानान् ) मारते हुए ( तान् ) उनको ( बाहुभिः ) बाहुओं से (साक्षाम) पराजित करें । ( वा ) और ( यत् ) जब हे ( इन्द्र ) सेनापते ! तू (नृभिः वृतः) मनुष्यों या वीर नायकों से घिर कर ( अभियुध्या: ) शत्रुओं का मुकाबला करे तब हम ( त्वया ) तेरे बल से ( तं ) उस ( सौश्रवसं आजिं ) उत्तम यश-कीर्त्ति जनक संग्राम का विजय करें । इसी प्रकार सूर्य या विद्युत् बड़े २ मेघ को प्रहार करता है तो हम बाधक कारण पवनादि से छिन्न-भिन्न मेघों को संघीभूत करें, जब पवनों सहित विद्युत् मेघ का आघात करे तो हम ( सौश्रवसं ) उत्तम अन्नप्रद वर्षा को प्राप्त करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ १–६ इन्द्रः। ७ इन्द्राबृहस्पती देवते। छन्द:— १, २, ६, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। ३ विराट् त्रिष्टुप्। ४, ५ त्रिष्टुप्॥ षड्चं सूक्तम्॥
विषय
सेना का कुशल नेतृत्व
पदार्थ
पदार्थ- (यत्) = जब तू (महतः) = बड़े-बड़े (मन्यमानान्) = अभिमानी शत्रुओं को (योधयाः) = हमसे लड़ा और हम (शाशदानान्) = मारते हुए तान्- उनको बाहुभिः - बाहुओं से साक्षाम- पराजित करें। वा और (यत्) = जब हे इन्द्र सेनापते ! तू (नृभिः वृतः) = वीर नायकों से घिर कर (अभियुध्या:) = शत्रुओं का सामना करे तब हम (त्वया) = तेरे बल से (तं) = उस सौश्रवसं आजि- क= र्त्ति जनक संग्राम को जीतें।
भावार्थ
भावार्थ- सेनापति युद्ध क्षेत्र में लड़ते हुए वीर सैनिकों के मध्य में जाकर उनका उत्साहवर्धन करे। उनके बीच में राष्ट्रभक्ति का उपदेश करके विजय की प्रेरणा करे। इससे सेना उत्साहित होकर संग्राम में अवश्य ही विजयी होगी।
इंग्लिश (1)
Meaning
When you fight against those who attack, believing they are great, we shall fight out those violent enemies with arms even in hand to hand fight. And when in formation with your warring heroes around, you engage in contests, then with you we shall win that contest with honour and fame.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की जे पुरुष न्यायी बनून अन्यायकारी शत्रूंचे दमन करण्याचे बल मागतात त्यांना मी अनंत बल देतो. त्यामुळे त्यांनी अन्यायकारी हिंसकाचा नाश करून जगात धर्म व न्यायाचे राज्य पसरवावे ॥४॥
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